आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि बार-बार प्रस्तुत किए गए अनुरोध (representations) सीमा अवधि (limitation period) को नहीं बढ़ाते और न ही एक पुरानी दावे को पुनर्जीवित करते हैं। यह निर्णय 21 जनवरी 2025 को न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति चला गुना रंजन की खंडपीठ ने दिया, जिसमें अनुकंपा नियुक्ति (compassionate appointment) के अस्वीकार को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका (नं. 1349/2025) को खारिज कर दिया गया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी दावे के अस्वीकार के बाद बार-बार अनुरोध प्रस्तुत करना नए कारण का निर्माण नहीं करता। अदालत ने यह भी दोहराया कि कानूनी उपायों का उपयोग निर्धारित समय-सीमा के भीतर और समय पर किया जाना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला तब सामने आया जब याचिकाकर्ता जम्पापुरम हनुमंथु ने अपने पिता की सेवा में रहते हुए 6 सितंबर 2007 को मृत्यु हो जाने के बाद अनुकंपा नियुक्ति की मांग की। उन्होंने 29 सितंबर 2008 को यह अनुरोध प्रस्तुत किया, जिसे 18 नवंबर 2008 को दक्षिण मध्य रेलवे (अनु. 4) के मंडलीय रेलवे प्रबंधक ने अस्वीकार कर दिया।
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इसके बावजूद, याचिकाकर्ता वर्षों तक बार-बार अनुरोध भेजते रहे। उनके मामले पर पुनर्विचार किया गया लेकिन अंततः इसे 16 अक्टूबर 2020 को फिर से अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद, उन्होंने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT), हैदराबाद के समक्ष याचिका (OA/020/685/2020) दायर की, जिसे 25 मार्च 2022 को अत्यधिक देरी और बिना पर्याप्त आधार के खारिज कर दिया गया।
इस फैसले से असंतुष्ट होकर, याचिकाकर्ता ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की।
मुख्य कानूनी मुद्दे
इस मामले में निम्नलिखित कानूनी प्रश्न उठे:
- क्या बार-बार प्रस्तुत किए गए अनुरोध एक अस्वीकृत दावे को पुनर्जीवित कर सकते हैं?
- क्या ऐसे अनुरोधों की अस्वीकृति एक नया कारण उत्पन्न करती है?
- क्या अत्यधिक विलंब के बावजूद एक रिट याचिका स्वीकार की जा सकती है, जब पूर्व में कई बार अस्वीकृति हो चुकी हो?
अदालत का फैसला और टिप्पणियां
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री जड़ा श्रवण कुमार के प्रतिनिधि के रूप में श्रीमती कृष्णा दीप्ति और प्रतिवादियों की ओर से अधिवक्ता श्री पसाला पोन्ना राव की दलीलें सुनने के बाद, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ फैसला सुनाया और रिट याचिका को खारिज कर दिया।
अदालत ने कानूनी सिद्धांतों को दोहराते हुए कहा कि बार-बार प्रस्तुत किए गए अनुरोध न तो सीमा अवधि को बढ़ाते हैं और न ही किसी पुराने दावे को पुनर्जीवित कर सकते हैं।
न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ:
- “यह स्थापित कानून है कि बार-बार अनुरोध प्रस्तुत करने से न तो अधिकार क्षेत्र प्राप्त होता है और न ही सीमा अवधि बढ़ती है। केवल कई अनुरोध दाखिल करने से पुराना दावा पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता।”
- उत्तर प्रदेश राज्य बनाम रजमती सिंह (2022 SCC OnLine SC 1785) मामले का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि “बार-बार प्रस्तुत किए गए अनुरोध एक नए कारण को उत्पन्न नहीं करते और न ही पहले से उत्पन्न कारण को पुनर्जीवित करते हैं।”
- सुरजीत सिंह साहनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022) 15 SCC 536 के संदर्भ में, अदालत ने स्पष्ट किया कि “अदालतों को अत्यधिक देरी वाले मामलों को खारिज करना चाहिए, न कि याचिकाकर्ताओं को बार-बार अनुरोध दाखिल करने के लिए कहना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से गलत तरीके से एक नया कारण उत्पन्न हो सकता है।”
- “किसी दावे के गुण-दोष पर अस्वीकृति के बाद बार-बार अनुरोध प्रस्तुत करने से याचिकाकर्ता की लापरवाही को सही नहीं ठहराया जा सकता।”
याचिका खारिज, देरी और लापरवाही पर अदालत की सख्त टिप्पणी
हाईकोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता ने पहली अस्वीकृति (2008) के लगभग 12 साल बाद अधिकरण (CAT) का दरवाजा खटखटाया, और यहां तक कि उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर करने में भी तीन साल की देरी हुई। अदालत ने इतनी लंबी देरी के लिए कोई औचित्य नहीं पाया और याचिका को पूरी तरह से खारिज कर दिया।
इस फैसले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का अनुसरण करते हुए स्पष्ट किया कि “एक बार अस्वीकृत दावे को केवल बार-बार अनुरोध भेजकर पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता।”