सुप्रीम कोर्ट ने अंगड़ी चंद्रन्ना बनाम शंकर एवं अन्य (सिविल अपील संख्या 5401/2025, विशेष अनुमति याचिका (नागरिक) संख्या 6799/2022 से उत्पन्न) में कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्णय को रद्द करते हुए प्रथम अपीलीय न्यायालय के डिक्री को बहाल कर दिया। कोर्ट ने माना कि एक बार संयुक्त परिवार की संपत्ति का विधिवत विभाजन हो जाने के बाद, प्रत्येक व्यक्ति को जो हिस्सा प्राप्त होता है, वह संयुक्त परिवार की संपत्ति नहीं रह जाती और वह उसकी स्व-अर्जित संपत्ति बन जाती है।
मामला पृष्ठभूमि:
अपीलकर्ता अंगड़ी चंद्रन्ना (मूल वाद में प्रतिवादी संख्या 2) ने महादेवपुरा गांव, चल्लकेरे तालुक में स्थित सर्वे संख्या 93, क्षेत्रफल 7 एकड़ 20 गुंटा की संपत्ति को प्रतिवादी संख्या 1 (सी. जयरामप्पा) से 11.03.1993 की पंजीकृत विक्रय विलेख के माध्यम से खरीदा था। प्रतिवादी संख्या 1 ने यह संपत्ति अपने बड़े भाई सी. थिप्पेस्वामी से 16.10.1989 के विक्रय विलेख के जरिये खरीदी थी, जो भाइयों के बीच 09.05.1986 के विभाजन के बाद संपन्न हुआ था।
प्रतिवादी संख्या 1 के पुत्र-पुत्रियों (प्रतिवादीगण) ने वाद संख्या O.S. No.169/1994 दायर कर उक्त संपत्ति में पैतृक अधिकार बताते हुए विभाजन और पृथक कब्जा मांगा था।

ट्रायल कोर्ट ने वाद स्वीकार करते हुए वादियों को विभाजन का अधिकार प्रदान किया। किंतु प्रथम अपीलीय न्यायालय ने प्रतिवादी संख्या 2 की अपील स्वीकार करते हुए डिक्री को निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने द्वितीय अपील में प्रथम अपीलीय न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए ट्रायल कोर्ट का निर्णय बहाल कर दिया। इससे आहत होकर प्रतिवादी संख्या 2 ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
पक्षकारों की दलीलें:
अपीलकर्ता (प्रतिवादी संख्या 2):
- संपत्ति को प्रतिवादी संख्या 1 की स्व-अर्जित संपत्ति बताया गया, जो स्वयं की आय और नारसिंहमूर्ति (DW3) से लिए गए ऋण से खरीदी गई थी।
- तर्क दिया गया कि 1986 के विभाजन के बाद प्रत्येक भाई को मिला हिस्सा उनकी व्यक्तिगत संपत्ति बन गया था।
- जयचंद (मृत) बनाम साहनुलाल एवं अन्य (2024 SCC OnLine SC 3864) तथा गुरनाम सिंह (मृत) बनाम लेहना सिंह (मृत) (2019) 7 SCC 641 पर भरोसा करते हुए कहा गया कि धारा 100 सीपीसी के तहत तथ्यों का पुनर्मूल्यांकन तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कोई महत्वपूर्ण विधि प्रश्न न हो।
- यह भी प्रस्तुत किया कि वादियों को पहले प्रतिवादी संख्या 2 के पक्ष में हुए विक्रय विलेख को निरस्त कराना चाहिए था, जिसके लिए मुरुगन एवं अन्य बनाम केसवा गौंडर (मृत) द्वारा एलआरएस एवं अन्य (2019) 20 SCC 633 का हवाला दिया गया।
प्रतिवादीगण (वादकर्ता):
- वादियों ने दावा किया कि प्रतिवादी संख्या 1 ने संपत्ति संयुक्त परिवार के मूलधन (न्यूक्लियस) से खरीदी थी, अतः यह पैतृक संपत्ति मानी जानी चाहिए।
