भारत के सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि मोटर दुर्घटना दावों में ‘कानूनी प्रतिनिधि’ (Legal Representative) की परिभाषा को व्यापक रूप से लिया जाना चाहिए, जिससे कोई भी आश्रित व्यक्ति मुआवजे का दावा कर सके, न कि केवल मृतक के नजदीकी परिवार के सदस्य ही इसके पात्र हों। यह फैसला जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने साधना तोमर व अन्य बनाम अशोक कुशवाहा व अन्य मामले (सिविल अपील संख्या 3763/2025, विशेष अनुमति याचिका संख्या 6986/2023) में सुनाया।
मामला पृष्ठभूमि
यह मामला एक सड़क दुर्घटना (25 सितंबर 2016) से संबंधित है, जिसमें 24 वर्षीय फल विक्रेता, धीरज सिंह तोमर की मृत्यु हो गई थी। वह ग्वालियर, मध्य प्रदेश में गोहद चौराहा रोड पर एक ऑटो-रिक्शा में सफर कर रहे थे, जो चालक की लापरवाही और तेज रफ्तार के कारण पलट गया। मृतक के परिवार—उनकी माँ, भाई-बहन और पिता—ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मुआवजे के लिए दावा दायर किया।
ग्वालियर की मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) ने 9 अक्टूबर 2018 को ₹9,77,200 का मुआवजा 7% वार्षिक ब्याज के साथ मंजूर किया, लेकिन मृतक के पिता और छोटी बहन को आश्रित नहीं माना। इस फैसले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (ग्वालियर पीठ) ने 19 सितंबर 2022 को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि मुआवजा बीमा कंपनी देगी और बाद में वाहन के मालिक और चालक से इसकी वसूली की जाएगी, क्योंकि चालक के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था।

मुख्य कानूनी मुद्दे
1. मृतक की मासिक आय का निर्धारण:
- MACT और हाईकोर्ट ने मृतक की आय ₹4,500 प्रति माह मानी, 1/3 व्यक्तिगत खर्च घटाकर और भविष्य की संभावनाएँ 40% जोड़कर मुआवजा तय किया।
- अपीलकर्ताओं का दावा था कि मृतक की आय ₹35,000 प्रति माह थी, क्योंकि वह थोक फल व्यापार करता था।
2. आश्रितता पर विचार:
- ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट ने मृतक के पिता और छोटी बहन को आश्रित नहीं माना, जिससे दावेदारों की संख्या घट गई और व्यक्तिगत खर्च कटौती बढ़ गई।
3. मुआवजा गणना के लिए उच्च मल्टीप्लायर (Multiplier) की लागू योग्यता:
- अपीलकर्ताओं ने निचली अदालतों द्वारा लागू मल्टीप्लायर को चुनौती दी और मुआवजे में सुधार की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन और फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालतों द्वारा मृतक की आय के आकलन और पिता व छोटी बहन को आश्रित न मानने पर असहमति जताई और मुआवजा पुनर्गणना की। नया आकलन इस प्रकार रहा:
- मासिक आय: ₹6,500 (न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के 2016 अधिसूचना के अनुसार)।
- वार्षिक आय: ₹78,000 (भविष्य की संभावनाएँ 40% जोड़कर)।
- मल्टीप्लायर: 18 (National Insurance Co. Ltd. बनाम Pranay Sethi [(2017) 16 SCC 680] के आधार पर)।
- व्यक्तिगत खर्च कटौती: 1/4, क्योंकि पाँच दावेदार थे।
- अंतिम मुआवजा राशि: ₹17,52,500।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रमुख रूप से कहा:
“कानूनी प्रतिनिधि की परिभाषा को व्यापक रूप से लिया जाना चाहिए… मोटर वाहन अधिनियम एक लाभकारी कानून है, जिसका उद्देश्य पीड़ितों या उनके परिवारों को आर्थिक राहत प्रदान करना है। कोई भी आश्रित व्यक्ति, जिसे किसी की दुर्घटना में मृत्यु से नुकसान हुआ है, मुआवजा पाने का हकदार है।”
(संदर्भ: N. Jayasree बनाम Cholamandalam MS General Insurance Co. Ltd. [(2022) 14 SCC 712])
इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने मृतक के पिता और छोटी बहन को भी कानूनी प्रतिनिधि माना और निचली अदालतों द्वारा उनके दावे को अस्वीकार करने के निर्णय को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और बीमा कंपनी को ₹17,52,500 मुआवजा भुगतान करने का निर्देश दिया, यह अधिकार देते हुए कि बीमा कंपनी यह राशि चालक और वाहन मालिक से वसूल सकती है।