सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) द्वारा दलित पीएचडी शोधार्थी रामदास केएस के निलंबन को वैध करार दिया, लेकिन निलंबन की अवधि को घटाकर पहले से पूरी की गई अवधि तक सीमित कर दिया।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा कि संस्थान द्वारा की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर आधारित थी और उसमें कोई कानूनी त्रुटि नहीं है। हालांकि, पीठ ने यह भी माना कि रामदास अपने शोध कार्य को पूरा कर सकें, इसके लिए उन्हें आगे बढ़ने का अवसर दिया जाना चाहिए।
टीआईएसएस की एक अधिकार प्राप्त समिति ने 17 अप्रैल 2024 को रामदास को दो वर्ष के लिए संस्थान से निलंबित किया था और सभी परिसरों में उनके प्रवेश पर रोक लगा दी थी। यह कार्रवाई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन में भाग लेने और अयोध्या विवाद पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग आयोजित करने को लेकर की गई थी, जिसे संस्थान ने अपने “आचार संहिता और नियमों” का उल्लंघन माना।
संस्थान का आरोप था कि अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति का लाभ लेने के बावजूद रामदास ने राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लिया और टीआईएसएस के नियमों का उल्लंघन किया।
रामदास की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस मुरलीधर ने बॉम्बे हाईकोर्ट में निलंबन को चुनौती दी थी, लेकिन 12 मार्च को हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, “यह रिपोर्ट और उस पर आधारित निलंबन की कार्रवाई रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री पर आधारित है और यह अनुपातिक है। इसमें हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट में टीआईएसएस की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार पांडे ने समिति की कार्रवाई को सही ठहराते हुए कहा कि छात्र ने संस्थान के नियमों का उल्लंघन किया।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए निलंबन को रद्द नहीं किया कि रामदास की शैक्षणिक प्रगति को देखते हुए उन्हें शोध कार्य पूरा करने का अवसर मिलना चाहिए। इस आधार पर अदालत ने निलंबन अवधि को पहले से बिताई गई अवधि तक सीमित कर दिया।
रामदास ने 2015 में टीआईएसएस से मीडिया और सांस्कृतिक अध्ययन में मास्टर्स कार्यक्रम के लिए दाखिला लिया था और उन्हें सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी। उन्होंने 2018 में एमफिल-पीएचडी कार्यक्रम में प्रवेश लिया और 2021 में एमफिल की उपाधि पूरी की। फरवरी 2023 में उन्हें यूजीसी-नेट परीक्षा में प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय फेलोशिप प्रदान की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय जहां एक ओर संस्थान के अनुशासनिक अधिकारों को बरकरार रखता है, वहीं छात्र को आगे बढ़ने का मौका भी प्रदान करता है।