सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा को मध्यप्रदेश की 2021 की पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण का विरोध करने के आरोपों को लेकर दर्ज आपराधिक मानहानि मामले को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाने की सलाह दी।
न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा मानहानि कार्यवाही रद्द करने से इनकार करने के आदेश के खिलाफ चौहान की याचिका पर सुनवाई करते हुए दोनों पक्षों को अदालत के बाहर समझौते की कोशिश करने को कहा। पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं महेश जेठमलानी (चौहान की ओर से) और कपिल सिब्बल (तन्खा की ओर से) से कहा, “कृपया हमें यह मामला न सुनना पड़े, आपस में बैठिए और इसे खत्म कीजिए।”
तन्खा ने आरोप लगाया था कि शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने उन्हें ओबीसी आरक्षण का विरोधी बताकर एक “सुनियोजित, दुर्भावनापूर्ण, झूठा और मानहानिपूर्ण” अभियान चलाया जिससे उनकी सार्वजनिक छवि को नुकसान पहुंचा। उन्होंने ₹10 करोड़ का हर्जाना और आईपीसी की धारा 500 के तहत कार्यवाही की मांग करते हुए मामला दर्ज कराया।
सुनवाई के दौरान, कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर चौहान खेद प्रकट करें तो समझौते की संभावना है। इस पर महेश जेठमलानी ने जवाब दिया कि कोई ऐसा कार्य नहीं हुआ जिसे लेकर खेद जताया जाए, लेकिन वह चर्चा को लेकर सकारात्मक हैं।
कोर्ट ने अगली सुनवाई 21 मई तक टाल दी और सिब्बल के इस आश्वासन को रिकॉर्ड किया कि तन्खा, ट्रायल कोर्ट में चौहान की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की याचिका का विरोध नहीं करेंगे।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा भाजपा नेताओं के खिलाफ जारी जमानती वारंट के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी। जेठमलानी ने तर्क दिया कि तन्खा की शिकायत में जिन बयानों का हवाला दिया गया है, वे विधानसभा में दिए गए थे और संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत विधायी विशेषाधिकार प्राप्त हैं।
यह मामला दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यप्रदेश के पंचायत चुनावों पर रोक लगाए जाने के बाद भाजपा नेताओं द्वारा तन्खा पर लगाए गए आरोपों से जुड़ा है। तन्खा का कहना है कि उन्हें झूठे रूप से ओबीसी विरोधी दर्शाकर उनकी राजनीतिक छवि को क्षति पहुंचाई गई।
सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई अब 21 मई को होगी।