भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का कार्यकाल: धर्मनिरपेक्षता, पारदर्शिता और न्यायिक ईमानदारी की विरासत

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का कार्यकाल मंगलवार को समाप्त होने जा रहा है, जिससे सुप्रीम कोर्ट में उनके संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली नेतृत्व का समापन होगा। करीब सात महीने तक सर्वोच्च न्यायालय के शीर्ष पद पर रहते हुए, उन्होंने कई ऐतिहासिक निर्णयों की अध्यक्षता की, जिन्होंने संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यायिक पारदर्शिता जैसे मूल्यों को रेखांकित किया। अब 14 मई को न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे।

धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी आदर्शों की पुष्टि

मुख्य न्यायाधीश खन्ना की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण फैसला 25 नवंबर 2024 को आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्दों को शामिल किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। यह शब्द 1976 में 42वें संशोधन के माध्यम से आपातकाल के दौरान जोड़े गए थे। खंडपीठ ने कहा कि संसद को संविधान, जिसमें प्रस्तावना भी शामिल है, में संशोधन करने का अधिकार है। अदालत ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की:

“धर्मनिरपेक्षता संविधान की मूल विशेषता है… यह समानता के अधिकार का एक पहलू है और संविधान की संरचना में गहराई से बुनी हुई है।”

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धार्मिक स्थलों से जुड़े विवादों में हस्तक्षेप

2024 के अंत में मंदिरों के अवशेषों पर मस्जिद बनाए जाने से जुड़े मुकदमों के चलते सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा था। इस संदर्भ में मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने निर्णायक कदम उठाते हुए आदेश दिया कि धार्मिक स्थलों से संबंधित कोई नई याचिका न दायर की जाए और निचली अदालतें किसी प्रकार का नया सर्वेक्षण आदेश या अंतरिम/अंतिम राहत जारी करें। इस निर्णय ने यथास्थिति बहाल करने और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ने से रोकने में मदद की।

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न्यायिक विवादों से निपटने में पारदर्शिता

मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने उच्च न्यायालयों से जुड़े विवादों में कठोर रुख अपनाया। उन्होंने दो प्रमुख मामलों में तेज़ी से जांच के आदेश दिए — एक, न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव द्वारा विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में की गई टिप्पणी और दूसरा, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से बिना हिसाब की नकदी की बरामदगी। दोनों ही मामलों में उन्होंने इन-हाउस समितियों के ज़रिए पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की।

न्यायाधीशों की संपत्ति की अनिवार्य घोषणा

पारदर्शिता को एक नई दिशा देते हुए, 1 अप्रैल 2025 को मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने एक फुल कोर्ट मीटिंग की अध्यक्षता की, जिसमें सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीश सार्वजनिक रूप से अपनी संपत्ति की घोषणा करेंगे। यह निर्णय न्यायपालिका में पारदर्शिता की स्थायी संस्कृति स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

नागरिक स्वतंत्रता और वैधानिक प्रक्रिया की रक्षा

अपने कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति खन्ना ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा में दृढ़ रुख अपनाया। राधिका अग्रवाल केस में उन्होंने जीएसटी और सीमा शुल्क अधिनियमों के तहत गिरफ्तारी की शक्तियों के दुरुपयोग पर रोक लगाई। उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस को भी आगाह किया कि:

“दीवानी विवादों के लिए आपराधिक कार्यवाही चलाना स्वीकार्य नहीं है और यह कई न्यायिक मिसालों का उल्लंघन है।”

कॉलेजियम की सिफारिशों में पारदर्शिता

न्यायिक नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद के आरोपों के बीच, मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने पिछले तीन वर्षों में केंद्र सरकार को भेजी गई सभी कॉलेजियम सिफारिशों को सार्वजनिक कर दिया। इन सिफारिशों में जाति, लिंग, अल्पसंख्यक स्थिति और यह जानकारी शामिल थी कि क्या नामित व्यक्ति किसी सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश से संबंधित हैं।

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वक्फ संशोधन विवाद में अंतरिम राहत

विवादास्पद वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर उत्पन्न तनाव को दूर करने में भी न्यायमूर्ति खन्ना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने संकेत दिया कि अदालत कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने के पक्ष में है, जिसके बाद केंद्र सरकार ने यह घोषणा की कि फिलहाल कोई वक्फ संपत्ति डिनोटिफाई नहीं की जाएगी और वक्फ बोर्ड या केंद्रीय वक्फ परिषद में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी।

वरिष्ठ अधिवक्ताओं के लिए विशेष सुविधाओं का अंत

सुप्रीम कोर्ट पर लंबे समय से वरिष्ठ वकीलों को विशेष सुविधा देने का आरोप लगता रहा है। न्यायमूर्ति खन्ना ने इस पर विराम लगाते हुए मौखिक रूप से मामलों की शीघ्र सूचीबद्धता के अनुरोध की प्रथा को समाप्त कर दिया। उन्होंने सख्त निर्देश दिए कि वरिष्ठ वकील भी अब सूचीबद्धता के लिए उचित पंजी कार्यालय के माध्यम से ही लिखित अनुरोध दें — यह अदालत की कार्यप्रणाली में प्रक्रिया-आधारित समानता लागू करने का एक प्रयास था।

अन्य महत्वपूर्ण निर्णयों में भागीदारी

न्यायमूर्ति खन्ना ने कई ऐतिहासिक पीठों का हिस्सा रहते हुए प्रमुख निर्णयों में भाग लिया:

  • उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने को वैध ठहराया।
  • उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करने वाले निर्णय में सहलेखन किया।
  • उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की विश्वसनीयता की पुष्टि की।
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न्यायमूर्ति एचआर खन्ना की विरासत का विस्तार

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, महान न्यायमूर्ति एचआर खन्ना के भतीजे हैं, जो आपातकाल के दौरान ADM जबलपुर मामले में अपने अकेले असहमति वाले निर्णय के लिए प्रसिद्ध हैं। न्यायमूर्ति एचआर खन्ना ने अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) को राष्ट्रीय संकट के समय में भी अपरिवर्तनीय बताया था। उनके इस सिद्धांतवादी रुख के कारण उन्हें मुख्य न्यायाधीश पद नहीं मिला और उन्होंने विरोधस्वरूप इस्तीफा दे दिया। 2017 में नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ADM जबलपुर में बहुमत के फैसले को पलटते हुए न्यायमूर्ति एचआर खन्ना के असहमति निर्णय को सही ठहराया।

न्यायिक जीवन और पृष्ठभूमि

14 मई 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की पढ़ाई की और दिल्ली में वकालत शुरू की। उन्हें 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया और जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति मिली। भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनका संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली कार्यकाल संविधानिक मूल्यों और न्यायिक ईमानदारी में विश्वास बहाल करने के लिए याद किया जाएगा।

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