सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया जिसमें यह मांग की गई थी कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत जो असाधारण शक्तियां सर्वोच्च न्यायालय को दी गई हैं, वे देश के हाई कोर्ट्स को भी प्रदान की जाएं। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की खंडपीठ ने इस याचिका को “पूरी तरह से गलतफहमी पर आधारित और संविधान के अनुरूप नहीं” बताते हुए अस्वीकार कर दिया।
याचिकाकर्ता, जो स्वयं पेश हुए, ने अदालत से आग्रह किया कि या तो अनुच्छेद 226 — जो हाई कोर्ट्स को रिट जारी करने की शक्ति देता है — की व्याख्या अनुच्छेद 142 के समान की जाए, या फिर इस मुद्दे पर विचार के लिए एक एमिकस क्यूरी (amicus curiae) की नियुक्ति की जाए। लेकिन पीठ ने यह मांग स्पष्ट रूप से ठुकरा दी।
सुनवाई के दौरान जस्टिस ओका ने टिप्पणी की, “हम इस प्रकार की याचना कैसे स्वीकार कर सकते हैं? इसके लिए तो संविधान संशोधन की आवश्यकता होगी।” जब याचिकाकर्ता ने सुझाव दिया कि इस मुद्दे को संविधान पीठ के पास भेजा जा सकता है, तो न्यायमूर्ति ओका ने स्पष्ट किया, “यह अदालत संविधान में संशोधन नहीं कर सकती। इसके लिए आपको संसद के पास जाना होगा।”

पीठ ने यह भी दोहराया कि अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 142 की शक्तियों में मूलभूत अंतर है। अदालत ने कहा, “अनुच्छेद 226, अनुच्छेद 142 के समान नहीं है,” और यह भी जोड़ा कि “अनुच्छेद 142 के अंतर्गत मिलने वाली राहतें विशिष्ट और असाधारण परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए दी गई हैं।”
अदालत ने एमिकस क्यूरी की नियुक्ति या कोई अन्य प्रक्रिया अपनाने से भी इनकार कर दिया और कहा कि इस याचिका में “कोई मेरिट नहीं है।”
अदालत के आदेश की प्रमुख टिप्पणियां:
- “इस याचिका में किया गया निवेदन पूरी तरह से गलतफहमी पर आधारित है। अनुच्छेद 142 के तहत जो शक्ति दी गई है, वह केवल इस न्यायालय को दी गई है, न कि उच्च न्यायालयों को।”
- “इसलिए, हम उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 142 के तहत इस न्यायालय को प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति नहीं दे सकते, जब वह याचिकाकर्ता द्वारा अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका पर विचार कर रहा हो।”
- “एमिकस क्यूरी की नियुक्ति या इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। चूंकि याचिकाकर्ता की याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट में लंबित है, अतः यह याचिका खारिज की जाती है।”