मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में शिक्षकों के लिए अनिवार्य फोटो उपस्थिति प्रणाली को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन राज्य सरकार को महिला शिक्षकों और छात्राओं की गोपनीयता से जुड़े मुद्दों के समाधान का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति आनंद पाठक और न्यायमूर्ति हिर्देश की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि जहां पुरुष शिक्षकों की निजता इस निर्देश से प्रभावित नहीं होती, वहीं महिला शिक्षकों की तस्वीरों के दुरुपयोग की आशंका को देखते हुए समाधान की आवश्यकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील महेश कुमार कोली और एक अन्य प्राथमिक विद्यालय शिक्षक द्वारा राज्य सरकार और अन्य के खिलाफ रिट अपील संख्या 353/2025 के तहत दायर की गई थी। इस याचिका में विदिशा जिले के जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (CEO) द्वारा 28 नवंबर 2024 को जारी किए गए परिपत्र को चुनौती दी गई थी। इस परिपत्र में शिक्षकों को स्कूल में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए “जियो टैप फोटो” को व्हाट्सएप के माध्यम से ब्लॉक रिसोर्स सेंटर (BRC) और जिला शिक्षा केंद्र के कंट्रोल रूम में भेजने का निर्देश दिया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह परिपत्र स्कूल शिक्षा विभाग की 2019 की नीति के विपरीत है, जिसमें स्कूल में शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी शिक्षक एवं अभिभावकों की एकेडमिक कमेटी को सौंपी गई थी। उन्होंने महिला शिक्षकों और छात्राओं की गोपनीयता पर भी चिंता जताई और कहा कि डिजिटल रूप से तस्वीरें भेजने की प्रक्रिया के दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है।

न्यायालय द्वारा विचार किए गए मुख्य कानूनी मुद्दे
- फोटो आधारित उपस्थिति की वैधता: कोर्ट ने जांच की कि क्या फोटो द्वारा उपस्थिति दर्ज कराना मनमाना या अवैध है।
- निजता का अधिकार: याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह परिपत्र विशेष रूप से महिला शिक्षकों और छात्राओं के लिए निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
- शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A): राज्य सरकार ने इस उपाय को शिक्षकों की अनुपस्थिति रोकने और छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक बताया।
- प्रॉक्सी शिक्षक प्रणाली: कोर्ट ने उन शिक्षकों के खिलाफ भी चिंता जताई जो अपनी जगह किसी अन्य को पढ़ाने भेज देते हैं।
कोर्ट का फैसला और टिप्पणियाँ
खंडपीठ ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करना न तो अवैध है और न ही मनमाना। यह निर्देश संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के राज्य के कर्तव्य के अनुरूप है।
कोर्ट ने टिप्पणी की:
“शिक्षक राष्ट्र निर्माता होते हैं। उनका मुख्य कर्तव्य शिक्षा प्रदान करना है, और उपस्थिति सुनिश्चित करने की कोई भी प्रणाली स्वागत योग्य होनी चाहिए, न कि इसे मुकदमों के माध्यम से चुनौती दी जानी चाहिए।”
महिला शिक्षकों की निजता के मुद्दे पर, कोर्ट ने तस्वीरों के संभावित दुरुपयोग की आशंका को स्वीकार किया और राज्य सरकार को एक सुरक्षित विकल्प खोजने का निर्देश दिया। कोर्ट ने सुझाव दिया कि उपस्थिति दर्ज करने के लिए एक समर्पित मोबाइल ऐप विकसित किया जाए।
“यह अपेक्षित है कि राज्य सरकार, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (MAP-IT), महिला कर्मचारियों की निजता की रक्षा करने और उपस्थिति दर्ज कराने की प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए एक व्यावहारिक समाधान लेकर आएगा।”
जब तक कोई समाधान विकसित नहीं हो जाता, कोर्ट ने महिला शिक्षकों को अपनी तस्वीर भेजने के बजाय स्कूल परिसर या प्रधानाचार्य के कार्यालय की तस्वीर भेजकर उपस्थिति दर्ज करने की अनुमति दी।
प्रॉक्सी शिक्षक प्रणाली पर कड़ा रुख
कोर्ट ने प्रॉक्सी शिक्षक प्रणाली (जहां शिक्षक अपनी जगह किसी अन्य व्यक्ति को भेज देते हैं) को गंभीरता से लिया और सरकार को इसे तुरंत रोकने का निर्देश दिया।
“यदि कोई शिक्षक इस तरह की कदाचार में शामिल पाया जाता है, तो उसके खिलाफ कड़ी सेवा और आपराधिक कार्रवाई की जाएगी।”
अंतिम निर्णय और जुर्माना
कोर्ट ने इस अपील को अनुचित करार देते हुए खारिज कर दिया और याचिकाकर्ताओं पर 2,500 रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे एक महीने के भीतर हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी में जमा करने का आदेश दिया। साथ ही, प्रिंसिपल रजिस्ट्रार को यह निर्णय संबंधित अधिकारियों तक भेजने का निर्देश दिया गया।