मूल्यांकन में कोई भेदभाव नहीं; विशेषज्ञ के आकलन में न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता: स्टेनोग्राफर भर्ती मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रिट अपील खारिज की

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और जस्टिस रवीन्द्र कुमार अग्रवाल शामिल थे, ने स्टेनोग्राफर पद की भर्ती प्रक्रिया में चयन न होने को चुनौती देने वाली याचिका (रिट अपील संख्या 217/2025) को खारिज कर दिया है। यह अपील याची शुभम सिन्हा द्वारा दायर की गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

शुभम सिन्हा ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा जारी विज्ञापन के आधार पर स्टेनोग्राफर के 65 रिक्त पदों (जिसमें 25 पद अनारक्षित श्रेणी के लिए थे) की भर्ती प्रक्रिया में भाग लिया था। उन्होंने पहले चरण की परीक्षा उत्तीर्ण कर कौशल परीक्षा (Skill Test) दी, जिसमें उन्हें 86 अंक प्राप्त हुए। चयनित अभ्यर्थियों को 87 अंक प्राप्त हुए थे, जिनमें प्रतिवादी क्रमांक 3 मोहम्मद अज़हर और क्रमांक 4 शायना कादरी शामिल थे।

चयन से वंचित होने पर, सिन्हा ने अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका संख्या 506/2024 दायर की, जिसे एकल न्यायाधीश द्वारा 22 जनवरी 2025 को खारिज कर दिया गया। इसके विरुद्ध यह रिट अपील छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (अपील टू डिवीजन बेंच) अधिनियम, 2006 की धारा 2(1) के अंतर्गत दाखिल की गई थी।

अपीलकर्ता की दलीलें

अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता सुश्री नौशीना अफरीन अली ने दलील दी कि मूल्यांकन प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण और पक्षपातपूर्ण थी। उनके अनुसार—

  • अपीलकर्ता ने केवल 13 त्रुटियाँ की थीं, न कि 14, और एक अंक अनजाने में अधिक काट लिया गया।
  • एक अन्य अभ्यर्थी, चंचल सिन्हा, के मूल्यांकन में समान त्रुटि पर केवल एक अंक काटा गया, जबकि अपीलकर्ता के मामले में दो अंक काटे गए।
  • भर्ती विज्ञापन के अनुसार, प्रत्येक गलती पर केवल एक अंक काटने का प्रावधान था। ऐसे में 14 अंकों की कटौती चयन नियमों का उल्लंघन है।
  • यदि सही मूल्यांकन किया जाता तो अपीलकर्ता को 87 अंक मिलते और वह प्रतिवादियों से आयु में अधिक होने के कारण छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट सेवा नियम, 2017 के नियम 12(2) के अनुसार वरीयता के पात्र होते।

प्रतिवादी की ओर से प्रस्तुतियाँ

हाईकोर्ट की ओर से अधिवक्ता श्री आशीष सुराना ने प्रस्तुत किया कि—

  • अंकों की कटौती मूल्यांकन योजना के अनुसार की गई थी।
  • अपीलकर्ता ने एक अतिरिक्त शब्द टाइप कर दिया था जो परीक्षक द्वारा नहीं बोला गया था, इसलिए एक अतिरिक्त अंक की कटौती की गई और कुल 14 अंक घटाए गए।
  • मूल्यांकन का एक ही मापदंड सभी अभ्यर्थियों पर समान रूप से लागू किया गया, अतः किसी प्रकार का भेदभाव या मनमानी नहीं हुई।
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कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय

खंडपीठ ने मूल्यांकन पत्र की जांच करते हुए कहा—

“अपीलकर्ता की उत्तरपुस्तिका के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि अपीलकर्ता ने एक ऐसा शब्द टाइप किया है जिसे परीक्षक ने नहीं बोला था, अतः इसके लिए एक अंक काटा गया है और अन्य 13 त्रुटियों के लिए 13 अंक काटे गए हैं, इस प्रकार कुल 14 अंक की कटौती की गई है।”

अदालत ने पाया कि सभी अभ्यर्थियों के लिए एक समान मूल्यांकन पद्धति अपनाई गई थी, और भेदभाव का कोई आधार नहीं था। साथ ही, यह दोहराया गया कि—

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“उत्तरपुस्तिका का मूल्यांकन विशेषज्ञों का विषय होता है जिसमें इस न्यायालय का हस्तक्षेप अत्यंत सीमित होता है, जब तक कि कोई ठोस कारण न हो, जो इस मामले में उपलब्ध नहीं है।”

इस आधार पर खंडपीठ ने यह निष्कर्ष निकाला कि एकल न्यायाधीश द्वारा रिट याचिका खारिज करने में कोई वैधानिक या अधिकार क्षेत्र संबंधी त्रुटि नहीं की गई थी। न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा—

“अतः रिट अपील, जो कि तथ्यात्मक आधार पर दुर्बल है, खारिज की जाती है। कोई लागत नहीं।”

मामला

शुभम सिन्हा बनाम माननीय छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट, रिट अपील संख्या 217/2025, निर्णय दिनांक: 01.04.2025.

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