भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल किसी निष्पादित मामले को पुनः नहीं खोल सकता और न ही अपने ही अंतिम निर्णय की पुनरावलोकन कर सकता है। शीर्ष अदालत ने असम के फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफ.टी.) द्वारा पारित एक आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें उसने पहले के एक निर्णय की पुनः समीक्षा की थी, जिसमें रेजिया खातून @ रेज़िया खातून को भारतीय नागरिक घोषित किया गया था।
न्यायालय का निर्णय
यह निर्णय न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ द्वारा क्रिमिनल अपील संख्या ____/2025 (विशेष अनुमति याचिका (क्रिमिनल) संख्या 12481/2023 से उत्पन्न) में सुनाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने रेजिया खातून की अपील को स्वीकार कर लिया और गुवाहाटी हाईकोर्ट के दिनांक 9 जून, 2023 के फैसले (रिट याचिका (सी) संख्या 2811/2020) को निरस्त कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) आदेश, 1964 के तहत पारित दो परस्पर विरोधी आदेशों से उत्पन्न हुआ, जो विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3 के अंतर्गत जारी किए गए थे।
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पहला ट्रिब्यूनल आदेश (15 फरवरी, 2018)
एफ.टी. केस संख्या 14/2016 में, फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्यों पर विचार करने के बाद यह निर्णय दिया कि रेजिया खातून कोई बांग्लादेशी प्रवासी नहीं हैं, जिन्होंने 25 मार्च, 1971 के बाद भारत में प्रवेश किया हो। यह आदेश असम सरकार द्वारा किए गए संदर्भ पर पारित किया गया था, और राज्य की ओर से एक सहायक सरकारी अधिवक्ता उपस्थित थे।
दूसरा ट्रिब्यूनल आदेश (24 दिसंबर, 2019)
पहले आदेश के बावजूद, असम सरकार द्वारा एफ.टी. केस संख्या 2854/2012 में एक नया संदर्भ प्रस्तुत किया गया। ट्रिब्यूनल ने इस नए संदर्भ को स्वीकार कर लिया और यह दावा किया कि उसे पिछले कार्यवाही के दस्तावेजों और निष्कर्षों की समीक्षा करने का अधिकार है। इस आदेश के तहत रेजिया खातून को फिर से एक लिखित बयान प्रस्तुत करने के लिए कहा गया, जबकि पूर्व में उन्हें भारतीय नागरिक घोषित किया जा चुका था।
रेजिया खातून ने इस आदेश को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत गुवाहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल को मामले की पुनः जांच करने का अधिकार देते हुए res judicata (किसी निष्पादित मामले की पुनर्विचार निषेध की कानूनी अवधारणा) को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस निर्णय से असहमति जताते हुए स्पष्ट किया कि फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल को अपने ही अंतिम निर्णय की समीक्षा करने और उसे दोबारा खोलने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने टिप्पणी की:
“स्पष्ट रूप से प्रथम आदेश सभी साक्ष्यों और राज्य सरकार के प्रतिनिधित्व के बाद पारित किया गया था। ट्रिब्यूनल द्वारा अपने ही निर्णय की पुनः समीक्षा करने का प्रयास, उसके स्वयं के निर्णय के विरुद्ध अपील करने जैसा है—जो कि कानूनन अस्वीकृत है।”
इसके अलावा, न्यायालय ने असम सरकार की कार्रवाई पर भी सवाल उठाए:
“राज्य सरकार पहले आदेश की पक्षकार थी, लेकिन उसने इसे हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी और न ही इसकी पुनः सुनवाई की मांग की। इसके बजाय, उसने उसी ट्रिब्यूनल के समक्ष नई कार्यवाही शुरू कर दी, जो कि पूरी तरह अवैध है।”
न्यायालय का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे ट्रिब्यूनल आदेश और गुवाहाटी हाईकोर्ट के निर्णय को निरस्त करते हुए निम्नलिखित निष्कर्ष दिए:
- 2018 में पारित ट्रिब्यूनल आदेश, जिसमें अपीलकर्ता को भारतीय नागरिक घोषित किया गया था, अंतिम और बाध्यकारी रहेगा।
- फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल अपने ही निष्पादित मामलों की समीक्षा या पुनरावलोकन नहीं कर सकता।
- राज्य सरकार और भारत संघ अब 2018 के आदेश को चुनौती नहीं दे सकते, क्योंकि उन्होंने उस समय उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने क्वासी-न्यायिक निकायों (quasi-judicial bodies) की कानूनी सीमाओं को स्पष्ट किया और यह सुनिश्चित किया कि फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर पहले से निष्पादित मामलों को दोबारा न खोले। यह निर्णय रेजिया खातून के लिए बड़ी राहत लेकर आया है, जिनकी नागरिकता को एक बार न्यायालय द्वारा मान्यता मिलने के बावजूद बार-बार चुनौती दी जा रही थी।
विधिक प्रतिनिधित्व
अपीलकर्ता रेजिया खातून की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पियूष कांति रॉय, एडवोकेट काकाली रॉय, राजेश कुमार चौरेसिया (ए.ओ.आर.), सुजीत कुमार, शैलेंद्र कुमार निर्मल और नितिन कुमार गुप्ता उपस्थित थे।
भारत संघ और असम राज्य की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज सहित एडवोकेट शुभदीप रॉय, शरत नंबियार, अनुज श्रीनिवास उडुपा, करुणेश के. शुक्ला, सात्विका ठाकुर, और अरविंद कुमार शर्मा (ए.ओ.आर.) उपस्थित थे।