लखनऊ, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग–I, लखनऊ ने अपने हालिया आदेश में विशाल मेगा मार्ट को अनुचित व्यापार प्रथा और सेवा में कमी का दोषी ठहराते हुए ₹25,000 का मुआवजा अदा करने का निर्देश दिया है। आयोग ने यह निर्णय एक ऐसे मामले में सुनाया जिसमें ग्राहक से बिना पूर्व सहमति लिए ₹18 का कैरी बैग शुल्क वसूला गया था।
पीठ में शामिल नीलकंठ सहाय (अध्यक्ष), सोनिया सिंह (सदस्य), और कुमार राघवेन्द्र सिंह (सदस्य) ने यह टिप्पणी की कि आवश्यक पैकेजिंग के लिए ग्राहक से बिना अनुमति शुल्क लेना न केवल स्थापित खुदरा मानकों के विरुद्ध है, बल्कि यह न्यायिक दृष्टांतों के भी खिलाफ है।
मामला क्या था?
शिकायतकर्ता शशिकांत शुक्ला ने विशाल मेगा मार्ट से ₹599 की एक शर्ट खरीदी थी। हालांकि, उन्हें शर्ट एक कैरी बैग में दी गई और कुल ₹616 का बिल थमा दिया गया—जिसमें ₹18 बैग के लिए जोड़े गए थे। श्री शुक्ला ने इस अतिरिक्त शुल्क पर आपत्ति जताई और कहा कि उन्होंने बैग की मांग नहीं की थी, और उनसे इस बाबत कोई सहमति भी नहीं ली गई थी। इसके बावजूद, दुकान द्वारा उन्हें पूरा भुगतान करने को बाध्य किया गया।
इस घटनाक्रम के बाद शिकायतकर्ता ने विशाल मेगा मार्ट को एक कानूनी नोटिस भेजा, जिसे कंपनी ने नजरअंदाज कर दिया। अंततः उन्होंने जिला उपभोक्ता आयोग–I, लखनऊ में शिकायत दर्ज की, जिसमें अनुचित व्यापार प्रथा और सेवा में कमी का आरोप लगाया गया।
आयोग की कार्यवाही और निष्कर्ष
मामले की सुनवाई के दौरान विशाल मेगा मार्ट आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ, जिसके चलते उसके विरुद्ध एकतरफा कार्यवाही की गई।
आयोग ने माना कि खुदरा प्रतिष्ठानों से यह अपेक्षित है कि वे आवश्यक पैकेजिंग जैसे कैरी बैग मुफ्त में उपलब्ध कराएं, जब तक ग्राहक स्पष्ट रूप से इसे लेने से मना न करे। आयोग ने एनसीडीआरसी के वर्ष 2020 के निर्णय Big Bazaar (Future Retail Ltd.) बनाम साहिल दावर पर भरोसा जताया, जिसमें कहा गया था कि कैरी बैग के लिए शुल्क लेना सेवा में कमी और अनुचित व्यापार प्रथा के अंतर्गत आता है।
आयोग का आदेश
इन तथ्यों के आधार पर आयोग ने शिकायतकर्ता के पक्ष में निर्णय देते हुए विशाल मेगा मार्ट को निर्देश दिया कि वह:
- ₹18 की राशि 45 दिनों के भीतर शिकायतकर्ता को वापस करे,
- ₹18 की राशि पर वसूली की तिथि से भुगतान की तिथि तक 9% वार्षिक ब्याज अदा करे,
- मानसिक और शारीरिक पीड़ा के लिए ₹25,000 का मुआवजा दे,
- वाद व्यय के रूप में ₹10,000 अलग से अदा करे।
साथ ही आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि उपरोक्त भुगतान तय समय पर नहीं किए गए, तो ₹35,000 (मुआवजा + वाद व्यय) की राशि पर 12% वार्षिक ब्याज भी देना होगा।
मामले का शीर्षक: शशिकांत शुक्ला बनाम विशाल मेगा मार्ट
फोरम: जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग – I, लखनऊ
शिकायतकर्ता के वकील: एल.पी. यादव