सुप्रीम कोर्ट का फैसला: सुसाइड नोट मात्र दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं, अभियुक्त के प्रत्यक्ष उकसावे का प्रमाण आवश्यक

एक ऐतिहासिक फैसले में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने डाक विभाग के एक कर्मचारी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी चार व्यक्तियों को बरी कर दिया है, और कहा है कि सिर्फ़ सुसाइड नोट ही दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि आरोपी के प्रत्यक्ष और तात्कालिक उकसावे के स्पष्ट सबूत न हों। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के 2013 के फैसले और ट्रायल कोर्ट के 2011 के दोषसिद्धि को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि बिना किसी स्पष्ट इरादे के उत्पीड़न के आरोप और आत्महत्या के कृत्य से सीधे संबंध होने पर धारा 306 आईपीसी के तहत उकसावे की श्रेणी में नहीं आता।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला गुजरात के मेहसाणा में डाक विभाग के कर्मचारी दशरथभाई कर्सनभाई परमार की आत्महत्या से जुड़ा है, जिन्होंने 25 अप्रैल 2009 को अपने घर में ज़हर खाकर जान दे दी थी। उनकी पत्नी जयाबालाबेन परमार ने 14 मई 2009 को पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनके पति को गीताबेन (अभियुक्त संख्या 3) और उसके परिवार वालों द्वारा ब्लैकमेल किया जा रहा था, जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या की।

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अभियोजन पक्ष के अनुसार, गीताबेन, जो मृतक के कार्यालय में सफाईकर्मी थी, ने उन्हें प्रेमजाल में फंसाकर उनके आपत्तिजनक वीडियो और तस्वीरें रिकॉर्ड कर ली थीं। इसके बाद, गीताबेन और उसके परिजनों ने मृतक से धन और गहनों की जबरन मांग की। कथित सुसाइड नोट, जिसे मृतक के बड़े भाई के पास से बरामद किया गया था, में आरोपियों पर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया गया था।

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इस आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 114 (सह-अभियुक्त की उपस्थिति) के तहत मामला दर्ज किया, साथ ही अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत भी आरोप लगाए। 2011 में ट्रायल कोर्ट ने IPC की धाराओं के तहत दोषी ठहराया, लेकिन अत्याचार अधिनियम के आरोपों से बरी कर दिया। 2013 में गुजरात उच्च न्यायालय ने इस दोषसिद्धि को बरकरार रखा, जिसके बाद आरोपी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

कानूनी मुद्दे और सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

  1. क्या केवल सुसाइड नोट के आधार पर दोषसिद्धि संभव है?सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि सुसाइड नोट मात्र एक प्रमाण होता है और इसे दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता, जब तक कि अन्य ठोस प्रमाण उपलब्ध न हों, जो अभियुक्त के प्रत्यक्ष उकसावे को साबित करें।
  2. धारा 306 IPC के तहत ‘उकसावे’ की परिभाषा क्या है?न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आत्महत्या के लिए उकसाने की परिभाषा IPC की धारा 107 में दी गई है, जिसके अनुसार अभियुक्त द्वारा स्पष्ट रूप से उकसाने, साजिश रचने, या जानबूझकर सहायता देने का प्रमाण होना आवश्यक है।
  3. आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में साक्ष्य का मानक क्या होना चाहिए?अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष को संदेह से परे यह साबित करना होगा कि अभियुक्त की हरकतों के कारण मृतक के पास आत्महत्या के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था। केवल यह सिद्ध कर देना कि मृतक तनावग्रस्त था या उसे परेशान किया गया था, पर्याप्त नहीं है।
  4. ‘निकटतम उकसावे’ (Proximate Incitement) का महत्व क्या है?सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी कथित उत्पीड़न या ब्लैकमेलिंग का आत्महत्या से सीधा और तात्कालिक संबंध होना चाहिए। यदि उत्पीड़न और आत्महत्या के बीच समय का अंतराल है, तो अभियुक्त की भूमिका साबित नहीं होती।
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सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और तर्क

  1. सुसाइड नोट अविश्वसनीय पाया गया:सुसाइड नोट मृतक के बड़े भाई के पास से 20 दिन बाद बरामद हुआ, जिससे उसकी प्रमाणिकता पर संदेह उत्पन्न हुआ। पुलिस को प्रारंभिक जांच के दौरान यह नोट नहीं मिला, जिससे यह और संदिग्ध हो गया।
  2. उकसावे का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं:कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिला जिससे यह सिद्ध हो सके कि अभियुक्तों ने आत्महत्या के ठीक पहले कोई प्रत्यक्ष धमकी दी थी या ब्लैकमेल किया था। अदालत ने कहा कि केवल तनावपूर्ण संबंध या पूर्व में हुए विवादों के आधार पर धारा 306 IPC के तहत दोषसिद्धि नहीं हो सकती।
  3. कथित ब्लैकमेलिंग के प्रमाण नहीं:पुलिस अभियुक्तों के पास से कोई धनराशि, गहने या ब्लैकमेलिंग से संबंधित सामग्री (तस्वीरें/वीडियो) बरामद नहीं कर सकी, जिससे इस आरोप पर संदेह पैदा हुआ।
  4. गवाहों के बयान विरोधाभासी:प्रमुख गवाहों (PW-2, PW-6, और PW-7) के बयानों में विरोधाभास था, विशेष रूप से सुसाइड नोट की बरामदगी और ब्लैकमेलिंग के आरोपों को लेकर। मृतक का भाई (PW-7) अपने पहले दिए गए बयान से मुकर गया और कहा कि उसे सुसाइड नोट या ब्लैकमेलिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
  5. ज़हर की बरामदगी नहीं हुई:मृतक के घर से पुलिस को ज़हर की कोई शीशी या कंटेनर नहीं मिला, जिससे यह भी स्पष्ट नहीं हुआ कि ज़हर की खरीद या सेवन कैसे हुआ। आत्महत्या या हत्या के मामलों में ज़हर की उपलब्धता का प्रमाण महत्वपूर्ण होता है।
  6. निकटतम उकसावे (Proximate Incitement) का अभाव:सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्ववर्ती फैसलों (Ramesh Kumar v. State of Chhattisgarh, Rajesh v. State of Haryana) का हवाला देते हुए कहा कि केवल उत्पीड़न के आरोप आत्महत्या के लिए उकसावे को साबित नहीं कर सकते, जब तक कि अभियुक्त द्वारा प्रत्यक्ष, तात्कालिक और स्पष्ट रूप से आत्महत्या के लिए मजबूर करने का प्रमाण न हो।

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