बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने यह स्पष्ट करते हुए कि किसी महिला के साथ पूर्व संबंध से लगातार सहमति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता, दो आरोपियों वसीम खान और शेख कादिर की गैंगरेप के लिए दोषसिद्धि को बरकरार रखा है। जस्टिस नितिन बी. सूर्यवंशी और जस्टिस एम. डब्ल्यू. चांदवानी की पीठ ने यह फैसला आपराधिक अपील संख्या 336, 325, 346 और 352/2016 में सुनाया, जो सत्र वाद संख्या 22/2015 से उत्पन्न हुई थी। उक्त मामला अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, चंद्रपुर द्वारा निर्णीत हुआ था।
पृष्ठभूमि और आरोप
पीड़िता, जो अपने पति से अलग रह रही थी, अपने मित्र दिनेश (PW2) के साथ एक किराए के कमरे में रह रही थी। 5 और 6 नवंबर 2014 को मक्सूद शेख, वसीम खान, शेख कादिर और अन्य द्वारा गंभीर आपराधिक कृत्य किए गए। घटना की शुरुआत वाहन धोने के पानी को लेकर हुए विवाद से हुई, जिसमें मक्सूद ने पीड़िता के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग किया और पीड़िता द्वारा थप्पड़ मारा गया। इसके बाद मक्सूद अन्य आरोपियों को लेकर लौटा।
न्यायालय ने कहा:
“मक्सूद कुल्हाड़ी लेकर आया और दिनेश पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन दिनेश ने उसे धक्का दे दिया जिससे वह गिर गया। इसके बाद मक्सूद ने अपने मोबाइल से वसीम को कॉल कर बुलाया। वसीम और कादिर अन्य आरोपियों के साथ पीड़िता के घर में घुस आए।”
कादिर ने दिनेश को डंडे से पीटा और वसीम ने पीड़िता को थप्पड़ मारा। राकेश (PW3), जो युगल का मित्र था, को भी पीटा गया और पीड़िता के साथ आपत्तिजनक स्थिति में फोटो व वीडियो लेने के लिए मजबूर किया गया। बाद में पीड़िता को विभिन्न स्थानों पर ले जाकर वसीम, कादिर और एक किशोर ने बलात्कार किया। दिनेश को घायल अवस्था में रेलवे ट्रैक पर छोड़ दिया गया।
दोषसिद्धि और सजा
निचली अदालत ने वसीम खान और शेख कादिर को भारतीय दंड संहिता की धारा 376D (गैंगरेप) के तहत दोषी ठहराते हुए शेष जीवन के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके अतिरिक्त उन्हें IPC की धारा 366, 354A, 354B, 452, 307, 394 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66E के अंतर्गत भी दोषी ठहराया गया।
हाईकोर्ट ने इन सजा को बरकरार रखते हुए कहा:
“पीड़िता, दिनेश और राकेश के बयानों में निरंतरता है… वसीम ने पीड़िता और राकेश को निर्वस्त्र कर आपत्तिजनक स्थिति में आने को मजबूर किया… वसीम और कादिर ने राकेश की पिटाई की, जबकि वसीम ने पीड़िता को थप्पड़ मारा।”
सहमति और संबंध पर न्यायालय की दृष्टि
हालांकि निर्णय में ‘सहमति’ पर पृथक रूप से कानूनी सिद्धांत नहीं रखा गया, लेकिन न्यायालय ने घटनाक्रम और पीड़िता के साथ किए गए हिंसक व्यवहार की गहन समीक्षा कर यह निष्कर्ष निकाला कि बलात्कार के आरोप सबूतों, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और चिकित्सकीय रिपोर्ट द्वारा सिद्ध हैं।
धारा 65B प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति के बावजूद इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा:
“उपरोक्त दो कारणों के चलते अभियोजन के लिए धारा 65B का प्रमाणपत्र प्राप्त करना संभव नहीं था… इसलिए प्रमाणपत्र का प्रस्तुत न किया जाना इस मामले के लिए घातक नहीं होगा।”
वसीम के मोबाइल से प्राप्त वीडियो और फोटो वाली सीडी की प्रामाणिकता ‘हैश वैल्यू’ जांच के आधार पर स्वीकार की गई।
निचली अदालत के निर्णय में आंशिक संशोधन
न्यायालय ने साक्ष्य के अभाव में सिराज खान को यह कहते हुए बरी कर दिया कि:
“पीड़िता, दिनेश और राकेश के बयानों से स्पष्ट होता है कि किसी ने भी यह नहीं कहा कि सिराज पीड़िता के कमरे में घुसा था… अतः संदेह का लाभ सिराज को दिया जाता है।”
इसी प्रकार, मक्सूद के खिलाफ धारा 506-II (आपराधिक भयभीत करना) के तहत सजा को यह कहते हुए हटाया गया:
“मक्सूद द्वारा ‘भड़खाऊ’ शब्द का उच्चारण किसी भी प्रकार से आपराधिक भय के दायरे में नहीं आता।”
इसके अतिरिक्त, IPC की धारा 326 (गंभीर चोट पहुंचाना) के अंतर्गत दी गई दोषसिद्धि को धारा 324 (खतरनाक हथियार से साधारण चोट) में संशोधित किया गया:
“निचली अदालत द्वारा मक्सूद, वसीम और कादिर के विरुद्ध धारा 326 के अंतर्गत दी गई दोषसिद्धि नहीं टिकती… हम उन्हें धारा 324 के अंतर्गत दोषी ठहराते हैं।”