भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने परमिंदर सिंह बनाम हनी गोयल और अन्य (सिविल अपील संख्या ___________ / 2025, एस.एल.पी. (सिविल) संख्या 4484/2020) मामले में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की है। न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी द्वारा लिखे गए इस निर्णय में निर्देश दिया गया है कि मोटर दुर्घटना मामलों में मुआवजे की राशि सीधे दावेदारों के बैंक खातों में ट्रांसफर की जाए, जिससे कानूनी प्रक्रियाओं में होने वाली देरी और नौकरशाही अड़चनें समाप्त की जा सकें।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 3 जून 2014 की एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा है, जिसमें परमिंदर सिंह, जो उस समय 21 वर्षीय पशु चिकित्सा के छात्र और राज्य स्तर के वॉलीबॉल खिलाड़ी थे, एक कार (PB-03-X-0169) की टक्कर से गंभीर रूप से घायल हो गए। दुर्घटना के परिणामस्वरूप वह 100% विकलांगता से ग्रसित हो गए और उन्होंने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT), बठिंडा से मुआवजे की मांग की।
MACT ने उन्हें ₹5,16,000 का मुआवजा दिया, जिसे पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने बढ़ाकर ₹15,25,600 कर दिया। इस मुआवजे से असंतुष्ट होकर, परमिंदर सिंह ने और अधिक मुआवजे की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
मामले में कानूनी मुद्दे
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य रूप से निम्नलिखित कानूनी प्रश्न थे:
- आय का आकलन और भविष्य की कमाई की हानि – क्या उच्च न्यायालय ने परमिंदर सिंह की संभावित कमाई का गलत आकलन किया था?
- भविष्य की संभावनाओं का अधिकार – क्या एक छात्र होने के बावजूद सिंह को भविष्य की संभावनाओं के नुकसान के लिए अतिरिक्त मुआवजा मिलना चाहिए?
- विकलांगता, चिकित्सा खर्च और दर्द एवं पीड़ा के लिए पर्याप्त मुआवजा – क्या पहले दिए गए मुआवजे में सिंह की दीर्घकालिक चिकित्सा और व्यक्तिगत देखभाल की जरूरतों को ध्यान में रखा गया था?
- मुआवजे के भुगतान का तरीका – मोटर दुर्घटना मामलों में मुआवजे के वितरण की प्रक्रिया को सुचारू करने की आवश्यकता।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य अवलोकन
मुआवजे में बढ़ोतरी
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि निचली अदालतों द्वारा दिया गया मुआवजा अपर्याप्त था और निम्नलिखित सुधार किए:
- आय का पुनर्मूल्यांकन: उच्च न्यायालय द्वारा तय की गई ₹5,600 प्रति माह की आय को ₹7,500 कर दिया गया, यह देखते हुए कि सिंह एक पशु चिकित्सा छात्र और राज्य स्तरीय खिलाड़ी थे।
- भविष्य की संभावनाएं: 40% वृद्धि के साथ सिंह की संभावित मासिक आय को ₹10,500 निर्धारित किया गया।
- विभिन्न श्रेणियों में मुआवजे की पुनर्समीक्षा:
श्रेणी | पहले का मुआवजा | संशोधित मुआवजा |
आय की हानि | ₹15,12,000 | ₹22,68,000 |
चिकित्सा खर्च | ₹1,50,000 | ₹2,66,000 |
परिचारक खर्च | ₹3,00,000 | ₹5,00,000 |
विशेष आहार | ₹25,000 | ₹1,00,000 |
दर्द और पीड़ा | ₹15,000 | ₹1,00,000 |
भविष्य के चिकित्सा खर्च | कोई प्रावधान नहीं | ₹2,00,000 |
विवाह की संभावना का नुकसान | कोई प्रावधान नहीं | ₹2,00,000 |
फिजियोथेरेपी खर्च | कोई प्रावधान नहीं | ₹50,000 |
कुल मुआवजा: ₹36,84,000
मोटर दुर्घटना मामलों में सीधे बैंक खाते में मुआवजा ट्रांसफर करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने भविष्य में सभी मोटर दुर्घटना दावों में मुआवजे की राशि सीधे पीड़ितों के बैंक खातों में जमा करने का निर्देश दिया।
कोर्ट की टिप्पणी:
“आज के डिजिटल युग में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और ऑनलाइन बैंकिंग ने वित्तीय लेन-देन को सरल बना दिया है। अदालत में मुआवजा जमा करने से अनावश्यक देरी और वित्तीय नुकसान होता है। इसलिए, बीमा कंपनियों को अब सीधे दावेदारों के बैंक खातों में मुआवजे की राशि ट्रांसफर करनी होगी।”
इसके प्रमुख लाभ:
✅ तेजी से भुगतान – अदालतों में धनराशि जमा करने और निकासी के लिए अतिरिक्त आवेदन की जरूरत नहीं होगी।
✅ वित्तीय नुकसान से बचाव – वकीलों और दलालों के माध्यम से कटौती को रोका जा सकेगा।
✅ लाभार्थियों के अधिकारों की रक्षा – मुआवजा सीधे पीड़ितों के खाते में पहुंचने से किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं रहेगा।
अन्य मामलों में भी लागू करने का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस प्रणाली को परिवार कानूनों के तहत दिए जाने वाले भरण-पोषण और भूमि अधिग्रहण मुआवजे जैसी अन्य वित्तीय मामलों में भी लागू किया जाए।
संदर्भित केस:
🔹 हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन बनाम प्राण सुख (2010)
🔹 हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम श्रीमती कृष्णा रानी (2011)
इन मामलों में भी दलालों और बिचौलियों से बचने के लिए सीधे भुगतान की सिफारिश की गई थी।
