सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ चार्जशीट दायर हो चुकी है या जिनके खिलाफ समन जारी किया जा चुका है और वे फिर भी कानून की अवहेलना करते हैं, उन्हें अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) का लाभ नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसा आचरण न्याय प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है और आपराधिक मामलों की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। यह निर्णय जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पी.बी. वराले की खंडपीठ ने सुनाया।
यह फैसला Serious Fraud Investigation Office बनाम आदित्य सरड़ा एवं अन्य [Criminal Appeal No. __ of 2025 (@ SLP (Crl.) No. 13956 of 2023)] और इससे जुड़े मामलों में दिया गया, जो गुरुग्राम की विशेष अदालत में लंबित एक आपराधिक शिकायत से संबंधित हैं। इन अपीलों में SFIO ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत दिए जाने को चुनौती दी थी, जबकि आरोपी बार-बार ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी समन और वारंट का पालन नहीं कर रहे थे।
मामले की पृष्ठभूमि
Serious Fraud Investigation Office (SFIO), जो कि कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 211 के तहत गठित एक वैधानिक संस्था है, को कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय ने आदर्श क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (ACCSL) से जुड़ी 145 कंपनियों की जांच सौंपी थी। यह पाया गया कि ACCSL, जो मुख्य रूप से मुकेश मोदी और उनके सहयोगियों द्वारा नियंत्रित थी, ने 4120 करोड़ रुपये की अवैध ऋण राशि आदर्श समूह की कंपनियों को वितरित की।
जांच पूरी होने के बाद SFIO ने COMA/5/2019 के तहत विशेष अदालत, गुरुग्राम में आपराधिक शिकायत दाखिल की, जिसमें 181 आरोपियों को नामजद किया गया था। अदालत ने 3 जून 2019 को संज्ञान लेकर समन और जमानती वारंट जारी किए।
आरोपियों की भूमिका और अदालती कार्यवाही
कोर्ट ने पाया कि कई आरोपी, जिनमें आदित्य सरड़ा भी शामिल हैं, समन और वारंट का पालन करने में विफल रहे। SFIO का आरोप था कि आरोपी जानबूझकर गिरफ्तारी से बचने के लिए छिपते रहे। कई मामलों में आरोपी “पते पर नहीं मिले” या “मकान बंद है” जैसी रिपोर्टिंग सामने आई। इसके चलते विशेष अदालत को बार-बार गैर-जमानती वारंट जारी करने पड़े और अंततः धारा 82 CrPC के तहत भगोड़ा घोषित करने की कार्यवाही शुरू की गई।
इन सबके बावजूद पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने मार्च और अप्रैल 2023 में आरोपियों को अग्रिम जमानत दे दी, जिसे SFIO ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट की विवेचना और टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब आरोपियों को स्पष्ट रूप से पता था कि उनके खिलाफ आपराधिक शिकायत लंबित है, फिर भी वे समन और वारंट का पालन नहीं कर रहे थे, तो उन्हें अग्रिम जमानत का लाभ नहीं मिल सकता।
कोर्ट ने कहा:
“विशेष अदालत में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल करने का तथ्य ही यह सिद्ध करता है कि आरोपी शिकायत की कार्यवाही से अवगत थे। ऐसे में यह तर्क अस्वीकार्य है कि उन्हें जानकारी नहीं थी।”
“विशेष अदालत द्वारा अग्रिम जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद आरोपी अदालत के समक्ष उपस्थित क्यों नहीं हुए, इसका कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।”
कोर्ट ने धारा 82 CrPC के तहत की गई घोषणात्मक कार्यवाही को सही ठहराया और कहा कि जो आरोपी कानून से भाग रहे हों, उन्हें अग्रिम जमानत की सुरक्षा देना न्याय की भावना के विपरीत है।
उल्लेखनीय कानूनी सिद्धांत
कोर्ट ने कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 212(6) का उल्लेख किया, जिसके तहत धारा 447 (धोखाधड़ी) के तहत आरोपित व्यक्ति को तब तक जमानत नहीं दी जा सकती जब तक (i) लोक अभियोजक को विरोध का अवसर न दिया जाए और (ii) अदालत यह संतुष्टि न पाए कि आरोपी दोषी नहीं है और ज़मानत पर रहते हुए कोई अपराध नहीं करेगा।
कोर्ट ने पी. चिदंबरम बनाम प्रवर्तन निदेशालय और वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी बनाम सीबीआई जैसे मामलों का भी हवाला देते हुए कहा:
“अग्रिम जमानत केवल अपवादस्वरूप परिस्थितियों में ही दी जा सकती है, जब यह स्पष्ट हो कि आरोपी को झूठा फंसाया गया है और वह अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेगा।”
और आगे कहा:
“धारा 438 CrPC के तहत अग्रिम जमानत देना एक अपवादात्मक शक्ति है, जिसे सामान्य रूप से प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी मामलों में SFIO की अपील स्वीकार कर ली, जहां आरोपी समन या चार्जशीट के बाद कानून से बचते रहे, और हाईकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत को रद्द कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने अक्षत सिंह, नवीन कुमार और महेश दत्त शर्मा के विरुद्ध SFIO की अपील खारिज कर दी, क्योंकि विशेष अदालत ने स्वयं उन्हें अग्रिम जमानत दी थी और उनके खिलाफ कोई गैर-जमानती वारंट या धारा 82 की कार्यवाही नहीं की गई थी।