स्त्रियों द्वारा दायर स्त्रीधन वसूली मामलों में कठोर कानूनी साक्ष्य की मांग नहीं की जा सकती: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि विवाह के समय उपहार में मिले स्त्रीधन की वसूली के लिए दायर दीवानी मामलों में अदालतें कठोर कानूनी प्रमाणों की अपेक्षा नहीं कर सकतीं। अदालत ने कहा कि इस प्रकार के मामलों में आपराधिक मुकदमों की तरह कड़े साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि संभावनाओं के संतुलन (preponderance of probabilities) के सिद्धांत के आधार पर न्याय करना चाहिए।

न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन और न्यायमूर्ति एम.बी. स्नेहलता की पीठ ने 11 अप्रैल 2025 को यह निर्णय पारित किया, जिसमें विवाहिता महिला द्वारा दाखिल मेट्रिमोनियल अपील संख्या 291/2020 को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, फैमिली कोर्ट, एर्नाकुलम द्वारा याचिका खारिज किए जाने के आदेश को पलट दिया गया।

पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता पत्नी ने फैमिली कोर्ट में याचिका (O.P. No.1301/2016) दाखिल कर 65.5 सोने की सौवरन और घरेलू सामान (B अनुसूची में वर्णित) की वापसी की मांग की थी। याचिकाकर्ता और प्रतिवादी (पति) का विवाह 9 सितंबर 2010 को संपन्न हुआ था और 22 दिसंबर 2011 को एक संतान का जन्म हुआ था। याचिकाकर्ता का कहना था कि विवाह के समय उसके माता-पिता ने उसे 63 सौवरन सोने के आभूषण और पति को दो सौवरन का एक चेन दिया था। इसके अतिरिक्त रिश्तेदारों ने भी 6 सौवरन के आभूषण उपहार में दिए थे।

याचिका में कहा गया कि विवाह के पश्चात सभी आभूषण याचिकाकर्ता के ससुराल में सुरक्षित रखे गए थे और वह उन्हें अपने साथ लेकर नहीं गई। विवाह में खटास आने के बाद वह गर्भावस्था के दौरान मायके चली गई और आभूषण वापस नहीं किए गए।

प्रतिवादी पति ने इस बात से इनकार किया कि उसने पत्नी के आभूषण अपने पास रखे हैं। उसका दावा था कि पत्नी अपने सभी आभूषण गर्भावस्था के दौरान मायके ले गई थी। फैमिली कोर्ट ने पति की इस दलील को स्वीकार करते हुए याचिका खारिज कर दी थी।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी ने यह स्वीकार किया है कि विवाह के समय याचिकाकर्ता को 63 सौवरन के आभूषण दिए गए थे और उसे भी दो सौवरन की चेन मिली थी। कोर्ट ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता के माता-पिता के पास पर्याप्त आर्थिक साधन थे और उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति की धनराशि से यह आभूषण खरीदे थे, जिसे Ext.A4 दस्तावेज़ से प्रमाणित किया गया।

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फैमिली कोर्ट के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए हाईकोर्ट ने कहा:

“ऐसे मामलों में कठोर साक्ष्य की अपेक्षा करना यथार्थ से परे है… विवाह के समय दिए गए सोने और नकद को महिला की ‘स्त्रीधन’ संपत्ति माना जाता है… सामाजिक और पारिवारिक परिप्रेक्ष्य में ऐसे लेनदेन का कोई लिखित प्रमाण नहीं होता और महिलाओं को अपने ही गहनों तक पहुंच भी नहीं मिलती।”

अदालत ने आगे कहा:

“स्त्रियों द्वारा दायर स्त्रीधन वसूली मामलों में कठोर कानूनी साक्ष्य की मांग नहीं की जा सकती… संभावनाओं के संतुलन का सिद्धांत अपनाकर ही न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए।”

इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने प्रतिवादी के गवाह के तौर पर उपस्थित न होने को लेकर उसके पक्ष के प्रति प्रतिकूल अनुमान (adverse inference) भी लगाया। कोर्ट ने Vidhyadhar v. Manikrao [AIR 1999 SC 1441] का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई पक्ष साक्ष्य नहीं देता, तो उसके दावे पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

एक ईमेल (Ext. B1) को लेकर फैमिली कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला था कि याचिकाकर्ता ने उसमें यह स्वीकार किया है कि वह अपने आभूषण अपने साथ ले गई थी। हाईकोर्ट ने इस निष्कर्ष को खारिज करते हुए कहा कि यह ईमेल वास्तव में याचिकाकर्ता द्वारा अपनी सास द्वारा लगाए गए आरोपों का उल्लेख मात्र था और इसे ‘स्वीकृति’ नहीं माना जा सकता।

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निर्णय

कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता ने अपने 59.5 सौवरन आभूषणों के संबंध में अपने दावे को प्रमाणित कर दिया है और प्रतिवादी के पास उनकी अभिरक्षा थी। हालांकि, याचिकाकर्ता यह प्रमाणित नहीं कर पाई कि शेष 6 सौवरन आभूषण उसे रिश्तेदारों ने दिए थे।

अंततः, हाईकोर्ट ने निम्नलिखित आदेश पारित किया:

“प्रतिवादी याचिकाकर्ता को 59½ सौवरन सोने के आभूषण या उनकी वापसी की तिथि पर उनके बाजार मूल्य के समतुल्य राशि लौटाए।”

हालांकि, ‘B अनुसूची’ में सूचीबद्ध घरेलू सामानों के संबंध में कोर्ट ने कोई राहत नहीं दी, क्योंकि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर पाई कि वे वस्तुएं प्रतिवादी की अभिरक्षा में थीं या उसने उनका दुरुपयोग किया था।

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