इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए 12 फरवरी 2025 को पारित उस आदेश को वापस ले लिया है, जिसमें चार आरोपियों के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही एक कथित समझौते के आधार पर रद्द कर दी गई थी। अदालत ने पाया कि आरोपियों ने तथ्यों को छिपाकर कोर्ट को गुमराह किया। सभी पीड़ितों को पक्षकार नहीं बनाया गया और जानबूझकर समझौते का विरोध करने वाले घायल व्यक्तियों की जानकारी छुपाई गई। अदालत ने प्रत्येक आरोपी पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया और उनके वकील को चेतावनी दी।
प्रकरण की पृष्ठभूमि:
प्राथमिकी संख्या 86/2017 थाना देवा, जिला बाराबंकी में दर्ज की गई थी, जिसमें आईपीसी की धाराएं 323, 504, 506, 452, 308, 324, 325, 304, 147 व 148 शामिल थीं। शिकायतकर्ता सलमा ने आरोप लगाया कि आवेदकों—जावेद अहमद @ जावेद, सर्ताज, मोहम्मद ज़फ़र @ ज़ाफ़र और हमीदन @ हमीदा—ने उनके भाई तौफ़ीक़ पर हमला किया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। अन्य परिजनों को भी गंभीर चोटें आई थीं।
12 फरवरी 2025 को कोर्ट ने आवेदकों की धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर याचिका को स्वीकार करते हुए केस को रद्द कर दिया था, जो एक समझौते पर आधारित था। बाद में पता चला कि अधिकांश पीड़ितों ने समझौता नहीं किया था, और यह तथ्य अदालत से छिपाया गया।

तर्क और न्यायालय की टिप्पणियां:
राज्य सरकार ने आदेश को वापस लेने के लिए अर्जी दायर की, जिसमें बताया गया कि याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से तथ्य छिपाए और सभी पीड़ितों को पक्षकार नहीं बनाया। ट्रायल कोर्ट की रिपोर्ट (दिनांक 27.01.2025) के अनुसार पीड़ित मजरूब, मोहम्मद सलमान, मुफीदुल, महबूब, शबनम बानो और मृतक की मां नसीरा ने समझौते से इनकार कर दिया था।
न्यायालय ने कहा:
“एक घायल व्यक्ति के साथ समझौते के आधार पर समस्त आपराधिक कार्यवाही समाप्त करने की प्रार्थना की गई… पीड़ितों को जानबूझकर पक्षकार नहीं बनाया गया… यह वकील द्वारा गंभीर कदाचार है…”
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों जैसे Ganesh Patel vs. Umakant Raroria, Kusha Duruka v. State of Odisha और Dalip Singh v. State of U.P. का उल्लेख किया और कहा कि धोखाधड़ी के आधार पर प्राप्त आदेश निरस्त किए जा सकते हैं।
अंतिम निर्णय:
अदालत ने राज्य सरकार की अर्जी को स्वीकार कर 12 फरवरी 2025 का आदेश वापस ले लिया। धारा 482 सीआरपीसी की मूल याचिका और सत्र वाद संख्या 110/2017 को पुनः बहाल कर दिया गया।
अदालत ने प्रत्येक आरोपी—जावेद अहमद @ जावेद, सर्ताज, मोहम्मद ज़फ़र @ ज़ाफ़र, और हमीदन @ हमीदा—पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया, जो एक माह के भीतर हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को भुगतान किया जाना है। वकील सज्जाद हुसैन की बिना शर्त माफी स्वीकार करते हुए कोर्ट ने चेतावनी दी:
“श्री सज्जाद हुसैन, अधिवक्ता की बिना शर्त माफ़ी स्वीकार की जाती है, किंतु भविष्य में इस प्रकार की गंभीर चूक को दोहराने से सावधान रहने का निर्देश दिया जाता है।”
निर्देश:
- ज़िला मजिस्ट्रेट को जुर्माना न चुकाने की स्थिति में वसूली करने के निर्देश।
- ट्रायल कोर्ट को निर्देशित किया गया कि वह आरोपियों की उपस्थिति सुनिश्चित करे ताकि कार्यवाही पूरी की जा सके।
- कार्यालय को आदेश की प्रमाणित प्रति ट्रायल कोर्ट को तुरंत भेजने के निर्देश दिए गए।
मामला: जावेद अहमद @ जावेद व अन्य बनाम राज्य उत्तर प्रदेश व एक अन्य
याचिका संख्या: धारा 482 सीआरपीसी आवेदन संख्या 1133 / 2025