इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने मोहम्मद कासिम उस्मानी व अन्य बनाम राज्य व अन्य [क्रिमिनल मिस. रिट याचिका संख्या 28135/2018] में दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 145 के तहत शुरू की गई कार्यवाही तथा धारा 146(1) CrPC के तहत पारित कुर्की आदेश को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति रजनीश कुमार ने माना कि मजिस्ट्रेट ने “आपात स्थिति” अथवा “शांति भंग की संभावना” जैसी आवश्यक शर्तों को स्थापित किए बिना आदेश पारित किया था, जो कि कानून के अनुसार अनिवार्य है।
पृष्ठभूमि:
विवाद 2015 में शुरू हुआ जब प्रतिवादी संख्या 4 मोहम्मद नफीस ने शहर मजिस्ट्रेट, बहराइच के समक्ष CrPC की धारा 145 के अंतर्गत कार्यवाही प्रारंभ की, यह आरोप लगाते हुए कि एक संपत्ति के कब्जे को लेकर शांति भंग की संभावना है। उक्त संपत्ति उनके अनुसार विरासत में मिली थी। इसके पहले, 2014 में याचियों ने स्थायी निषेधाज्ञा के लिए दीवानी वाद दायर किया था और प्रतिवादी ने भी 2015 में संपत्ति पर अधिकार व विक्रय विलेख रद्द करने की मांग को लेकर एक दीवानी वाद दायर किया। इन दोनों दीवानी मामलों की लंबितता के बावजूद, मजिस्ट्रेट ने 24 जून 2017 को CrPC की धारा 146(1) के तहत कुर्की आदेश पारित किया।
याचिकाकर्ताओं के तर्क:
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उनके पास संपत्ति का दीर्घकालिक और वैध कब्ज़ा है, जिसे कर रसीदों और सीमांकन मानचित्रों जैसे दस्तावेज़ों से प्रमाणित किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट के आदेश का कोई औचित्य नहीं था क्योंकि शांति भंग की कोई तात्कालिक घटना या अद्यतन पुलिस रिपोर्ट नहीं थी। साथ ही, मामला दीवानी विवाद का था जो पहले से दीवानी अदालतों में लंबित था, इसलिए CrPC की धारा 145 के तहत आपराधिक कार्यवाही कानूनन टिकाऊ नहीं थी।

प्रतिवादी के तर्क:
प्रतिवादी मोहम्मद नफीस ने तर्क दिया कि शांति भंग की वास्तविक आशंका के चलते कुर्की की कार्यवाही विधिसंगत रूप से शुरू की गई थी। उन्होंने यह स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता और उनके पूर्वज संपत्ति के कब्जे में थे, लेकिन यह आरोप लगाया कि यह कब्जा उनके परिवार की अनुपस्थिति का अनुचित लाभ उठाकर छलपूर्वक प्राप्त किया गया। उन्होंने एक लंबित प्राथमिकी और स्वामित्व की अस्पष्टता का हवाला देते हुए धारा 145 CrPC के तहत कार्यवाही को उचित ठहराया।
न्यायालय का विश्लेषण:
हाईकोर्ट ने पुलिस रिपोर्ट, मजिस्ट्रेट के तर्क और दीवानी वादों की समयरेखा की गहन समीक्षा की। कोर्ट ने कहा:
“विवादित आदेश विधि की दृष्टि में टिकाऊ नहीं हैं क्योंकि इन्हें यह विचार किए बिना पारित किया गया कि धारा 145 CrPC के तहत आवेदन न्यायोचित था या नहीं… तथा क्या धारा 146 के अंतर्गत परिकल्पित कोई आपात स्थिति थी या नहीं।“
कोर्ट ने यह भी कहा कि दोनों पक्षों ने याचिकाकर्ताओं के कब्जे को स्वीकार किया है और पुलिस रिपोर्ट में भी प्रारंभिक शिकायत के बाद कोई नई आपात स्थिति नहीं दर्शाई गई थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 146 CrPC के अंतर्गत “आपात स्थिति” का होना अनिवार्य है, जो इस मामले में अनुपस्थित थी। साथ ही, दोनों पक्षों के दीवानी वाद पहले से लंबित थे, इसलिए समानांतर आपराधिक कार्यवाही अनुचित थी।
कोर्ट ने Amresh Tiwari बनाम Lalta Prasad Dubey, (2000) 4 SCC 440, तथा Ashok Kumar बनाम उत्तराखंड राज्य, (2013) 3 SCC 366 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा जताते हुए दोहराया:
“जब दीवानी अदालत कब्जे की जांच कर रही हो और पक्षों के पास संपत्ति की सुरक्षा हेतु दीवानी उपाय उपलब्ध हों, तब धारा 145 की कार्यवाही नहीं चलनी चाहिए।“
निर्णय:
हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट द्वारा 24.06.2017 को पारित आदेश एवं पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा 29.08.2018 को पारित आदेश को रद्द करते हुए धारा 145 CrPC के अंतर्गत केस संख्या 23/2015 की समस्त कार्यवाही को समाप्त कर दिया।
कोर्ट ने कहा:
“जब तक स्वामित्व का प्रश्न निश्चित न हो जाए, याचिकाकर्ताओं का दीर्घकालिक और मान्य कब्जा धारा 145 CrPC की कार्यवाही में बाधित नहीं किया जा सकता।“
निर्णय का उद्धरण:
Mohd. Kasim Usmani and Ors. vs. State of U.P. and Ors., Criminal Misc. Writ Petition No. 28135 of 2018