भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम, 1881 (एनआई अधिनियम) की धारा 138 के तहत चेक बाउंस का मामला उस स्थान पर दर्ज किया जाना चाहिए जहां भुगतानकर्ता (Payee) का बैंक खाता स्थित है, और आरोपी अपनी व्यक्तिगत सुविधा के आधार पर केस स्थानांतरित करने की मांग नहीं कर सकता।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने ट्रांसफर पिटीशन (सीआरएल.) संख्या 608/2024 और अन्य संबंधित मामलों में यह निर्णय सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद श्री सेंधुर एग्रो एंड ऑयल इंडस्ट्रीज (याचिकाकर्ता) और कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड (प्रतिवादी) के बीच एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामले को लेकर उत्पन्न हुआ।
याचिकाकर्ता, जो कि कोयंबटूर स्थित एक व्यवसायिक प्रतिष्ठान है, ने कोटक महिंद्रा बैंक की कोयंबटूर शाखा से ओवरड्राफ्ट सुविधा ली थी। लेकिन समय पर भुगतान न करने के कारण बैंक ने चंडीगढ़ में चेक प्रस्तुत किया, जहां वह बाउंस हो गया, और वहां शिकायत दर्ज करवाई।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चेक से संबंधित पूरी लेन-देन कोयंबटूर में हुई थी, इसलिए मामला चंडीगढ़ से कोयंबटूर स्थानांतरित किया जाए। याचिकाकर्ता ने भाषा की कठिनाई और यात्रा की असुविधा का हवाला देते हुए केस स्थानांतरण की मांग की।
प्रमुख कानूनी प्रश्न
सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्नों की जांच की:
- धारा 138 के तहत क्षेत्राधिकार
- क्या चेक बाउंस का मामला चेक प्रस्तुत करने के स्थान पर दर्ज होगा या जहां खाता धारक (Drawer) का बैंक खाता है?
- सीआरपीसी की धारा 406 के तहत स्थानांतरण का दायरा
- क्या आरोपी केवल व्यक्तिगत असुविधा के आधार पर केस स्थानांतरित करवा सकता है?
- एनआई अधिनियम की धारा 142(2) और 142-ए की व्याख्या
- क्या धारा 142(2) के तहत बैंक को केस दाखिल करने का अधिकार आरोपी के स्थानांतरण के अनुरोध से अधिक महत्वपूर्ण है?
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने स्थानांतरण याचिका खारिज करते हुए चंडीगढ़ कोर्ट के क्षेत्राधिकार को वैध ठहराया और कहा:
“चेक बाउंस मामलों में क्षेत्राधिकार भुगतानकर्ता (Payee) के बैंक के स्थान से निर्धारित होगा, न कि ड्रावर (Drawer) के बैंक से। आरोपी केवल असुविधा के आधार पर धारा 406 सीआरपीसी के तहत स्थानांतरण की मांग नहीं कर सकता।”
अदालत ने योगेश उपाध्याय बनाम अटलांटा लिमिटेड (2023 एससीसी ऑनलाइन एससी 170) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एनआई अधिनियम (संशोधन) 2015 के तहत शिकायत भुगतानकर्ता के बैंक के स्थान पर ही दर्ज होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 142-ए को इसीलिए अधिनियम में जोड़ा गया ताकि एक ही आरोपी द्वारा जारी किए गए चेक बाउंस के सभी मामलों को एक ही न्यायालय में सुना जा सके।
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के तर्क
याचिकाकर्ता (श्री सेंधुर एग्रो एंड ऑयल इंडस्ट्रीज) के तर्क
- चेक को कोयंबटूर में जारी, ड्रॉ और बाउंस किया गया था, इसलिए मामला वहीं चलना चाहिए।
- बैंक ने जानबूझकर चंडीगढ़ में मामला दर्ज किया ताकि याचिकाकर्ता को परेशान किया जा सके।
- चंडीगढ़ में सुनवाई से यात्रा और भाषा की कठिनाई होगी।
- ऋण वसूली के लिए सरफेसी (SARFAESI) कार्यवाही पहले से कोयंबटूर में लंबित थी, इसलिए चंडीगढ़ में मामला दर्ज करना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
प्रतिवादी (कोटक महिंद्रा बैंक) के तर्क
- बैंक को कानूनी रूप से चेक चंडीगढ़ में प्रस्तुत करने और वहीं मामला दर्ज करने का अधिकार है।
- याचिकाकर्ता ने कई भुगतान डिफॉल्ट किए हैं, इसलिए शिकायत कानून के अनुसार की गई है।
- केवल व्यक्तिगत असुविधा के आधार पर धारा 406 सीआरपीसी के तहत मामला स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।
पूर्व निर्णयों का संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को मजबूत करने के लिए निम्नलिखित फैसलों का हवाला दिया:
- दशरथ रुपसिंह राठौड़ बनाम महाराष्ट्र राज्य [(2014) 9 एससीसी 129]
- चेक बाउंस के मामलों का क्षेत्राधिकार जहां चेक प्रस्तुत किया गया और बाउंस हुआ, वहीं होगा।
- ब्रिजस्टोन इंडिया प्रा. लि. बनाम इंदरपाल सिंह [(2016) 2 एससीसी 75]
- धारा 142(2)(ए) के तहत केवल भुगतानकर्ता (Payee) के बैंक की स्थिति ही क्षेत्राधिकार निर्धारित करेगी।
- ए.ई. प्रेमानंद बनाम एस्कॉर्ट्स फाइनेंस लि. [(2004) 13 एससीसी 527]
- केवल असाधारण परिस्थितियों में ही एनआई अधिनियम मामलों में स्थानांतरण याचिका स्वीकार की जा सकती है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्धारित कर दिया कि:
- चेक बाउंस मामलों में केस वहीं दर्ज होगा जहां भुगतानकर्ता का बैंक खाता स्थित है।
- आरोपी केवल व्यक्तिगत असुविधा के आधार पर केस स्थानांतरित नहीं कर सकता।
- धारा 406 सीआरपीसी के तहत स्थानांतरण के अधिकार का उपयोग बहुत ही सीमित परिस्थितियों में किया जाना चाहिए।
