भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राजनीश सिंह उर्फ सोनी के खिलाफ बलात्कार, ब्लैकमेल और आपराधिक धमकी के मामले को रद्द कर दिया। उन पर विवाह के झूठे वादे के बहाने महिला का शोषण करने का आरोप था। न्यायालय ने कहा कि यह “कठिन है विश्वास करना” कि एक शिक्षित महिला 16 साल तक बिना किसी विरोध के इस रिश्ते में बनी रही और बाद में यह दावा किया कि यह धोखे पर आधारित था।
यह फैसला जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने क्रिमिनल अपील नंबर 2025 (SLP (Crl.) No. 8549 of 2023) में सुनाया। इसमें अपीलकर्ता राजनीश सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 24 अप्रैल 2023 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। यह मामला क्रिमिनल केस नंबर 1246/2022 से जुड़ा था, जो फरियादी महिला द्वारा इटावा के बकेवर पुलिस स्टेशन में दर्ज कराया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले की शुरुआत 5 जुलाई 2022 को दर्ज एफआईआर से हुई, जिसमें फरियादी (महिला) ने आरोप लगाया कि आरोपी राजनीश सिंह ने 2006 से विवाह का झूठा वादा कर उनका यौन शोषण किया। महिला के अनुसार, आरोपी पहले पुलिस कांस्टेबल था और बाद में बैंक कर्मचारी बना। इस दौरान उसने बार-बार विवाह का आश्वासन देकर शारीरिक संबंध बनाए।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे नशीला पदार्थ देकर उसके आपत्तिजनक वीडियो बनाए और वर्षों तक ब्लैकमेल करता रहा। महिला ने यह भी दावा किया कि वह गर्भवती हो गई थी, लेकिन आरोपी ने जबरदस्ती गर्भपात करा दिया। इसके अलावा, आरोपी ने उसे धमकाकर पैसे भी वसूले। मामला तब और गंभीर हो गया जब आरोपी ने किसी और से विवाह कर लिया, जिसके बाद फरियादी ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई।
कानूनी मुद्दे
- सहमति और तथ्यात्मक भ्रम:
क्या शिकायतकर्ता की सहमति विवाह के झूठे वादे के कारण बाधित थी और क्या यह धारा 376 आईपीसी के तहत बलात्कार की श्रेणी में आता है? - लंबे समय तक चला संबंध और स्वेच्छा:
क्या 16 साल तक चला रिश्ता, जिसमें दोनों पक्षों की बार-बार सहमति से मुलाकातें हुईं, जबरन संबंध की श्रेणी में आ सकता है? - एफआईआर में देरी और प्रमाणिकता:
पहली बार कथित यौन संबंध बनने के 16 साल बाद दर्ज एफआईआर की देरी, आरोपों की सत्यता का आकलन करने में महत्वपूर्ण कारक बनी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां और निर्णय
न्यायालय ने शिकायतकर्ता के आरोपों में कई विसंगतियां और विरोधाभास पाए। कोर्ट ने कहा:
“यह विश्वास करना कठिन है कि एक शिक्षित और आत्मनिर्भर महिला, जो वयस्क भी है, लगभग 16 वर्षों तक आरोपी की मांगों के आगे झुकती रही और इस दौरान किसी भी स्तर पर यह नहीं बताया कि वह विवाह के झूठे वादे के कारण यौन शोषण का शिकार हो रही थी।”
कोर्ट ने यह भी पाया कि दोनों लंबे समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में थे और जबरदस्ती या धोखे का आरोप, इतने सालों बाद, अविश्वसनीय प्रतीत होता है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति ने विवाह के इरादे से कोई रिश्ता शुरू किया और बाद में परिस्थितियां बदल गईं, तो इसे बलात्कार नहीं कहा जा सकता जब तक यह साबित न हो कि शुरुआत से ही आरोपी का इरादा धोखाधड़ी का था।
कोर्ट ने अपने फैसले में महेश दामु खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024 SCC OnLine SC 3471) और प्रशांत बनाम राज्य (NCT दिल्ली) (2024 SCC OnLine SC 3375) मामलों का हवाला देते हुए कहा कि लंबे समय तक चले सहमति आधारित संबंधों को बाद में बलात्कार नहीं माना जा सकता, सिर्फ इसलिए कि रिश्ता टूट गया।
“यदि कोई महिला लंबे समय तक जानबूझकर शारीरिक संबंध बनाए रखती है, तो यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि वह केवल विवाह के वादे के कारण ऐसा कर रही थी।”
एफआईआर रद्द करने का आदेश
कोर्ट ने पाया कि बलात्कार, ब्लैकमेल और धमकी के आरोप सबूतों से पुष्ट नहीं होते और ऐसा प्रतीत होता है कि शिकायत बाद में निजी दुश्मनी के तहत दर्ज कराई गई।
“पहले कथित यौन संबंध से लेकर एफआईआर दर्ज होने तक 16 वर्षों का लंबा अंतराल, हमें यह विश्वास दिलाने के लिए पर्याप्त है कि यह एक प्रेम संबंध/लिव-इन रिलेशनशिप था, जो बाद में बिगड़ गया।”
इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर और इसके तहत चल रही सभी कार्यवाही को रद्द कर दिया और कहा कि यह मामला कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग का उदाहरण है।