May’ शब्द वाले क्लॉज से बाध्यकारी मध्यस्थता समझौता नहीं बनता: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने ‘Sunil Kumar Samanta बनाम Smt. Sikha Mondal’ मामले में दायर मध्यस्थता याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि लीज डीड में उल्लिखित मध्यस्थता संबंधी क्लॉज कानूनी रूप से बाध्यकारी मध्यस्थता समझौता नहीं है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता सुनील कुमार समंता ने दावा किया कि वह एक रजिस्टर्ड लीज डीड दिनांक 16 अगस्त 2001 के तहत एक दो-मंजिला संपत्ति, मौजा महल, जिला नदिया के पट्टेदार हैं। यह लीज, जो कि पहले प्रतिवादी के पति (अब दिवंगत) जितेन मंडल से निष्पादित की गई थी, 21 वर्षों की अवधि के लिए थी, और इसमें एक क्लॉज था जो पट्टेदार को लीज के नवीनीकरण का विकल्प प्रदान करता था।

लीज की अवधि 15 अगस्त 2022 को समाप्त हो गई। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उन्होंने 21 अगस्त 2021 को भेजे गए पत्र के माध्यम से नवीनीकरण का विकल्प अपनाया, लेकिन प्रतिवादी ने लीज का नवीनीकरण करने से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने की मांग की गई, जिसके लिए लीज डीड में मौजूद एक मध्यस्थता क्लॉज पर याचिकाकर्ता ने भरोसा किया।

मध्यस्थता क्लॉज का विवरण

लीज डीड में वर्णित क्लॉज इस प्रकार था:

“पट्टादाता को पट्टेदार द्वारा विकल्प अपनाए जाने पर उसी अवधि के लिए लीज का नवीनीकरण करना होगा। किराया और अन्य शर्तें आपसी सहमति से तय की जाएंगी और यदि सहमति न हो तो उन पर निर्णय पक्षों द्वारा नियुक्त मध्यस्थ द्वारा किया जा सकता है।”

याचिकाकर्ता का तर्क था कि यह क्लॉज एक बाध्यकारी मध्यस्थता समझौता है और उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जाए।

न्यायालय की विवेचना

इस मामले की सुनवाई कर रहीं न्यायमूर्ति शम्पा सरकार ने मध्यस्थता क्लॉज की भाषा का गहन परीक्षण किया, विशेष रूप से इसमें प्रयुक्त शब्द “may” (कर सकता है) पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के अनेक निर्णयों का उल्लेख किया, जिनमें प्रमुख थे:

  • Wellington Associates Ltd. बनाम Kirit Mehta [(2000) 4 SCC 272],
  • Jagdish Chander बनाम Ramesh Chander [AIR 2007 SC 107],
  • GTL Infrastructure Ltd. बनाम Vodafone India Ltd. [Commercial Arbitration Petition No. 323 of 2021]
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इन संदर्भों में अदालत ने कहा:

“‘May’ शब्द के प्रयोग से यह संकेत मिलता है कि पक्षों ने भविष्य में किसी विवाद की स्थिति में मध्यस्थ के पास जाने की संभावना पर सहमति व्यक्त की थी। यह शब्द बाध्यकारी इरादे को नहीं दर्शाता बल्कि केवल एक विकल्प की ओर इशारा करता है।”

न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 7 के अंतर्गत किसी भी मध्यस्थता समझौते के लिए यह आवश्यक है कि पक्षों के बीच मध्यस्थता के लिए स्पष्ट और बाध्यकारी मंशा हो। वैकल्पिक भाषा, जैसे “may”, ऐसी बाध्यकारी मंशा नहीं दर्शाती।

न्यायमूर्ति सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय M/S Linde Heavy Truck Division Ltd. बनाम Container Corporation of India Ltd. [CS(OS) 23/2012] का भी हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया था कि केवल मध्यस्थता का विकल्प देने वाला क्लॉज वैध मध्यस्थता समझौता नहीं माना जा सकता।

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न्यायालय का निष्कर्ष

न्यायालय ने यह पाया:

“संभव है कि याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता का विकल्प अपनाने के लिए नोटिस जारी किया हो, लेकिन प्रतिवादी ने इसे स्वीकार नहीं किया। यह स्वयं दर्शाता है कि दोनों पक्ष मध्यस्थता के लिए सहमत नहीं थे।”

अतः न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि मध्यस्थता क्लॉज बाध्यकारी नहीं है और पक्षों के बीच कोई प्रवर्तनीय मध्यस्थता समझौता अस्तित्व में नहीं है। इस कारण, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 के अंतर्गत दाखिल याचिका को खारिज कर दिया गया।

मामले का शीर्षक: Sunil Kumar Samanta बनाम Smt. Sikha Mondal
मामला संख्या: AP/15/2022
पीठ: न्यायमूर्ति शम्पा सरकार

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