सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि किसी दुर्घटना की शृंखला (chain reaction) की जड़ एक बीमित वाहन है, तो उसके बीमाकर्ता पर ही ज़िम्मेदारी तय होगी, भले ही दुर्घटना में जुड़े अन्य वाहन बीमित न हों। न्यायालय ने यह फैसला Royal Sundaram Alliance Insurance Co. Ltd. बनाम होन्नम्मा एवं अन्य वाद में सुनाया, जिसमें एक ट्रैक्टर और ट्रेलर की दुर्घटना में एक मज़दूर की मृत्यु हो गई थी।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति एहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए बीमा कंपनी की आपत्तियों को अस्वीकार कर दिया और कहा कि बीमा तकनीकीताओं से परे जाकर सामाजिक यथार्थों को देखा जाना चाहिए।
पृष्ठभूमि
29 फरवरी 2012 को मृतक नागराजप्पा एक ट्रैक्टर-ट्रेलर में मज़दूरी करते हुए मिट्टी उतारने जा रहे थे। ट्रैक्टर चालक की लापरवाही के कारण वाहन पलट गया और उनकी मृत्यु हो गई। मृतक की पत्नी और दो नाबालिग बेटियों ने ₹10 लाख के मुआवज़े की याचिका मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT), हरिहर के समक्ष दाखिल की।
MACT ने ₹9.5 लाख का मुआवज़ा स्वीकृत किया लेकिन ट्रेलर बीमित न होने के कारण बीमा कंपनी को उत्तरदायी नहीं ठहराया। हाईकोर्ट ने इस निर्णय को आंशिक रूप से पलटते हुए मुआवज़े को ₹13,28,940 कर दिया और बीमा कंपनी को भुगतान हेतु उत्तरदायी ठहराया। इसके विरुद्ध बीमा कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
मुख्य प्रश्न
क्या बीमा कंपनी तब भी उत्तरदायी होगी, जब बीमित ट्रैक्टर एक अनबीमित ट्रेलर को खींच रहा हो और दुर्घटना ट्रैक्टर के संचालन से हुई हो?
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण कथन
न्यायालय ने बीमा कंपनी की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा:
“यह मामला ऐसा नहीं है कि केवल ट्रेलर की किसी स्वतंत्र गलती से दुर्घटना हुई। दुर्घटना ट्रैक्टर के चलते ही हुई, क्योंकि ट्रैक्टर द्वारा ट्रेलर को खींचते समय ही यह घटना हुई।”
श्रृंखलाबद्ध दुर्घटनाओं (chain accidents) पर न्यायालय ने स्पष्ट किया:
“यदि एक बीमित वाहन दूसरे वाहन को टक्कर मारता है और वह तीसरे को, तो पूरी श्रृंखला की ज़िम्मेदारी उस वाहन पर होगी जो मूल कारण था।”
और आगे कहा:
“यह न्यायालय राष्ट्र की जमीनी सच्चाइयों से आँख नहीं मूँद सकता और केवल तकनीकीता के आधार पर व्यवहारिकता को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।”
पूर्व निर्णयों से अंतर
बीमा कंपनी ने Dhondubai बनाम Hanmantappa में दिए गए निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें ट्रेलर के बीमा न होने पर बीमा कंपनी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“Dhondubai में पूर्ण कानून का सिद्धांत नहीं बताया गया था… निर्णय तथ्यों पर आधारित था।”
इसके विपरीत, Koduru Bhagyamma (AP HC, 2007) के निर्णय को उद्धृत करते हुए कहा गया:
“जब ट्रेलर बीमित ट्रैक्टर से जुड़ा हो, तो ट्रेलर, ट्रैक्टर का हिस्सा बन जाता है और ट्रैक्टर का बीमा ही पर्याप्त होता है।”
बीमा पॉलिसी और दायित्व
बीमा पॉलिसी में यह स्पष्ट था कि:
“बीमा पॉलिसी के अनुसार देय राशि वह है जो मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक हो।”
CM Jaya बनाम New India Assurance (2002) निर्णय को उद्धृत करते हुए न्यायालय ने कहा:
“बीमा अनुबंध की शर्तों के बाहर जाकर बीमा कंपनी की दायित्व सीमा नहीं बढ़ाई जा सकती।”
अंतिम निर्णय
न्यायालय ने हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा:
“हम हाईकोर्ट के आदेश में मुआवज़े की राशि या बीमा कंपनी पर दायित्व निर्धारित करने में कोई त्रुटि नहीं पाते।”
बीमा कंपनी को निर्देश दिया गया कि वह 2 महीने के भीतर ₹9.5 लाख से कम नहीं और शेष राशि पहले किए गए भुगतान की समायोजना के बाद दे। साथ ही, बीमा कंपनी को ट्रेलर के मालिक से अतिरिक्त राशि वसूलने की अनुमति दी गई:
“बीमा कंपनी को यह स्वतंत्रता दी जाती है कि वह अतिरिक्त राशि को वाहन स्वामी (प्रतिवादी 4) से वसूल सके।”