सिर्फ लाल किला ही क्यों? फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने बहादुर शाह ज़फ़र के वारिस के तौर पर लाल किले पर कब्जे की मांग वाली याचिका खारिज की


सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय की वंशज होने का दावा करने वाली सुलताना बेगम द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने लाल किले पर अधिकार और भारत सरकार से मुआवज़े की मांग की थी।


मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने याचिका को “पूरी तरह से निराधार” बताते हुए खारिज कर दिया और इसे समय-सीमा अथवा तथ्यों के आधार पर स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “सिर्फ लाल किला ही क्यों? फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं? उन्हें भी क्यों छोड़ा जाए?” इसके साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि याचिका का कोई आधार नहीं है। आदेश सुनाते हुए पीठ ने कहा, “खारिज की जाती है।”

मामला क्या था:

सुलताना बेगम ने दावा किया कि वह अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय के परपोते की विधवा हैं और 1857 के बाद उनके परिवार को लाल किले से जबरन बेदखल कर दिया गया था। उन्होंने वर्ष 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल कर लाल किले के स्वामित्व का दावा किया और सरकार से मुआवज़े की मांग की।

याचिका में आरोप लगाया गया था कि लाल किला, जो वर्तमान में भारत सरकार के नियंत्रण में है, “अवैध कब्जे” में है और उसे परिवार को वापस सौंपा जाना चाहिए।

हाईकोर्ट का रुख:

हालांकि दिसंबर 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठ ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि याचिका दायर करने में 164 वर्षों की अत्यधिक देरी हुई है। कोर्ट ने कहा:
“यदि मान भी लिया जाए कि बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय से उनकी संपत्ति को ईस्ट इंडिया कंपनी ने अवैध रूप से छीन लिया था, तब भी 164 वर्षों के बाद यह रिट याचिका किस आधार पर विचारणीय होगी, जब यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता के पूर्वजों को इस स्थिति की पूरी जानकारी थी?”

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इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष अपील की, जिसमें न्यायमूर्ति विभू बखरू और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला शामिल थे। दिसंबर 2024 में खंडपीठ ने भी इस अपील को खारिज कर दिया, क्योंकि अपील दायर करने में 900 से अधिक दिनों की देरी को उचित रूप से नहीं समझाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की अंतिम टिप्पणी:

सुलताना बेगम ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की। उनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि कम से कम याचिका को देरी के आधार पर ही खारिज कर दिया जाए, चूंकि हाईकोर्ट ने तथ्यों पर विचार नहीं किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह अनुरोध ठुकरा दिया और याचिका को तथ्यों के आधार पर भी खारिज करते हुए कहा:
“नहीं, खारिज की जाती है।”

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