सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग (SEC) को निर्देश दिया कि वह राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना चार सप्ताह के भीतर जारी करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ओबीसी आरक्षण से जुड़ा विवाद फिलहाल 2022 की बंथिया आयोग रिपोर्ट से पहले की स्थिति पर ही रहेगा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने बंथिया आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए कहा कि ओबीसी की वास्तविक जनसंख्या का आंकड़ा तय करने के लिए जनगणना आवश्यक है। आयोग ने स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया को चार महीने में पूरा करने का समय तय किया है और उपयुक्त मामलों में राज्य चुनाव आयोग को अधिक समय मांगने की छूट दी है। साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि स्थानीय निकाय चुनावों का अंतिम परिणाम सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं के निर्णयों के अधीन रहेगा।

मामले की पृष्ठभूमि में, 22 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और चुनाव आयोग को स्थानीय निकाय चुनावों की प्रक्रिया में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था। इससे पहले 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग द्वारा जारी उस अधिसूचना को रद्द कर दिया था, जिसमें ओबीसी के लिए 27% आरक्षण प्रदान किया गया था। कोर्ट ने कहा था कि जब तक सरकार “ट्रिपल टेस्ट” की शर्तें पूरी नहीं करती, तब तक ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
क्या है ट्रिपल टेस्ट?
- सरकार को एक समर्पित आयोग बनाना होगा जो प्रत्येक स्थानीय निकाय में ओबीसी की सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन से संबंधित आंकड़े जुटाए,
- उस डेटा के आधार पर प्रत्येक निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करे,
- यह सुनिश्चित करे कि एससी, एसटी और ओबीसी को मिलाकर कुल आरक्षण 50% से अधिक न हो।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जिन 367 स्थानीय निकायों — जिनमें 92 नगर परिषद और 4 नगर पंचायत शामिल हैं — में चुनाव प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी थी, वहां ओबीसी के लिए आरक्षण नहीं दिया जा सकता।