सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल 2025 को केरल के रेजी कुमार उर्फ रेजी की मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया, जिसे अपनी नाबालिग बेटी के साथ बलात्कार और अपनी पत्नी व चार बच्चों की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। यह फैसला जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने Reji Kumar @ Reji vs State of Kerala, Criminal Appeal Nos. 1179-1180 of 2023 में सुनाया।
मामला और पृष्ठभूमि
दोषसिद्ध अपीलकर्ता ने केरल हाईकोर्ट के 12 नवम्बर 2014 के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें Death Reference No.1/2010 और Criminal Appeal No.1663/2010 में निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सज़ा को बरकरार रखा गया था। यह सज़ा पलक्कड़ की सेशंस कोर्ट ने S.C. No. 114 of 2009 में सुनाई थी।
प्रकरण जुलाई 2008 में हुई एक भीषण घटना से जुड़ा है जिसमें अपीलकर्ता की पत्नी लिसी और उनकी चार संतानें — पहली बेटी (12 वर्ष), बेटा (10 वर्ष), दूसरी बेटी (9 वर्ष) और तीसरी बेटी (3 वर्ष) — की हत्या कर दी गई थी। शवों को सेप्टिक टैंक और खेतों से बरामद किया गया, जब पड़ोसियों को दुर्गंध महसूस हुई। 23 जुलाई 2008 को थाना पट्टांबी, ज़िला पलक्कड़ में एफआईआर (संख्या 456/08) दर्ज हुई और 23 अक्टूबर 2008 को IPC की धारा 302, 376, 297 और 201 के तहत अंतिम रिपोर्ट दाखिल की गई।
प्रोसीक्यूशन ने 44 गवाह पेश किए, 72 दस्तावेज़ और 36 भौतिक वस्तुएं चिह्नित की गईं। ट्रायल कोर्ट ने छह मुद्दों पर विचार किया जिसमें हत्या, बलात्कार, साक्ष्य मिटाना और उचित सज़ा शामिल थीं।
अदालत ने आरोपी को IPC की धारा 302, 376 और 201 के तहत दोषी ठहराया, जबकि धारा 297 के आरोप से बरी किया। अपराध को क्रूर, राक्षसी और योजनाबद्ध मानते हुए, मौत की सज़ा सुनाई गई। बलात्कार के लिए 10 वर्ष और साक्ष्य मिटाने के लिए 7 वर्ष की कठोर कारावास की सज़ा दी गई, साथ ही ₹1,000-₹1,000 का जुर्माना भी लगाया गया।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
केरल हाईकोर्ट ने सज़ा की पुष्टि करते हुए कहा:
“साक्ष्य इतने निर्णायक हैं कि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि अपीलकर्ता को अपने कृत्य पर कोई पश्चाताप था।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता ने अपने परिवार का सफाया कर पीडब्ल्यू-24 के साथ जीवन बिताने का प्रयास किया — जो पुनर्वास के विकल्प को पूरी तरह समाप्त करता है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा:
“यह अपराध अपराध-परीक्षण (crime test) में खरा उतरता है, लेकिन अपराधी-परीक्षण (criminal test) में असफल रहता है।”
सुप्रीम कोर्ट की पुनर्विचार और फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने motivation, last seen, conduct, और scientific/medical evidence के आधार पर साक्ष्यों की पुनः समीक्षा की। अपीलकर्ता का पीडब्ल्यू-24 से संबंध और अपनी पत्नी पर अवैध संतान होने का शक, उसकी मंशा को दर्शाता है। गवाह पीडब्ल्यू-1, 2, 7 और 9 ने अंतिम बार देखे जाने और संदिग्ध व्यवहार की पुष्टि की। डीएनए रिपोर्ट से 12 वर्षीय बेटी के साथ बलात्कार सिद्ध हुआ। डॉक्टर पीसी इग्नाशियस (PW-31) की मेडिकल रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न और गला दबाकर हत्या की पुष्टि की गई।
कोर्ट ने कहा:
“IPC की धारा 302 (चार बार) और 376 (एक बार) के तहत आरोप सिद्ध होते हैं। निचली अदालतों के निष्कर्ष हम स्वीकार करते हैं।”
सज़ा पर विचार
कोर्ट ने Manoj v. State of Madhya Pradesh, (2023) 2 SCC 353 के अनुसार शमनकारी (mitigating) तथ्यों का परीक्षण किया:
- जेल में अनुशासित आचरण
- गंभीर मानसिक तनाव और बचपन का आघात
- जेल में पुनरुद्धार और समाज सेवा
- पूर्व में कोई आपराधिक इतिहास नहीं
कोर्ट ने कहा:
“हम पाते हैं कि मृत्यु दंड देना न्यायोचित नहीं होगा। अतः अपीलकर्ता को फांसी की कोठरी से हटाया जाता है और वह शेष जीवन जेल में ही बिताएगा।”
इस प्रकार, अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई और मृत्यु दंड को आजीवन कारावास (प्राकृतिक जीवन के अंत तक) में बदल दिया गया।
उद्धरण: Reji Kumar @ Reji vs State of Kerala, Criminal Appeal Nos. 1179-1180 of 2023