वक्फ कानून विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की मांग पर विचार करने के लिए सहमति व्यक्त की है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने अधिवक्ताओं की दलीलों पर प्रतिक्रिया देते हुए शीघ्र न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता को रेखांकित किया।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और वकील निज़ाम पाशा ने अदालत के समक्ष याचिकाएं प्रस्तुत कीं, और त्वरित सुनवाई की मांग की। सिब्बल ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से दलील देते हुए कहा कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव डालता है, इसलिए इसमें तत्काल हस्तक्षेप आवश्यक है।

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याचिकाओं में यह तर्क दिया गया है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम केंद्र सरकार द्वारा अधिकारों के दायरे से परे जाकर मुस्लिम समुदाय के वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के अधिकार में हस्तक्षेप करता है, जो उनके धार्मिक और सामुदायिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, यह अधिनियम राज्य वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता को कमजोर करता है और सभी शक्तियों का केंद्रीकरण करता है, जो संविधान की संघीय संरचना का उल्लंघन है।

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा इस विधेयक को मंजूरी दिए जाने के बाद, जिसे संसद के दोनों सदनों में तीखी बहस के बाद पारित किया गया था, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में व्यापक चिंता देखी जा रही है। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी, और आप के अमानतुल्ला खान जैसे नेताओं ने इस पर आपत्ति जताई है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में इन संशोधनों को “धार्मिक स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी के विरुद्ध एक खतरनाक साजिश” करार दिया है और देश के कई राज्यों में इस कानून को चुनौती देने की योजना बनाई है, जिससे समुदाय की गहरी चिंता जाहिर होती है।

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समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, जो सुन्नी मुस्लिम विद्वानों और उलेमाओं का प्रतिनिधित्व करती है, ने इन संशोधनों को उनके धार्मिक अधिकारों में खुला हस्तक्षेप बताया है, विशेषकर वक्फ संपत्तियों के प्रशासन के संदर्भ में। उनका कहना है कि यह अधिनियम वक्फ की धार्मिक प्रकृति को विकृत करता है और उनके पारंपरिक लोकतांत्रिक प्रशासनिक ढांचे को तोड़ता है।

इसके अलावा, एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) ने भी याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन पर मनमानी रोक लगाता है और मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करता है।

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