सुप्रीम कोर्ट की तीन-जजों की आंतरिक समिति ने दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के विरुद्ध लगे आरोपों को विश्वसनीय पाया है। द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, समिति का गठन भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना द्वारा 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1999 में अपनाई गई आंतरिक प्रक्रिया के तहत किया गया था।
इस जांच समिति में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधवाळिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायाधीश अनु शिवराम शामिल थीं।
यह मामला उस अग्निकांड से जुड़ा है जो जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास पर हुआ था, जिसमें कथित रूप से एक स्टोर रूम से जली हुई नकदी बरामद हुई थी। इस मामले में पारदर्शिता के अभूतपूर्व कदम के तहत, 13 मई को सेवानिवृत्त होने जा रहे CJI खन्ना ने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का भी निर्णय लिया है। इस रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा की ओर से दिए गए लिखित उत्तर को भी शामिल किया गया है।
द वायर के अनुसार, सूत्रों ने बताया है कि जांच रिपोर्ट की समीक्षा और सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ जजों से चर्चा के बाद, CJI खन्ना जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने को कह सकते हैं। समिति के गठन के कुछ ही दिनों बाद जस्टिस वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद हाईकोर्ट, स्थानांतरित कर दिया गया और तब से उन्हें कोई न्यायिक कार्य आवंटित नहीं किया गया है।
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि जस्टिस वर्मा स्वयं इस्तीफा देंगे या जांच के निष्कर्षों को चुनौती देंगे, लेकिन द वायर के अनुसार, उनके पद पर बने रहना अब “अव्यवहारिक” माना जा रहा है। यदि वह इस्तीफा देने से इनकार करते हैं, तो मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप का अनुरोध कर सकते हैं, जिससे महाभियोग प्रक्रिया की शुरुआत की जा सकती है।
स्रोत: द वायर