मणिपुर में हुई जातीय हिंसा को लेकर लीक हुई ऑडियो क्लिप्स की जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मणिपुर सरकार से ताज़ा रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। इन ऑडियो क्लिप्स में पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की कथित संलिप्तता की बात कही गई है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (CFSL) की सीलबंद रिपोर्ट का अवलोकन किया, जो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा दाखिल की गई थी।
पीठ ने सॉलिसिटर जनरल को निर्देश दिया कि वे राज्य अधिकारियों से बात कर इस मामले पर नई रिपोर्ट दाखिल करें। “सॉलिसिटर जनरल ताजा निर्देश लें और पुन: जांच के बाद नई रिपोर्ट दाखिल करें। मामला 21 जुलाई से शुरू होने वाले सप्ताह में पुनः सूचीबद्ध किया जाए,” अदालत ने आदेश दिया।
सरकारी वकील ने तर्क दिया कि अब राज्य में शांति है और यह मामला मणिपुर हाईकोर्ट में उठाया जा सकता है। इस पर CJI ने कहा, “आइए याचिकाकर्ता को अलग रखते हैं। अगर कुछ गलत हुआ है तो उसकी जांच होनी चाहिए, न कि किसी की सुरक्षा।”

याचिकाकर्ता संगठन ‘कुकी ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट’ (KOHUR) की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि यह जांच निष्पक्ष होनी चाहिए क्योंकि यह पूर्व मुख्यमंत्री से जुड़ी है। उन्होंने दावा किया कि एक “ट्रुथ लैब” ने 93% सटीकता से पुष्टि की है कि आवाज बीरेन सिंह की है, जो कि इन क्लिप्स में मणिपुर की मेइती समूहों को हथियार लूटने की अनुमति देते सुने गए हैं।
भूषण ने कहा कि ऑडियो क्लिप्स में “भड़काऊ बातें” हैं, जिनमें सिंह हिंसा को उकसाते और हमलावरों को संरक्षण देते सुनाई देते हैं। उन्होंने कहा कि राज्य मशीनरी की भूमिका हिंसा में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। याचिका में SIT के तहत अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई है।
सरकार की ओर से इस रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल उठाया गया और कहा गया कि याचिकाकर्ता की “वैचारिक झुकाव” वाली मंशा है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह मामला अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट में उठाया जा सकता है।
गौरतलब है कि मई 2023 में मणिपुर में कुकी और मेइती समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें अब तक 260 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों विस्थापित हुए हैं। हिंसा तब शुरू हुई जब मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘जनजातीय एकता मार्च’ निकाला गया।
सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई के तीसरे सप्ताह में तय की है और तब तक मणिपुर सरकार को दोबारा रिपोर्ट दाखिल करनी होगी।