इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि अनुकंपा के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति, चाहे वह मानवीय दृष्टिकोण से उचित प्रतीत हो, संविधानिक प्रावधानों और विधिक आवश्यकताओं की अवहेलना करके नहीं की जा सकती। न्यायमूर्ति अजय भानोट की एकलपीठ ने Writ-A No. 15450 of 2024 तथा उससे संबद्ध याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि अनुकंपा के आधार पर सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति, बिना मेरिट आधारित चयन के, संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21A तथा Dying in Harness Rules, 1999 के अनुरूप नहीं है।
मामला पृष्ठभूमि:
याचिकाएं शैलेन्द्र कुमार, शितेश कुमारी, अनुपम, दीप माला कुशवाह और अनिरुद्ध यादव सहित मृत सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों द्वारा दायर की गई थीं। उन्होंने 04.09.2000 और 15.02.2013 की शासनादेशों के तहत बेसिक शिक्षा परिषद में सहायक अध्यापक पद पर अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी। इन शासनादेशों में केवल न्यूनतम शैक्षणिक अर्हता के आधार पर नियुक्ति का प्रावधान था, जिसमें मेरिट आधारित चयन की आवश्यकता नहीं थी।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें:
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि—

- वे संबंधित शासनादेशों के अंतर्गत सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति के लिए पात्र हैं।
- अनुकंपा नियुक्ति एक अपवाद है, जिसे सामान्य भर्ती नियमों की कसौटी पर नहीं परखा जाना चाहिए।
- चूंकि याचिकाकर्ताओं ने न्यूनतम योग्यता पूरी की है, इसलिए कोर्ट को mandamus जारी कर नियुक्ति का निर्देश देना चाहिए।
राज्य सरकार की दलीलें:
मुख्य स्थायी अधिवक्ता सहित राज्य सरकार के पक्षकारों ने तर्क दिया कि—
- अनुकंपा नियुक्ति एक कल्याणकारी उपाय है, न कि कोई अधिकार।
- Dying in Harness Rules, 1999 के नियम 5 के अनुसार “उपयुक्त नियुक्ति” दी जानी है, केवल पात्रता पर्याप्त नहीं है।
- शिक्षक पद बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकार से जुड़ा है, इसलिए इस पर नियुक्ति केवल पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया से होनी चाहिए।
कोर्ट का विश्लेषण:
1. संविधान और सार्वजनिक नियुक्ति:
न्यायालय ने कहा कि —
“संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत शासकीय पदों पर नियुक्ति केवल योग्यता और प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया से होनी चाहिए, वंशानुक्रम से नहीं।”
2. अनुकंपा नियुक्ति एक सीमित अपवाद:
कोर्ट ने Umesh Kumar Nagpal v. State of Haryana और Shiv Kumar Dubey v. State of U.P. मामलों का हवाला देते हुए कहा:
“अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य सामाजिक प्रतिष्ठा देना नहीं बल्कि आकस्मिक आर्थिक संकट से उबारना होता है। यह नियुक्तियों का एक वैकल्पिक स्रोत नहीं हो सकता।”
3. नियम 5 की व्याख्या:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि —
“पात्रता केवल न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता को दर्शाती है… ‘उपयुक्त नियुक्ति’ का दायरा व्यापक है, पात्रता से उपयुक्तता सुनिश्चित नहीं होती।”
4. सहायक अध्यापक पद के लिए अनुपयुक्तता:
कोर्ट ने कहा कि —
“बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार तभी सुनिश्चित हो सकता है जब सर्वाधिक योग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति हो। केवल पात्रता के आधार पर शिक्षक नियुक्ति से यह अधिकार कमजोर होता है।”
5. शासनादेशों की असंवैधानिकता:
कोर्ट ने 04.09.2000 और 15.02.2013 के शासनादेशों को खारिज करते हुए कहा:
“ये शासनादेश संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21A के विरुद्ध हैं। ये अनुकंपा के आधार पर मेरिटविहीन नियुक्ति को अधिकार में बदल देते हैं, जो अस्वीकार्य है।”
निष्कर्ष:
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा:
“सहायक अध्यापक पद पर अनुकंपा नियुक्ति, यदि वह मेरिट आधारित चयन के बिना दी जाती है, तो वह विधिसम्मत नहीं है।”
अतः सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं।