पृथकावास की अवधि के दौरान तलाक की सहमति एक वर्ष के पृथकावास की आवश्यकता को प्रभावित नहीं करती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी(1) के तहत एक वर्ष तक अलग रहने की आवश्यकता उस स्थिति में बाधित नहीं होती, जब दंपति पृथकावास की अवधि के दौरान आपसी सहमति से तलाक लेने का निर्णय कर लेते हैं। न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने यह निर्णय एक संयुक्त याचिका के खारिज होने के विरुद्ध दायर अपील को स्वीकार करते हुए सुनाया।

पृष्ठभूमि:

 पक्षकारों का विवाह दिसंबर 2004 में संपन्न हुआ था। उन्होंने आपसी सहमति से विवाह विच्छेद के लिए परिवार न्यायालय में संयुक्त याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा था कि वे जनवरी 2022 से अलग रह रहे हैं और अगस्त 2023 में, बड़ों और रिश्तेदारों के हस्तक्षेप के बाद, आपसी सहमति से तलाक लेने का निर्णय लिया था।

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हालांकि, वैधानिक पृथकावास अवधि पूरी होने और याचिका दायर करने के बाद अनिवार्य छह महीने की प्रतीक्षा अवधि का पालन किए जाने के बावजूद, परिवार न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी। परिवार न्यायालय ने पृथकावास की अवधि की गणना उस तिथि से की जब उन्होंने तलाक लेने का निर्णय लिया था, और इस आधार पर याचिका को अस्वीकार्य मान लिया।

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इस खारिजी आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की गई, जिसमें लगभग 54 दिनों की देरी को माफ करने का भी अनुरोध किया गया। दोनों पक्षकारों ने अपील का समर्थन किया।

पक्षकारों के तर्क: 

अपीलकर्ता की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने तर्क दिया कि पक्षकार जनवरी 2022 से अलग रह रहे हैं और तलाक लेने का निर्णय बाद में लिया गया, और इसके बाद सहवास का कोई पुनः आरंभ नहीं हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि परिवार न्यायालय ने यह मानकर त्रुटि की कि समझौता निरंतर साथ रहने का संकेत देता है।

प्रतिवादी की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने पुष्टि की कि अपीलकर्ता की ओर से प्रस्तुत दलीलें प्रतिवादी के भी दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती हैं।

दोनों पक्षकार न्यायालय के समक्ष उपस्थित थे और उन्होंने यह पुष्टि की कि वे जनवरी 2022 से पृथक रह रहे हैं, उनके बीच कोई आपसी दावा शेष नहीं है, और वे आपसी सहमति से विवाह विच्छेद चाहते हैं, जिसमें बच्चों की अभिरक्षा एक पक्ष के पास रहेगी।

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कोर्ट की टिप्पणियां: 

हाईकोर्ट ने देरी के स्पष्टीकरण को स्वीकार कर अपील को स्वीकार किया। पक्षकारों को सुनने और अभिलेखों का परीक्षण करने के बाद न्यायालय ने अवलोकन किया:

“धारा 13-बी के उप-धारा (1) के तहत एक वर्ष या अधिक के पृथकावास की आवश्यकता याचिका प्रस्तुत करने से पहले की होती है। पृथकावास की अवधि के दौरान यदि आपसी सहमति से तलाक हेतु समझौता होता है, और यदि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि पक्षकारों ने इस समझौते के लिए या उसके पश्चात साथ रहना शुरू कर दिया, तो आपसी सहमति से तलाक लेने का मन बनाना पृथकावास की स्थिति को प्रभावित नहीं करता।”

खंडपीठ ने यह भी उल्लेख किया कि संयुक्त याचिका और हलफनामों में किए गए कथन स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि 2013 से उनके बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं रहा है और वे जनवरी 2022 से अलग रह रहे हैं। पृथकावास की अवधि के दौरान किया गया समझौता केवल संयुक्त रूप से तलाक की याचिका दायर करने के निर्णय को दर्शाता है, न कि सहवास के पुनः आरंभ को।

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निर्णय: 

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि परिवार न्यायालय ने तथ्यों का गलत मूल्यांकन करते हुए पक्षकारों के साथ रहने की धारणा बना ली और समझौते के स्वभाव को गलत समझा। हाईकोर्ट ने पाया कि धारा 13-बी(1) की आवश्यकताएं पूर्ण हैं और कहा:

“हम, पक्षकारों को सुनने और उपरोक्त जांच के उपरांत संतुष्ट हैं कि वे आपसी सहमति से तलाक के पात्र हैं। याचिका में किए गए कथन सत्य हैं।”

इसके अनुरूप, न्यायालय ने निर्देश दिया कि दिसंबर 2004 में संपन्न विवाह को आपसी सहमति से भंग किया जाए और शीघ्र ही डिक्री तैयार की जाए। अपील का निस्तारण कर दिया गया।

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