जोखिमों की जानकारी न देना नजरअंदाज नहीं किया जा सकता: मेडिकल लापरवाही मामले में एनसीडीआरसी ने ₹75 लाख मुआवजे का आदेश दिया

नई दिल्ली: एक महत्वपूर्ण फैसले में, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने डॉ. अनिर्बान चटर्जी, एक वैस्कुलर सर्जन, और नाइटिंगेल डायग्नोस्टिक एंड मेडिकेयर सेंटर प्राइवेट लिमिटेड, कोलकाता को संयुक्त रूप से ₹75 लाख मुआवजा देने का निर्देश दिया। यह मामला एक 17 वर्षीय लड़की से जुड़ा है, जिसकी गलत एम्बोलाइजेशन सर्जरी के कारण दाहिनी टांग काटनी पड़ी। आयोग ने पाया कि सहमति लेने की प्रक्रिया में कोताही बरती गई और विकल्पों की पूरी तरह से जानकारी नहीं दी गई, जिससे यह चिकित्सा लापरवाही का मामला बना।

यह निर्णय प्रेसाइडिंग सदस्य सुभाष चंद्रा और सदस्य AVM जे. राजेंद्र AVSM VSM (सेवानिवृत्त) द्वारा दिया गया। आयोग ने कहा:

“अगर मरीज या उसके अभिभावकों को सभी संभावित जोखिमों और वैकल्पिक उपचारों की पूरी जानकारी नहीं दी जाती है, तो यह चिकित्सा लापरवाही मानी जाएगी।”

Play button

मामले की पृष्ठभूमि

यह शिकायत जयता मित्रा बसु और उनकी नाबालिग बेटी स्रीमयी बसु ने दायर की थी। उन्होंने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 21 के तहत कुल ₹20.41 करोड़ के मुआवजे की मांग की थी।

READ ALSO  धारा 125 Cr.P.C. के तहत व्यभिचार के आरोपों का आकलन किए बिना अंतरिम भरण-पोषण नहीं दिया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

शिकायत के अनुसार, साल 2000 से लड़की के दाहिने ग्लूटियल क्षेत्र में सूजन थी, जिसे कई डॉक्टरों ने न्यूरोफाइब्रोमा बताया। लेकिन 2011 तक यह गांठ बढ़ने लगी, और 2014 में एफएनएसी टेस्ट में इसे एंजियोलिपोमा बताया गया। इसके बाद, डॉ. अनिर्बान चटर्जी ने इसे आर्टेरियोवीनस मैलफॉर्मेशन (AVM) बताया और वैस्कुलर एम्बोलाइजेशन की सिफारिश की।

सर्जरी और जटिलताएं

  • 16 सितंबर 2015: नाइटिंगेल हॉस्पिटल, कोलकाता में एम्बोलाइजेशन किया गया।
  • गलती: सर्जरी के दौरान थोड़ी मात्रा में गोंद (N-Butyl Cyanoacrylate) गलती से दाहिनी टांग की मुख्य धमनी में चली गई
  • 17 सितंबर 2015: डॉ. चटर्जी ने सुधारात्मक प्रक्रिया की और परिवार को आश्वस्त किया कि 95% रक्त संचार बहाल हो गया
  • 18 सितंबर 2015: रक्त प्रवाह पूरी तरह बंद हो गया, गैंग्रीन के लक्षण दिखने लगे
  • 22 सितंबर 2015: दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में डॉक्टरों को लड़की की टांग घुटने के ऊपर से काटनी पड़ी

मुकदमे में मुख्य सवाल

  • क्या डॉक्टर और अस्पताल ने उचित चिकित्सा देखभाल बरती?
  • क्या परिवार को पूरी जानकारी दी गई थी?
  • क्या वैकल्पिक उपचारों पर विचार न करना लापरवाही है?
  • क्या पीड़िता मुआवजे की हकदार है?
READ ALSO  बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने दिल्ली में 107 फर्जी अधिवक्ताओं को निष्कासित किया

दोनों पक्षों की दलीलें

शिकायतकर्ता (एडवोकेट आलोक सक्सेना और साक्षम टी.):

  • जोखिमों की पूरी जानकारी नहीं दी गई
  • AIIMS की रिपोर्ट (29 फरवरी 2024) के अनुसार गोंद का अनुपात (2:1) तय मानकों में था, लेकिन क्लीनिकल जजमेंट के आधार पर इसे कम किया जा सकता था
  • डॉक्टरों ने बायपास सर्जरी जैसे विकल्पों पर विचार नहीं किया, जिससे गैंग्रीन बढ़ा।

डॉ. चटर्जी और अस्पताल (एडवोकेट विकास नौटियाल):

  • AVM एम्बोलाइजेशन एक जोखिमभरी प्रक्रिया है
  • मरीज के माता-पिता ने हाई-रिस्क कंसेंट फॉर्म साइन किया था
  • कार्डियोथोरेसिक सर्जन डॉ. सुसान मुखर्जी के अनुसार बायपास सर्जरी संभव नहीं थी
  • नाइटिंगेल अस्पताल ने सिर्फ सुविधा दी थी, सर्जरी के नतीजों की जिम्मेदारी उनकी नहीं थी

NCDRC का फैसला

  • अस्पताल को गैर-जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, डॉक्टर और अस्पताल संयुक्त रूप से उत्तरदायी
  • हाई-रिस्क कंसेंट फॉर्म में गोंद लीक होने के जोखिम का स्पष्ट उल्लेख नहीं था
  • डॉक्टर का कर्तव्य था कि वह मरीज के माता-पिता को जोखिमों की स्पष्ट और आसान भाषा में जानकारी दे
  • AIIMS रिपोर्ट के मुताबिक, चूक को रोका जा सकता था और अन्य विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिए था
READ ALSO  यूपी पुलिस ने करवाई अपनी किरकरी,पुलिस के मुताबिक दो दिन की बच्ची चल व बोल सकती है

निर्णय और मुआवजा

  • ₹75 लाख का मुआवजा डॉक्टर और अस्पताल संयुक्त रूप से देंगे
  • ₹50,000 का अतिरिक्त मुकदमा खर्च
  • एक महीने में भुगतान नहीं करने पर 12% सालाना ब्याज लागू होगा

सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला

  • समिरा कोहली बनाम डॉ. प्रभा मांचंदा (2008)
  • जेकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य (2005)

इन मामलों में कहा गया था कि जोखिमों की जानकारी न देना चिकित्सा दायित्व का उल्लंघन है

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles