मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति की बरी किए जाने की सत्र न्यायालय की व्यवस्था को बरकरार रखा है, जिस पर उसकी पत्नी ने विवाह के दौरान अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था। अदालत ने पत्नी की पुनरीक्षण याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिका में कोई दम नहीं है और सहमति से किए गए यौन कृत्यों तथा भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता न दिए जाने से संबंधित न्यायिक उदाहरणों का हवाला दिया।
यह आदेश इंदौर खंडपीठ के न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी ने 7 अप्रैल को पारित किया, जिसमें उन्होंने उस निर्णय को बरकरार रखा जिसमें इंदौर की अतिरिक्त सत्र अदालत ने 3 फरवरी 2024 को आरोपी पति को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत आरोपों से बरी कर दिया था।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा — “उपरोक्त चर्चा के आलोक में यह पुनरीक्षण याचिका निराधार पाई जाती है और इसे खारिज किया जाता है।”

मामला पत्नी द्वारा लगाए गए इस आरोप से जुड़ा था कि उसके पति ने शादी के दौरान उसकी इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए। पत्नी के वकील ने हाईकोर्ट में दलील दी कि सत्र न्यायालय का फैसला गलत है और धारा 377 IPC के तहत दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध थे।
वहीं, पति के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए यौन संबंध, चाहे वे किसी भी लिंग के हों, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिए गए हैं। उन्होंने IPC की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा में किए गए संशोधनों और भारत में वैवाहिक बलात्कार को अब तक अपराध के रूप में मान्यता न मिलने की बात भी रखी।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और अन्य निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि — “यदि समान या भिन्न लिंग के दो व्यक्तियों के बीच आपसी सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनता है, तो वह धारा 377 IPC के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।”
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि जब तक यह धारा 375 की अपवाद श्रेणी में नहीं आता, तब तक भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है।
इस आधार पर, हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए पत्नी द्वारा दाखिल पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया।