सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में राजस्थान हाईकोर्ट को निर्देश दिया है कि वह सामान्य श्रेणी की दृष्टिबाधित महिला रेखा शर्मा को राज्य में सिविल जज (कनिष्ठ श्रेणी) के रूप में नियुक्त करे। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि या तो रेखा शर्मा को सीधे नियुक्त किया जाए या फिर उनके लिए एक अतिरिक्त (सुपरन्यूमरी) पद सृजित किया जाए।
अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी मामले में “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश पारित कर सके। सुपरीन्यूमरी सीट वह अतिरिक्त पद होता है जो स्वीकृत पदों के अतिरिक्त विशेष परिस्थितियों में सृजित किया जाता है।
रेखा शर्मा, जो सामान्य वर्ग की आर्थिक रूप से कमजोर श्रेणी (EWS) से आती हैं, ने दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के लिए निर्धारित न्यूनतम अंकों से अधिक अंक प्राप्त किए थे, इसके बावजूद उन्हें नियुक्ति से वंचित कर दिया गया था। उनके वकील तल्हा अब्दुल रहमान ने कोर्ट को बताया कि न्यायिक सेवा में PwBD (न्यूनतम मानक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों) के लिए आरक्षित कुल 9 पदों में से केवल 2 पर ही नियुक्ति की गई थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि रेखा शर्मा की नियुक्ति की पूरी संभावना थी।
इस मामले ने दिव्यांग श्रेणी के तहत आरक्षित पदों के आवंटन में गड़बड़ियों को उजागर किया, जहां आरोप है कि दिव्यांगों के लिए आरक्षित पदों को अन्य श्रेणियों के अभ्यर्थियों से भर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप न केवल रेखा शर्मा के लिए न्याय सुनिश्चित करता है बल्कि भविष्य के लिए एक मिसाल भी कायम करता है, जिससे सरकारी नौकरियों में समावेशिता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।