राज्य सरकार ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में दलील दी कि बदलापुर स्कूल यौन उत्पीड़न मामलों के सिलसिले में पहले गिरफ्तार किए गए 24 वर्षीय अक्षय शिंदे की मुठभेड़ में हुई मौत में शामिल पुलिस अधिकारियों के लिए अलग से एफआईआर दर्ज करने की जरूरत नहीं है।
सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने कहा कि दुर्घटनावश मृत्यु रिपोर्ट (एडीआर) पहले ही दाखिल की जा चुकी है, जो इन परिस्थितियों में कानूनी तौर पर एफआईआर के तौर पर पर्याप्त है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ के समक्ष देसाई ने स्पष्ट किया, “आप इसे कोई भी नाम दे सकते हैं, लेकिन कानूनी तौर पर यह एफआईआर है। एडीआर नंबर ही एफआईआर नंबर है।”
इस बयान पर पीठ ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसमें न्यायमूर्ति मोहिते-डेरे ने कहा, “यदि आप यह तर्क दे रहे हैं कि एडीआर एक एफआईआर है, तो यह एक बड़ा बयान है जो आप दे रहे हैं।”

देसाई ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक ‘पीयूसीएल बनाम भारत संघ’ मामले का हवाला दिया, जिसमें हिरासत में हुई मौतों और मुठभेड़ों की जांच के लिए सख्त दिशा-निर्देश दिए गए थे, जिसमें कहा गया था कि अब मुठभेड़ों की जांच के संबंध में विशेष विचार की आवश्यकता है।
पीठ अक्षय शिंदे के पिता अन्ना शिंदे की याचिका पर विचार कर रही थी, जिन्होंने मांग की है कि एक अन्य मामले में पूछताछ के लिए जाते समय संदिग्ध परिस्थितियों में उनके बेटे को गोली मारने के आरोपी अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए।
सरकार के रुख का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मंजुला राव ने तर्क दिया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 173 के तहत पुलिस को संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना मिलने पर एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य किया जाता है।
देसाई ने इस बात पर जोर देते हुए खंडन किया कि राज्य सीआईडी पहले से ही बीएनएसएस की धारा 176 या आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की पूर्व धारा 157 के तहत मामले की जांच कर रही है, जो राव द्वारा बताई गई प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं से अलग है।