जांच के दौरान पुलिस प्रताड़ना पर रोक लगाने के लिए मद्रास हाईकोर्ट ने जारी की सख्त गाइडलाइंस

एक अहम निर्णय में मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा जांच के नाम पर की जाने वाली प्रताड़ना को रोकने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह फैसला नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और आपराधिक जांच में पुलिस की भूमिका के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

न्यायमूर्ति जी.के. इलंथिरैयन ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि भले ही भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 के तहत पुलिस जांच में सामान्यतः अदालत का हस्तक्षेप वर्जित है, लेकिन जब पुलिस द्वारा अधिकारों का दुरुपयोग किया जाए, तो न्यायालय का हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है।

यह फैसला सॉफ्टवेयर कंपनी ‘रिपलिंग’ के सह-संस्थापक प्रसन्ना शंकरनारायणन की याचिका पर आया, जिन्होंने आरोप लगाया कि वैवाहिक विवाद के चलते उनकी पत्नी के कहने पर पुलिस द्वारा उन्हें और उनके परिजनों को प्रताड़ित किया गया। पिछले सप्ताह प्रसन्ना ने सोशल मीडिया मंच X पर कई पोस्ट डालकर आरोप लगाए थे कि उनकी पत्नी ने झूठे मामलों के जरिए उनके बेटे को अगवा करने की कोशिश की और पुलिस इसमें शामिल रही।

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उन्होंने याचिका में बताया कि 7 से 12 मार्च के बीच चेन्नई स्थित होटल और वेकेशन रेंटल में पुलिस ने जबरन उनके बेटे को ले जाने की कोशिश की। उन्होंने यह भी कहा कि इस दौरान बेंगलुरु में उनकी मां और एक दोस्त को भी पुलिस ने परेशान किया।

इन गंभीर आरोपों को संज्ञान में लेते हुए हाईकोर्ट ने तमिलनाडु पुलिस को कई सख्त दिशा-निर्देश जारी किए। इनमें प्रमुख हैं:

  • BNSS की धारा 179 के तहत किसी भी आरोपी या गवाह को पूछताछ के लिए बुलाने से पहले लिखित समन जारी किया जाना अनिवार्य होगा। इसमें स्पष्ट रूप से तारीख और समय का उल्लेख होना चाहिए।
  • पुलिस जांच की प्रत्येक कार्रवाई संबंधित थाने की जनरल डायरी या स्टेशन डायरी में दर्ज की जाए, ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।
  • जांच या पूछताछ के दौरान किसी भी व्यक्ति को प्रताड़ित न किया जाए और सभी प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन किया जाए।
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इसके अलावा, हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक ‘ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार’ मामले में दिए गए निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने को भी दोहराया, जिसमें प्राथमिक जांच और एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं।

मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला पुलिस कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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