छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित ₹2,000 करोड़ के शराब घोटाले मामले में आरोपी अरविंद सिंह की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि एजेंसी आरोप तो लगा रही है लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं दे रही।
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, “यह ED की आदत बन गई है कि बिना सबूत आरोप लगाए जाते हैं। इस तरह का अभियोजन अदालत में नहीं टिकेगा।”
सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने दावा किया कि अरविंद सिंह ने विकास अग्रवाल नामक व्यक्ति के साथ मिलकर ₹40 करोड़ की अवैध कमाई की। लेकिन जब कोर्ट ने पूछा कि क्या विकास अग्रवाल को भी आरोपी बनाया गया है, तो राजू ने बताया कि वह फरार है।
इस पर अदालत ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “आपने कहा कि उसने ₹40 करोड़ कमाए। अब आप यह नहीं बता पा रहे कि उसका किसी कंपनी से कोई संबंध है भी या नहीं। क्या वह किसी कंपनी का निदेशक है? क्या वह शेयरहोल्डर है या मैनेजिंग डायरेक्टर? कुछ तो होना चाहिए।”
राजू ने दलील दी कि कोई व्यक्ति कंपनी को नियंत्रित कर सकता है भले ही वह उस कंपनी का आधिकारिक रूप से जिम्मेदार न हो, लेकिन अदालत इससे संतुष्ट नहीं हुई और एजेंसी की बातों को “बिना आधार वाले आरोप” करार दिया।
अब मामले की अगली सुनवाई 9 मई को होगी।
इससे पहले 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार से भी सवाल किया था कि वह आखिर एक आरोपी को कितने समय तक जेल में रखेगी। कोर्ट ने कहा था, “तीन चार्जशीट दाखिल हो चुकी हैं और जांच अभी तक जारी है। आप व्यक्ति को जेल में रखकर सजा दे रहे हैं जबकि यह कोई आतंकवाद या हत्या का मामला नहीं है। आपने तो जांच की प्रक्रिया को ही सजा बना दिया है।”
राज्य सरकार ने जमानत का विरोध करते हुए कहा था कि आरोपियों को अन्य आरोपियों के साथ आमना-सामना कराना बाकी है। आरोपी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने दलील दी कि तीन चार्जशीट दाखिल हो चुकी हैं लेकिन अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं।
कोर्ट ने अरविंद सिंह और अमित सिंह को पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा के साथ आमने-सामने कराने की अनुमति दी और अगली सुनवाई के लिए 9 मई की तारीख तय की।
ED का आरोप है कि यह घोटाला राज्य सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों, निजी व्यक्तियों और राजनीतिक हस्तियों के गठजोड़ से हुआ, जिससे 2019 से 2022 के बीच ₹2,000 करोड़ से अधिक की अवैध कमाई हुई। एजेंसी ने दावा किया कि डिस्टिलर्स से प्रति शराब केस रिश्वत ली जाती थी और देशी शराब को रिकॉर्ड से हटाकर बेचा जाता था।
यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला आयकर विभाग द्वारा 2022 में दिल्ली की एक अदालत में दाखिल चार्जशीट से जुड़ा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी एक बार फिर ED की जांच प्रक्रिया और निष्पक्षता को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है, खासकर राजनीतिक मामलों में।