किसी को ‘मियां-तियां’ और ‘पाकिस्तानी’ कहना अनुचित, लेकिन अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि किसी को ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ कहना असभ्य हो सकता है, लेकिन यह एक आपराधिक अपराध नहीं माना जाएगा। शीर्ष अदालत ने 80 वर्षीय हरि नंदन सिंह को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 353, 298 और 504 के तहत लगे सभी आरोपों से बरी कर दिया और निचली अदालतों के आदेश को पलट दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला झारखंड के बोकारो से जुड़ा हुआ है, जहां चास अनुमंडल कार्यालय में कार्यरत एक उर्दू अनुवादक और कार्यवाहक लिपिक (सूचनादाता) ने हरि नंदन सिंह (अपीलकर्ता) के खिलाफ बोकारो सेक्टर-IV थाने में 2020 में एफआईआर दर्ज करवाई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया कि सिंह ने एक सरकारी अधिकारी के कार्य में बाधा पहुंचाई और उन्हें “मियां-तियां” व “पाकिस्तानी” कहकर सांप्रदायिक टिप्पणी की।

शिकायतकर्ता के अनुसार, 18 नवंबर 2020 को वह एक आदेश के तहत अपर समाहर्ता-सह-प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के निर्देश पर एक चपरासी के साथ हरि नंदन सिंह के आवास पर दस्तावेज सौंपने गए थे। पहले तो सिंह ने दस्तावेज लेने से इनकार कर दिया, लेकिन बाद में उन्होंने स्वीकार कर लिया। हालांकि, इसी दौरान उन्होंने कथित रूप से धार्मिक आधार पर अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया और विवाद पैदा करने का प्रयास किया।

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शिकायत के आधार पर पुलिस ने सिंह के खिलाफ आईपीसी की धारा 353 (सरकारी कर्मचारी को कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल प्रयोग), धारा 298 (धार्मिक भावनाएं आहत करने के उद्देश्य से शब्दों का उच्चारण), और धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) के तहत आरोप पत्र दाखिल किया।

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न्यायिक कार्यवाही

मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, बोकारो द्वारा आरोप तय किए जाने के बाद, सिंह ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 239 के तहत खुद को आरोपमुक्त करने के लिए आवेदन किया। हालांकि, प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी, बोकारो ने 24 मार्च 2022 को उनकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं। हालांकि, न्यायालय ने आईपीसी की धारा 323 और 406 के आरोप हटा दिए।

इसके बाद, सिंह ने अपर सत्र न्यायाधीश-1, बोकारो के समक्ष आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसे 20 फरवरी 2023 को खारिज कर दिया गया। फिर, उन्होंने झारखंड उच्च न्यायालय में आपराधिक विशेष याचिका (Criminal Miscellaneous Petition No. 1094 of 2023) दायर की, लेकिन उच्च न्यायालय ने 28 अगस्त 2023 को इस याचिका को भी खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे, ने अपील (Criminal Appeal No. ___ of 2025, arising out of SLP (Crl.) No. 452 of 2024) पर सुनवाई की और 11 फरवरी 2025 को अपना निर्णय सुनाया। अदालत ने इस मामले में लागू कानूनी प्रावधानों की जांच की और सिंह के पक्ष में फैसला दिया, यह कहते हुए कि उनके खिलाफ कोई आपराधिक अपराध नहीं बनता है।

महत्वपूर्ण कानूनी निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाया:

  1. कोई हमला या बल प्रयोग नहीं: धारा 353 IPC के तहत अपराध साबित करने के लिए यह आवश्यक है कि आरोपी ने सरकारी कर्मचारी पर हमला किया हो या बल प्रयोग किया हो। अदालत ने पाया कि सिंह द्वारा ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया था।
  2. धार्मिक भावनाओं को आहत करने का इरादा नहीं: धारा 298 IPC के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि आरोपी ने जानबूझकर किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इरादा रखा हो। न्यायालय ने माना कि सिंह के शब्द अनुचित थे, लेकिन वे अपराध की श्रेणी में नहीं आते।
  3. कोई सार्वजनिक अशांति नहीं: धारा 504 IPC के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि आरोपी के शब्दों से सार्वजनिक शांति भंग होने की स्थिति उत्पन्न हुई हो। अदालत ने पाया कि इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
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अदालत की टिप्पणी

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा:

“अपीलकर्ता द्वारा किए गए कथन असभ्य और अनुचित थे, लेकिन वे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने या सार्वजनिक शांति भंग करने के अपराध के दायरे में नहीं आते। आपराधिक कानून को व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।”

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा आवश्यक है और साधारण टिप्पणियों को अनावश्यक रूप से आपराधिक मामलों में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए।

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अभियुक्त की बरी और अंतिम आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए हरि नंदन सिंह के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। अपील को स्वीकार कर लिया गया और उनके खिलाफ लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया गया।

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