भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार को प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य व्यक्तियों के घरों को अवैध रूप से गिराने के लिए कड़ी फटकार लगाई। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति एन. कोटेश्वर सिंह ने राज्य सरकार की इस कार्रवाई पर कड़ा ऐतराज जताया और बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए हुए घर तोड़ने के गंभीर प्रभावों पर चिंता व्यक्त की।
यह विवाद उन पाँच घरों को तोड़ने से जुड़ा है, जिन्हें राज्य सरकार ने कथित रूप से दिवंगत गैंगस्टर-राजनीतिज्ञ अतीक अहमद की संपत्ति समझकर गिरा दिया। यह कार्रवाई इतनी तेजी से हुई कि मकान मालिकों को कोई उचित जवाब देने या अपील करने का अवसर ही नहीं मिला। इससे पहले, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिमन्यु भंडारी ने प्रभावित पक्षों का प्रतिनिधित्व किया और जमीन की पहचान में की गई गंभीर गलती को उजागर किया। वहीं, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने दलील दी कि सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया था, लेकिन पीठ ने नोटिस जारी करने और तत्काल तोड़फोड़ करने के तरीके पर कड़े सवाल उठाए।

न्यायमूर्ति ओका ने अपने बयान में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को रेखांकित करते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के अधिकार का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि ध्वस्त किए गए मकानों का पुनर्निर्माण किया जाए और भविष्य में किसी भी कार्रवाई को पूरी तरह कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए किया जाए।