[मोटर दुर्घटना मुआवज़ा] केवल पूर्व व्यवसाय को जारी न रख पाने के आधार पर 100% कार्यात्मक अक्षमता नहीं मानी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सुनील कुमार खुशवाहा बनाम कात्रागड्डा सत्यनारायण एवं अन्य में यह निर्णय दिया कि किसी व्यक्ति का अपने पूर्व व्यवसाय को जारी न रख पाना, स्वतः ही उसे 100% कार्यात्मक रूप से अक्षम नहीं ठहराता। हालांकि अपीलकर्ता को सड़क दुर्घटना में पैर गंवाने के कारण मुआवज़े की राशि बढ़ाई गई, लेकिन कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि उसकी कार्यात्मक अक्षमता 60% ही मानी जाएगी, न कि 100%।

पृष्ठभूमि:

अपीलकर्ता सुनील कुमार खुशवाहा एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे जब एक लापरवाही से चलाई गई ट्रक ने उन्हें और एक अन्य पैदल यात्री को टक्कर मार दी। इस दुर्घटना के परिणामस्वरूप उनके दाहिने पैर को घुटने के नीचे से काटना पड़ा। प्रारंभिक इलाज के बाद उन्हें विशेष अस्पताल भेजा गया और अंततः दिल्ली में उच्च चिकित्सा संस्थान में शल्य चिकित्सा कराई गई।

खुशवाहा फल बेचने का कार्य करते थे और उन्होंने आयकर विवरणी में अपनी वार्षिक आय ₹1,56,996 दर्शाई थी। उन्होंने मुआवज़ा दावा याचिका दाखिल की, जिस पर मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) ने ₹7,09,273 का मुआवज़ा प्रदान किया, जो मुख्यतः चिकित्सा खर्च को कवर करता था।

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पक्षों के तर्क:

अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता करन दीप सिंह ने यह तर्क दिया कि चूंकि खुशवाहा अब फल बेचने का अपना व्यवसाय नहीं कर सकते, इसलिए उन्हें 100% कार्यात्मक रूप से अक्षम माना जाना चाहिए। इसके विरोध में बीमा कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अम्भोज कुमार सिन्हा ने हाईकोर्ट के आदेश का समर्थन करते हुए मुआवज़े की वृद्धि का विरोध किया।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने अपीलकर्ता की शारीरिक एवं व्यावसायिक स्थिति का अवलोकन किया। मेडिकल बोर्ड ने उनकी स्थायी शारीरिक अक्षमता 50% मानी थी। सुप्रीम कोर्ट ने राज कुमार बनाम अजय कुमार, (2011) 1 SCC 343 का हवाला दिया, जिसमें एक स्वयं-नियोजित व्यक्ति की कार्यात्मक अक्षमता, जिसने अपना एक पैर खो दिया था, 60% आंकी गई थी।

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कोर्ट ने 100% कार्यात्मक अक्षमता के दावे को अस्वीकार करते हुए कहा:

“केवल इसलिए कि वह अपना पूर्व व्यवसाय जारी नहीं रख सकता, हम 100% कार्यात्मक अक्षमता को स्वीकार नहीं कर सकते। ऐसा नहीं है कि वह फल बेचने का कार्य केवल पैदल ही करता था…”

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अपीलकर्ता के पास बाजार समिति में एक दुकान थी और अब संभवतः उसे संचालित करने के लिए किसी को नियुक्त करना पड़ेगा। अतः कोर्ट ने कार्यात्मक अक्षमता 60% निर्धारित की।

संशोधित मुआवज़ा:

सुप्रीम कोर्ट ने निम्नानुसार मुआवज़ा पुनः निर्धारित किया:

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दावा शीर्षकराशि (₹)
आय की हानि (₹1,56,996 × 140% × 18 × 60%)₹23,73,780
चिकित्सा व्यय₹5,00,949
यात्रा व्यय₹50,000
पीड़ा व कष्ट₹2,00,000
इलाज के दौरान आय की हानि (1.5 माह)₹19,624
विशेष आहार एवं परिचारक व्यय (6 माह @ ₹15,000/माह)₹90,000
कुल योग₹32,34,353

कोर्ट ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह पहले से भुगतान की गई राशि घटाकर शेष मुआवज़ा, दावे की तारीख से अधिकरण द्वारा निर्धारित ब्याज सहित, दो माह के भीतर भुगतान करे।

अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई और मुआवज़ा राशि में संशोधन किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि किसी व्यक्ति का पूर्व व्यवसाय न कर पाना, अकेले ही उसे पूर्ण कार्यात्मक रूप से अक्षम नहीं बनाता और यह निर्धारण पूर्व निर्णयों के अनुरूप उचित मानकों के अनुसार किया जाना चाहिए।

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