क्या मानहानिकारक सामग्री को हाइपरलिंक करना एक नई मानहानि का मामला बनाता है? दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया

एक महत्वपूर्ण निर्णय में, जिसमें मानहानि कानून और इंटरनेट संचार के बीच विकसित होते संबंधों पर विचार किया गया, दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम कानूनी प्रश्न पर फैसला सुनाया: क्या इंटरनेट पर किसी मानहानिकारक सामग्री को हाइपरलिंक करना एक नया मानहानि कृत्य माना जाएगा, जिससे एक नया वाद कारण उत्पन्न होता है?

यह मामला Ruchi Kalra & Ors. बनाम Slowform Media Pvt. Ltd. & Ors. [CS(OS) 944/2024] के रूप में सामने आया, जिसकी सुनवाई माननीय न्यायमूर्ति पुरुषेन्द्र कुमार कौरव ने की और दिनांक 24 मार्च 2025 को एक विस्तृत व मिसाल कायम करने वाला निर्णय सुनाया।

मामले की पृष्ठभूमि

वादीगण में रुचि कालरा, उनके पति आशीष महापात्रा और नितिन जैन शामिल हैं — जो फिनटेक यूनिकॉर्न कंपनियों OFB Tech Pvt. Ltd. और Oxyzo Financial Services Ltd. के सह-संस्थापक हैं। इन कंपनियों का सामूहिक मूल्यांकन ₹44,000 करोड़ है। उनका आरोप था कि Slowform Media Pvt. Ltd. द्वारा संचालित ऑनलाइन मैगजीन The Morning Context में प्रकाशित एक लेख ने उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है।

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यह लेख 17 मई 2023 को प्रकाशित हुआ था, जिसका शीर्षक था: “The work culture of OfBusiness doesn’t like to talk about”, जो वादियों की कंपनी संस्कृति को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करता है। इस लेख को बाद में 8 नवंबर 2023, 29 दिसंबर 2023, और 7 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित तीन अन्य लेखों में हाइपरलिंक किया गया।

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वादीगण ने इस मूल लेख को हटवाने और ₹2.02 करोड़ की क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए तर्क दिया कि बार-बार हाइपरलिंक करना एक पुनः-प्रकाशन है, जिससे हर बार नया वाद कारण उत्पन्न होता है।

मुख्य कानूनी प्रश्न

  1. क्या किसी मानहानिकारक लेख को हाइपरलिंक करना नया प्रकाशन माना जाएगा और इस प्रकार एक नया वाद कारण उत्पन्न करेगा?
  2. क्या यह वाद CPC की आदेश II नियम 2 के अंतर्गत प्रतिबंधित है, क्योंकि पहले से एक संबंधित वाद दायर हो चुका है?
  3. क्या यह वाद सीमावधि अधिनियम, 1963 की धारा 75 के तहत सीमित अवधि के बाहर है?

पक्षकारों के तर्क

वादीगण (कालरा एवं अन्य) की ओर से:

वकीलों श्री तन्मय मेहता, श्री संयम खेतरपाल, एवं सुश्री लीसा संकृत ने यह दलील दी कि मूल लेख को प्रत्येक बार हाइपरलिंक करना पुनःप्रकाशन की श्रेणी में आता है, जिससे हर बार एक नई सीमावधि प्रारंभ होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका पूर्व वाद (CS(OS) 825/2024) एक अलग लेख (7 अक्टूबर 2024) से संबंधित था, न कि मई 2023 वाले लेख से।

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प्रतिवादीगण (Slowform Media एवं अन्य) की ओर से:

वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कीर्तिमान सिंह और उनके साथ श्री कुशल गुप्ता, सुश्री आकांक्षा सिंह, श्री मौलिक खुराना, और श्री राजीव खताना ने यह दलील दी:

  • वाद CPC के आदेश II नियम 2 के तहत प्रतिबंधित है, क्योंकि वादियों को सभी दावे पहले ही वाद में उठाने चाहिए थे।
  • मूल लेख मई 2023 में प्रकाशित हुआ था, अतः एक वर्ष बाद दायर कोई भी वाद सीमावधि से बाहर है।
  • हाइपरलिंक केवल एक संदर्भ है, पुनःप्रकाशन नहीं।

अदालत के अवलोकन

न्यायमूर्ति कौरव ने प्रतिवादियों की प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज करते हुए डिजिटल परिप्रेक्ष्य में “हाइपरलिंकिंग” की विस्तृत व्याख्या की।

अदालत ने कहा:

“हाइपरलिंकिंग हमेशा केवल संदर्भ नहीं होती। यदि इसका उद्देश्य पाठकों को पुनः मानहानिकारक सामग्री की ओर आकर्षित करना है, तो यह पुनःप्रकाशन मानी जा सकती है।”

अदालत ने भारतीय और विदेशी न्यायिक दृष्टांतों का हवाला दिया — जैसे Crookes v. Newton (कैनेडियन सुप्रीम कोर्ट), और Arvind Kejriwal बनाम राज्य, Khawar Butt बनाम Asif Nazir Mir — और स्पष्ट किया कि:

  • यदि हाइपरलिंक करने का उद्देश्य नई पाठकसंख्या तक पहुंचना या सामग्री को पुनर्जीवित करना है, तो यह पुनःप्रकाशन माना जा सकता है।
  • प्रत्येक ऐसा कार्य एक नई सीमावधि आरंभ कर सकता है, जिससे पीड़ित पक्ष को नया वाद दायर करने का अधिकार मिलता है।
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अदालत ने यह भी कहा:

“कानून अतीत में बंधा नहीं रह सकता। जब प्रौद्योगिकी की लहरें उठती हैं, तो कानून को उसका मार्गदर्शक बनना चाहिए, केवल मूकदर्शक नहीं।”

न्यायालय ने यह भी जोड़ा कि जहां सतत हानि हो रही हो — जैसे बार-बार ऑनलाइन प्रकाशन या हाइपरलिंकिंग — वहां हर घटना एक नया वाद कारण और नई सीमावधि उत्पन्न करती है।

निर्णय

  • अदालत ने CPC की आदेश VII नियम 11 के तहत प्रतिवादियों का आवेदन खारिज कर दिया।
  • यह माना गया कि वादीगण के पास prima facie वाद कारण मौजूद है, जो हाइपरलिंकिंग के आधार पर उत्पन्न हुआ है।
  • अदालत ने मामले को गंभीर तथ्यात्मक और कानूनी मुद्दों को देखते हुए सुनवाई हेतु आगे बढ़ाने का निर्देश दिया।

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