- उन्होंने तर्क दिया कि नाबालिग पुत्रों का संपत्ति पर पैतृक अधिकार था, और इसके समर्थन में युधिष्ठिर बनाम अशोक कुमार (1987) 1 SCC 204 पर भरोसा किया।
- यह भी कहा गया कि प्रतिवादी संख्या 1 केवल मजदूरी कर इतनी राशि एकत्र नहीं कर सकता था और DW3 से ऋण लिए जाने का कोई विश्वसनीय प्रमाण भी नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:
जस्टिस जे.बी. पारडीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:
धारा 100 सीपीसी के तहत सीमाएं:
- कोर्ट ने जयचंद और चंद्रभान (मृत) बनाम सरस्वती एवं अन्य (2022 INSC 997) का हवाला देते हुए कहा कि जब तक तथ्यात्मक निष्कर्ष प्रतिकूल या बिना साक्ष्य के न हों, हाईकोर्ट को उसमें हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने बिना किसी महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न के साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन कर दिया था।
संपत्ति का स्वरूप:
- कोर्ट ने कहा कि 1986 के विभाजन के बाद प्रतिवादी संख्या 1 को मिला हिस्सा उसकी स्व-अर्जित संपत्ति बन गया था। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:
“जब एक बार संयुक्त परिवार की संपत्ति का विधिपूर्वक विभाजन हो जाता है, तो वह संयुक्त परिवार की संपत्ति नहीं रह जाती और प्रत्येक पक्ष का हिस्सा उसकी स्व-अर्जित संपत्ति बन जाता है।”
न्यूक्लियस का प्रमाण:
- कोर्ट ने दोहराया कि केवल संयुक्त परिवार के अस्तित्व से संपत्ति को संयुक्त नहीं माना जा सकता। आर. देवीनई अम्मल बनाम जी. मीनाक्षी अम्मल (AIR 2004 Mad 529) का हवाला देते हुए कहा गया कि जब तक वादकारी पर्याप्त रूप से संयुक्त परिवार के मूलधन से संपत्ति खरीदने का प्रमाण नहीं देते, तब तक उसे पैतृक नहीं माना जा सकता।
ब्लेंडिंग सिद्धांत:
- कोर्ट ने कहा कि स्व-अर्जित संपत्ति को संयुक्त स्टॉक में मिलाने (ब्लेंडिंग) के लिए स्पष्ट मंशा आवश्यक है, जो इस मामले में नहीं दिखाई दी। केवल परिवार में संपत्ति का आनंद लेना या पृथक खाता न रखना ब्लेंडिंग नहीं कहलाता।
कानूनी आवश्यकता:
- प्रतिवादी संख्या 1 द्वारा संपत्ति को आंशिक रूप से ऋण चुकाने और पुत्री के विवाह हेतु बेचने को कोर्ट ने वैध कानूनी आवश्यकता माना।
हाईकोर्ट की त्रुटियां:
- कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने वाद-विवादित संपत्ति से इतर संपत्तियों पर चर्चा कर दी और यह सराहने में विफल रहा कि विक्रय विलेख में स्पष्ट रूप से संपत्ति को स्व-अर्जित बताया गया था।
निर्णय:
अपील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया:
“प्रतिवादी संख्या 1 ने वाद संपत्ति को DW3 से लिए गए ऋण से खरीदा था, न कि संयुक्त परिवार के मूलधन या आय से, अतः वाद संपत्ति उसकी स्व-अर्जित संपत्ति मानी जाएगी।”
इसके साथ ही कोर्ट ने:
- 12.08.2021 का हाईकोर्ट का निर्णय रद्द कर दिया।
- 21.02.2006 का प्रथम अपीलीय न्यायालय का डिक्री और निर्णय बहाल कर दिया।
- पक्षकारों को अपने-अपने खर्च वहन करने का निर्देश दिया।