सावधान रहने वालों की ही सहायता करता है कानून, जो अपने अधिकारों पर सोते हैं उनकी नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बेंगलुरु में एक संपत्ति विवाद से जुड़े मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए स्पष्ट कहा कि “कानून उन्हीं की सहायता करता है जो अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहते हैं, न कि उनकी जो उन पर सोते रहते हैं।”

जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने खरीदार की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने संपत्ति खरीद समझौते के तहत दिए गए 20 लाख रुपये की वापसी की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने न तो अपने अनुबंधात्मक दायित्वों को पूरा किया और न ही उसने मुकदमे के दौरान अपनी याचिका में संशोधन कर कोई वैकल्पिक राहत मांगी।

विवाद जुलाई 2007 के एक बिक्री समझौते से जुड़ा था, जिसमें कुल ₹55.50 लाख की संपत्ति के लिए ₹20 लाख अग्रिम राशि के रूप में दिए गए थे और शेष राशि चार महीने में देने की शर्त थी। लेकिन खरीदार ने न तो समय पर बाकी राशि चुकाई और न ही किसी प्रकार की समयवृद्धि की मांग की।

Video thumbnail

अपीलकर्ता ने सबसे पहले ट्रायल कोर्ट में वाद दायर किया, जिसमें उसने विक्रेता को बिक्री विलेख निष्पादित करने और संपत्ति का कब्जा देने का निर्देश देने की मांग की थी। ट्रायल कोर्ट ने यह वाद खारिज कर दिया और हाईकोर्ट ने इस निर्णय को सही ठहराते हुए यह भी कहा कि अपीलकर्ता ने अग्रिम राशि की वापसी की कोई वैकल्पिक याचना नहीं की थी।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट पर कोरोना का कहर: 12 जज पॉजिटिव पाए गए- जानिए विस्तार से

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुकदमे के किसी भी चरण में अपीलकर्ता यह संशोधन कर सकता था कि वह अग्रिम राशि की वापसी की मांग करे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। “यह दोहराने की आवश्यकता नहीं कि कानून उन्हीं की सहायता करता है जो अपने अधिकारों को लेकर सतर्क रहते हैं,” पीठ ने कहा।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अग्रिम और अर्नेस्ट मनी (earnest money) में फर्क होता है। ₹20 लाख की राशि “earnest money” मानी गई — यानी वह राशि जो समझौते को बाध्यकारी बनाने के लिए दी जाती है और अनुबंध पूरा न होने की स्थिति में जब्त की जा सकती है।

READ ALSO  दिल्ली हाई कोर्ट ने MCD, DDA, NDMC शौचालयों के थर्ड पार्टी ऑडिट का निर्देश दिया

कोर्ट ने कहा कि समझौते में स्पष्ट रूप से यह शर्त थी कि यदि खरीदार समय पर शेष भुगतान नहीं करता, तो यह राशि जब्त की जा सकती है। साथ ही यह शर्त भी थी कि यदि विक्रेता अनुबंध का उल्लंघन करता है, तो उसे दी गई राशि का दुगना लौटाना होगा — जिससे यह शर्त पक्षपातपूर्ण नहीं बल्कि संतुलित मानी गई।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए अपील खारिज कर दी कि कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले में कोई “गंभीर त्रुटि या गैरकानूनीपन” नहीं है और अग्रिम राशि की जब्ती न्यायसंगत थी।

READ ALSO  अमनेस्टी इंडिया के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट की रोक
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles