भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि बिना प्रत्यक्ष या पुष्ट प्रमाण के, योगदानात्मक लापरवाही (contributory negligence) को अनुमान के आधार पर नहीं माना जा सकता। यह फैसला प्रभावती एवं अन्य बनाम प्रबंध निदेशक, बैंगलोर मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (सिविल अपील संख्या 3465-3466/2025) में सुनाया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा मृतक को 25% लापरवाह मानने के फैसले को रद्द कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 6 जून 2016 को हुई एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा है, जिसमें 38 वर्षीय व्यक्ति, बूबलन की मृत्यु हो गई। वह अपनी मोटरसाइकिल से क्रुपानिधि जंक्शन से मदिवाला की ओर जा रहे थे, जब बैंगलोर मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (BMTC) की बस (रजिस्ट्रेशन नंबर KA-01/F-9555), जो लापरवाही और तेज गति से चलाई जा रही थी, ने उन्हें टक्कर मार दी।
भयावह टक्कर से उन्हें गंभीर चोटें आईं और उनकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई।
मृतक के आश्रितों—पत्नी और बच्चों—ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के समक्ष ₹3,00,00,000 का मुआवजा दावे के रूप में प्रस्तुत किया, यह तर्क देते हुए कि मृतक परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था और बेंगलुरु के होटल रॉयल ऑर्किड में कार्यकारी हाउसकीपर के रूप में ₹70,000 प्रति माह कमाता था।
न्यायाधिकरण (Tribunal) का निर्णय
IX अतिरिक्त छोटे कारण न्यायालय और अतिरिक्त MACT, बैंगलोर (SCCH-7) ने 12 दिसंबर 2017 के आदेश में मृतक की अंतिम वेतन पर्ची को मान्य करते हुए उनकी मासिक आय ₹62,725 मानी।
न्यायाधिकरण ने निर्णय दिया कि दुर्घटना पूरी तरह BMTC बस चालक की लापरवाही के कारण हुई और ₹75,97,060 का मुआवजा 9% वार्षिक ब्याज के साथ मृतक के परिवार को देने का आदेश दिया।
कर्नाटक हाईकोर्ट का निर्णय
दोनों पक्षों ने कर्नाटक हाईकोर्ट में अपील दायर की।
- याचिकाकर्ताओं (मृतक के परिवार) ने मुआवजा बढ़ाने की मांग की।
- BMTC ने चालक की लापरवाही के निर्णय और मुआवजा राशि को चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने 1 अक्टूबर 2020 को दिए गए निर्णय में यह माना कि दुर्घटना में 75% गलती बस चालक की थी और 25% गलती मृतक की थी।
इसके अलावा,
- न्यायालय ने मृतक की मासिक आय को ₹50,000 मानते हुए मुआवजा ₹77,50,000 तक बढ़ा दिया, लेकिन
- ब्याज दर को घटाकर 6% कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और टिप्पणियाँ
इस फैसले से असंतुष्ट होकर याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने सभी साक्ष्यों की समीक्षा की और पाया कि हाईकोर्ट द्वारा मृतक को 25% लापरवाह मानने का निर्णय गलत था।
सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ:
1. योगदानात्मक लापरवाही प्रमाण के आधार पर होनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने Jiju Kuruvila v. Kunjunjamma Mohan (2013) 9 SCC 166 और Kumari Kiran v. Sajjan Singh (2015) 1 SCC 339 के फैसलों का हवाला देते हुए कहा:
“यदि कोई प्रत्यक्ष या पुष्ट प्रमाण रिकॉर्ड में नहीं है, तो यह मान लेना उचित नहीं होगा कि दुर्घटना दोनों वाहनों की लापरवाही के कारण हुई।”
2. मोटर दुर्घटना मामलों में प्रमाण का मानक
कोर्ट ने Sunita v. Rajasthan SRTC (2020) 13 SCC 468 और Rajwati v. United India Insurance (2022 SCC OnLine SC 1699) को उद्धृत करते हुए कहा:
“मोटर दुर्घटना मामलों में प्रमाण का मानक संभाव्यता के आधार (preponderance of probability) पर होना चाहिए, न कि आपराधिक मामलों में आवश्यक कठोर प्रमाण (beyond reasonable doubt) की तरह।”
3. मृतक की मासिक आय का पुनर्मूल्यांकन
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने मृतक की मासिक आय ₹50,000 मानकर गलती की, जबकि वेतन पर्ची (Ex. P.16) के अनुसार उनका अंतिम वेतन ₹62,725 था।
अतः न्यायाधिकरण द्वारा किया गया मूल्यांकन पुनः बहाल किया गया।
संशोधित मुआवजा गणना
मुआवजा श्रेणी | राशि (₹) |
मासिक आय | 62,725 |
वार्षिक आय | 7,52,700 |
भविष्य संभावनाएँ (40%) | 10,53,780 |
कटौती (1/4) | 7,90,335 |
गुणक (Multiplier – 15) | 1,18,55,025 |
संपत्ति हानि (Loss of Estate) | 18,150 |
अंतिम संस्कार खर्च (Funeral Expenses) | 18,150 |
सहानुभूति हानि (Loss of Consortium) | 1,93,600 |
कुल मुआवजा | 1,20,84,925 |
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और हाईकोर्ट द्वारा दिए गए मुआवजे को संशोधित कर ₹1,20,84,925 कर दिया।
इसके अलावा,
- न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारित 9% वार्षिक ब्याज दर बहाल की गई।
- मृतक को 25% योगदानात्मक लापरवाह मानने का निर्णय रद्द किया गया।
- BMTC बस चालक को पूरी तरह दोषी माना गया।
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