सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल को कड़ी चेतावनी दी कि अगर गरीबों को मुफ्त इलाज नहीं दिया गया, तो अस्पताल को ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (AIIMS) को सौंप दिया जाएगा। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अस्पताल द्वारा लीज समझौते के उल्लंघन पर गंभीर टिप्पणी की, जिसके तहत गरीब मरीजों को बड़े पैमाने पर मुफ्त इलाज मुहैया कराना अनिवार्य था।
यह विवाद उस व्यवस्था से जुड़ा है, जिसमें इंद्रप्रस्थ मेडिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड (IMCL), जो अपोलो अस्पताल का संचालन करती है, को दिल्ली के प्रमुख इलाके में 15 एकड़ ज़मीन मात्र ₹1 के प्रतीकात्मक लीज़ पर दी गई थी। यह शर्त थी कि अस्पताल ‘ना लाभ, ना हानि’ के आधार पर चलेगा। लेकिन कोर्ट ने कहा कि अस्पताल अब पूरी तरह एक व्यावसायिक संस्थान बन चुका है, जहां गरीबों के लिए इलाज कराना लगभग असंभव है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने अस्पताल के सामाजिक सेवा के मूल उद्देश्य से भटकने पर गहरी नाराज़गी जताई। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “अगर हमें पता चला कि गरीबों को मुफ्त इलाज नहीं मिल रहा है, तो हम इस अस्पताल को एआईआईएमएस को सौंप देंगे।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कोर्ट लीज़ की शर्तों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करेगा।

IMCL की उस अपील पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश आया, जिसमें उसने दिल्ली हाईकोर्ट के 2009 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें अस्पताल को गरीब मरीजों के लिए मुफ्त इलाज देने की अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल बताया गया था। हाईकोर्ट ने पहले ही आदेश दिया था कि अपोलो अस्पताल एक-तिहाई बेड गरीब इनडोर मरीजों के लिए आरक्षित करे और 40 प्रतिशत बाहरी मरीजों को मुफ्त सेवाएं दे।
सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल से पिछले पांच वर्षों का ओपीडी और बेड की कुल संख्या का विस्तृत रिकॉर्ड भी मांगा है, ताकि यह देखा जा सके कि समझौते का पालन हुआ है या नहीं। अदालत ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार से यह भी पूछा है कि क्या अस्पताल की लीज़ 2023 के बाद नवीनीकृत हुई है।
यह मामला अब चार हफ्तों बाद फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें अस्पताल प्रबंधन अपनी ओर से हलफनामा दाखिल कर सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अस्पताल निरीक्षण टीमों के साथ पूरा सहयोग करे और आवश्यक दस्तावेज़ उपलब्ध कराए ताकि सार्वजनिक सेवा दायित्वों की ठीक से जांच हो सके।