बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को विद्याविहार (पूर्व), मुंबई में रेलवे भूमि पर बनी झुग्गियों को हटाने की योजना के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सेंट्रल रेलवे (CR) को नोटिस जारी किया है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते देरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि बेदखली और पुनर्वास के मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन किया जाना अनिवार्य है।
यह याचिका बंजारा सेवा संघ नामक एक सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट और अन्य 104 याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई है। ये सभी 30 जनवरी 2024 को सेंट्रल रेलवे द्वारा जारी बेदखली नोटिस को चुनौती दे रहे हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्तागण समीर ए वैद्य, आदित्य परमार और ज़ैनब खान ने दलील दी कि रेलवे ने अब तक वहां निवास कर रहे लोगों के पुनर्वास के लिए कोई योजना नहीं बनाई है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के 2021 के आदेश में बेदखली से पहले पुनर्वास सुनिश्चित करने का स्पष्ट निर्देश है।
यह कानूनी चुनौती 18 मार्च 2025 को दायर की गई, जिसमें यह भी कहा गया है कि बेदखली नोटिस बिना सुनवाई का अवसर दिए या निवासियों को दस्तावेज़ प्रस्तुत करने का मौका दिए ही जारी कर दिया गया, जो कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

याचिका में बताया गया है कि निवासी पिछले चार दशकों से विद्याविहार में मध्य रेलवे लाइन के पास रह रहे हैं। उन्हें सबसे पहले 14 फरवरी 2022 को एक बेदखली नोटिस मिला, जिसमें 15 दिनों के भीतर भूमि खाली करने को कहा गया था। इसके जवाब में निवासियों ने अधिकार और कब्जे के प्रमाण रेलवे को सौंपे, जिन्हें कथित रूप से नजरअंदाज कर दिया गया। 26 मार्च 2022 को एक आदेश जारी कर उन्हें अनाधिकृत कब्जाधारी घोषित कर दिया गया।
रेलवे अधिकारियों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से संपर्क करने के बाद भी कोई समाधान नहीं निकला, और मार्च 2025 में समुदाय को बताया गया कि 22 फरवरी 2025 को लोकमान्य तिलक टर्मिनस, कुरला क्षेत्र में झुग्गियों को ध्वस्त करने की कार्रवाई की जाएगी।
अब इस याचिका पर आगे की सुनवाई में हाईकोर्ट यह देखेगा कि क्या सेंट्रल रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया और क्या प्रभावित निवासियों को उचित अवसर प्रदान किया गया।