राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने यमुना नदी के किनारे हो रहे अवैध रेत खनन पर सख्त रुख अपनाते हुए दिल्ली के मुख्य सचिव सहित कई शीर्ष अधिकारियों से जवाब तलब किया है।
यह मामला एनजीटी द्वारा एक स्वतः संज्ञान याचिका के जरिए उठाया गया, जो एक समाचार रिपोर्ट के आधार पर दायर हुई थी। रिपोर्ट में उत्तर दिल्ली के अलीपुर से लेकर गाजियाबाद के पंचायतारा तक यमुना के किनारे बड़े पैमाने पर अवैध खनन का खुलासा किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, खनिकों ने नदी के बीच अस्थायी सड़कें बनाकर अवैध खनन को आसान बना दिया है।
22 अप्रैल को न्यायिक सदस्य जस्टिस अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य अफरोज़ अहमद की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान इस मुद्दे की गंभीरता को रेखांकित किया। उत्तर दिल्ली के जिलाधिकारी ने भी अदालत के समक्ष अवैध सड़कों के जरिये हो रहे खनन की पुष्टि की, साथ ही बताया कि संबंधित क्षेत्र उत्तर-पूर्व दिल्ली के जिलाधिकारी के अधिकार क्षेत्र में आता है, जिससे कार्रवाई में व्यावहारिक कठिनाइयाँ आ रही हैं।
एनजीटी ने कड़ा रुख अपनाते हुए दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) के मुख्य सचिव, पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव और उत्तर-पूर्व दिल्ली के जिलाधिकारी को मामले में पक्षकार बनाया है। अधिकरण ने कहा कि “मामले में उचित और न्यायसंगत निर्णय सुनिश्चित करने के लिए” इन अधिकारियों की उपस्थिति आवश्यक है।
अधिकरण ने संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी, जिसमें एनजीटी पर्यावरणीय और प्रशासनिक विफलताओं की गहन पड़ताल करेगा, जिनके चलते यमुना में इस प्रकार का अवैध खनन संभव हो सका।