सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि जब कोई नया न्यायिक निर्णय पूर्ववर्ती निर्णय को पलटता है, तो वह केवल पूर्व व्याख्या को सुधारता है और जब तक स्पष्ट रूप से कुछ और न कहा जाए, तब तक वह निर्णय पूर्वव्यापी रूप से लागू होता है। यह फैसला Directorate Of Revenue Intelligence बनाम राज कुमार अरोड़ा एवं अन्य, आपराधिक अपील संख्या 1319/2013 में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ द्वारा सुनाया गया।
पीठ ने कहा:
“कोई भी निर्णय जो किसी विधि या प्रावधान की व्याख्या करता है, वह उस विधि के अर्थ की घोषणा करता है जैसा कि उसके प्रारंभ से होना चाहिए था, और जो कानून घोषित किया गया है, उसे हमेशा से ही देश का कानून माना जाना चाहिए।”

मामला संक्षेप में
यह अपील नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टेंसेज़ एक्ट, 1985 (NDPS अधिनियम) की धारा 8(c), 22 और 29 के तहत राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) द्वारा की गई कार्यवाही से उत्पन्न हुई थी। मामला 40,001 ग्लास एम्पूल Buprenorphine Hydrochloride की नई दिल्ली स्थित एक कार्यालय से बरामदगी से संबंधित था, साथ ही हरियाणा के जींद स्थित M/s Win Drugs Ltd. से और बरामदगियाँ की गईं।
हालांकि Buprenorphine NDPS अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध है, परंतु यह NDPS नियम, 1985 की अनुसूची I में नहीं है। ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय दोनों ने यह माना कि चूंकि यह पदार्थ नियमों की अनुसूची I में नहीं है, इसलिए NDPS अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं बनता। अतः मामले को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 (D&C अधिनियम) के तहत सुनवाई के लिए वापस भेज दिया गया।
प्रमुख विधिक प्रश्न
क्या Union of India बनाम संजीव वी. देशपांडे (2014) 13 SCC 1 में लिया गया निर्णय, जो यह स्पष्ट करता है कि NDPS अधिनियम की धारा 8(c) अधिनियम की अनुसूचियों में सूचीबद्ध सभी पदार्थों पर लागू होती है, भले ही वे नियमों की अनुसूची I में न हों — वह निर्णय पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा या नहीं?
अपीलकर्ता की दलीलें
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल श्री विक्रमजीत बनर्जी ने DRI की ओर से प्रस्तुत करते हुए कहा कि संजय वी. देशपांडे में लिया गया निर्णय एक घोषणात्मक निर्णय था, जिसने कोई नया कानूनी सिद्धांत नहीं बनाया, बल्कि पूर्ववर्ती व्याख्या को स्पष्ट किया। इसलिए, वह निर्णय पूर्वव्यापी रूप से लागू होना चाहिए।
उन्होंने तर्क दिया:
“संजय वी. देशपांडे में की गई व्याख्या मौजूदा प्रावधान की ही स्पष्टता थी, कोई नया कानून नहीं था। अतः यह निर्णय लंबित मामलों पर भी लागू होगा।”
इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने State of Uttaranchal बनाम राजेश कुमार गुप्ता जैसे निर्णयों पर भरोसा कर गलती की, जो बाद में संजय वी. देशपांडे द्वारा पलट दिए गए थे।
प्रतिवादी की दलीलें
प्रतिवादी की ओर से श्री यशपाल ढींगरा ने तर्क दिया कि संजय वी. देशपांडे का निर्णय केवल भविष्य में लागू होना चाहिए। उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए राजेंद्र गुप्ता बनाम राज्य और राजेश शर्मा बनाम भारत संघ जैसे निर्णयों पर भरोसा किया, जिनमें कहा गया था कि यदि कोई साइकोट्रॉपिक पदार्थ नियमों की अनुसूची I में शामिल नहीं है तो NDPS अधिनियम के तहत अभियोजन नहीं हो सकता।
प्रतिवादियों ने यह भी कहा कि वे पूर्ववर्ती निर्णयों के आधार पर पहले ही आरोपमुक्त हो चुके हैं और अब नए निर्णय को पूर्वव्यापी रूप से लागू करना उनके साथ अन्याय होगा।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:
“डिफ़ॉल्ट नियम यह है कि किसी निर्णय को पलटने वाला नया निर्णय सामान्यतः पूर्वव्यापी रूप से लागू होता है। इसका कारण यह है कि जो निर्णय किसी विधि या प्रावधान की व्याख्या करता है, वह यह घोषित करता है कि उस विधि को उसकी अधिनियमित तिथि से ही कैसे समझा जाना चाहिए था। और जो कानून घोषित किया गया है, उसे हमेशा से ही देश का कानून माना जाएगा।”
पीठ ने यह तर्क खारिज कर दिया कि पूर्वव्यापी प्रभाव से प्रतिवादी को अन्याय होगा। न्यायालय ने कहा:
“चूंकि ‘prospective overruling’ का सिद्धांत सामान्य नियम का अपवाद है, अतः निर्णय को केवल भविष्य के लिए लागू करने के लिए स्पष्ट घोषणा आवश्यक होती है। ऐसी घोषणा के बिना, सामान्य नियम यही रहेगा कि निर्णय पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा।”
कोर्ट ने न्यायिक व्याख्या के पीछे के सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए कहा:
“न्यायाधीश कानून का रचयिता नहीं, बल्कि उसका खोजकर्ता होता है। इसलिए, यदि कोई बाद का निर्णय किसी पहले के निर्णय को बदलता या पलटता है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि उसने नया कानून बनाया है। उसने केवल सही कानूनी सिद्धांत की खोज की है और उसे पूर्वव्यापी रूप से लागू किया है।”
निष्कर्ष और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए अपील को स्वीकार किया कि हाईकोर्ट ने जिन निर्णयों पर भरोसा किया, वे पहले ही पलटे जा चुके थे, इसलिए उन पर आधारित आदेश विधिक रूप से अस्थिर हैं।
न्यायालय ने यह घोषित किया:
- संजय वी. देशपांडे का निर्णय NDPS अधिनियम की धारा 8(c) के अंतर्गत विधिक स्थिति की सही व्याख्या करता है।
- जब तक स्पष्ट रूप से न कहा जाए, वह निर्णय पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा।
- प्रतिवादी को आरोपमुक्त करने और मामले को D&C अधिनियम के तहत भेजने वाले आदेश असंवैधानिक हैं।
न्यायालय ने अपील स्वीकार करते हुए NDPS अधिनियम के अंतर्गत आरोपों को बहाल किया और विशेष न्यायालयों को मामलों की सुनवाई आगे बढ़ाने का निर्देश दिया।