17 मार्च 2025 को दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना और उसके पायजामे की डोरी तोड़ना बलात्कार के प्रयास के रूप में नहीं गिना जा सकता। न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की अध्यक्षता में अपराध पुनरीक्षण संख्या 1449/2024 में दिए गए इस निर्णय में, अदालत ने विशेष न्यायाधीश, POCSO अधिनियम, कासगंज द्वारा 23 जून 2023 को पारित समन आदेश को आंशिक रूप से संशोधित किया।
अदालत ने आरोपी आकाश और पवन पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO अधिनियम की धारा 18 (अपराध करने के प्रयास) के तहत लगे आरोपों को घटाकर धारा 354(b) IPC (अश्लील आचरण और कपड़े उतारने का प्रयास) और POCSO अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत रखा। इसके साथ ही, निचली अदालत को संशोधित समन आदेश जारी करने का निर्देश दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले की शुरुआत आशा देवी (महादेव की पत्नी) द्वारा 12 जनवरी 2022 को विशेष न्यायाधीश, POCSO अधिनियम, कासगंज के समक्ष दायर एक शिकायत से हुई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि 10 नवंबर 2021 को शाम 5 बजे, जब वह अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ अपने देवरानी के घर, पटियाली (कासगंज) से लौट रही थीं, तब गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक रास्ते में मिले।

शिकायत के अनुसार, पवन ने लड़की को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की पेशकश की, जिस पर उसकी मां आशा देवी ने भरोसा कर लिया। लेकिन रास्ते में, पवन और आकाश ने लड़की के स्तनों को पकड़ लिया, और आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी।
इस बीच, लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे गवाह सतीश और भुरे मौके पर पहुंचे। आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर गवाहों को धमकाया और फरार हो गए। इसके बाद, जब आशा देवी पवन के पिता अशोक के घर गईं, तो उन्होंने कथित रूप से गाली-गलौज और धमकी दी। जब पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की, तो उन्होंने अदालत में अर्जी दाखिल की।
विशेष न्यायाधीश ने इस आवेदन को धारा 200 CrPC के तहत शिकायत के रूप में स्वीकार किया और गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद 23 जून 2023 को पवन और आकाश के खिलाफ धारा 376 IPC और POCSO अधिनियम की धारा 18 के तहत तथा अशोक के खिलाफ IPC की धारा 504 (अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत समन जारी किया। इसी आदेश के खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की।
कानूनी मुद्दे
इस मामले में तीन प्रमुख कानूनी बिंदु उठाए गए:
- बलात्कार के प्रयास के लिए साक्ष्यों की पर्याप्तता – क्या लड़की के स्तनों को पकड़ना, पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे खींचने की कोशिश करना बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में आता है?
- समन आदेश में न्यायिक मन का उचित प्रयोग – क्या विशेष न्यायाधीश ने समन जारी करते समय उचित न्यायिक विवेक का प्रयोग किया था?
- पूर्व शत्रुता के कारण झूठे आरोप – आरोपी पक्ष ने तर्क दिया कि यह मामला एक प्रतिशोधी कदम था, क्योंकि इससे पहले आकाश की मां रंजना ने 17 अक्टूबर 2021 को शिकायतकर्ता के रिश्तेदारों के खिलाफ छेड़छाड़ की FIR दर्ज करवाई थी।
आरोपियों की ओर से अधिवक्ता अजय कुमार वशिष्ठ ने तर्क दिया कि अभियुक्तों पर लगाए गए आरोप IPC की धारा 375 (बलात्कार की परिभाषा) और धारा 511 (प्रयास) के अनुरूप नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में धारा 354(b) IPC और POCSO अधिनियम की संबंधित धाराएं अधिक उचित हैं।
वहीं, शिकायतकर्ता की ओर से अधिवक्ता इंद्र कुमार सिंह और राज्य सरकार के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि समन जारी करने के लिए केवल प्रथम दृष्टया मामला साबित करना आवश्यक होता है, न कि विस्तृत सुनवाई करना।
अदालत का निर्णय और टिप्पणियां
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने मामले के तथ्यों और कानूनी प्रावधानों की गहन समीक्षा के बाद आंशिक रूप से पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली। अदालत ने कहा कि अभियुक्तों के खिलाफ धारा 376 IPC और POCSO अधिनियम की धारा 18 के तहत आरोप बनाए जाने का कोई ठोस आधार नहीं है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा:
“केवल यह तथ्य कि अभियुक्तों ने पीड़िता के स्तनों को पकड़ लिया, एक अभियुक्त ने पायजामे की डोरी तोड़ दी, और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की, लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप से वे भाग गए – यह अपने आप में बलात्कार के प्रयास का मामला नहीं बनाता।”
न्यायालय ने बलात्कार के प्रयास के लिए “दृढ़ संकल्प और सुस्पष्ट प्रयास” की आवश्यकता पर जोर दिया और पूर्ववर्ती मामलों जैसे Rex v. James Lloyd (1836) और Express v. Shankar (1881) का हवाला दिया।
अदालत ने पाया कि अभियुक्तों की हरकतें धारा 354(b) IPC (अश्लील आचरण और कपड़े उतारने की नीयत से हमला) और POCSO अधिनियम की धारा 9(m) व 10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के अंतर्गत आती हैं।
इसके अलावा, न्यायालय ने अशोक के खिलाफ IPC की धारा 504 और 506 के तहत समन आदेश को बरकरार रखा, क्योंकि उनके द्वारा धमकी और गाली-गलौज के आरोप स्वतंत्र रूप से प्रमाणित होते थे।