दिल्ली हाईकोर्ट ने अनुच्छेद 334ए(1) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका के संबंध में केंद्र से जवाब मांगा है, जिसमें संसद में महिला आरक्षण लागू करने के लिए परिसीमन को एक शर्त के रूप में अनिवार्य किया गया है। मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की अध्यक्षता वाली पीठ ने संवैधानिक निहितार्थों के कारण मामले में अटॉर्नी जनरल को भी शामिल किया है।
इस मामले की सुनवाई 9 अप्रैल को होनी है, जिसे नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडिया वूमेन ने पेश किया है, जिसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता प्रशांत भूषण कर रहे हैं। फेडरेशन ने महिला आरक्षण अधिनियम के कार्यान्वयन में देरी को चुनौती दी है, जिसमें लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
संविधान के अनुच्छेद 334ए(1) में निर्दिष्ट किया गया है कि महिलाओं के लिए आरक्षण प्रावधान संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) अधिनियम, 2023 के लागू होने के बाद पहली जनगणना के जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर परिसीमन अभ्यास के बाद ही लागू किए जाएँगे। यह आरक्षण इसके लागू होने से पंद्रह साल बाद समाप्त हो जाएगा।
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याचिकाकर्ता का तर्क है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और एंग्लो-इंडियन जैसी अन्य आरक्षित श्रेणियों के लिए परिसीमन के लिए ऐसी शर्त की आवश्यकता नहीं है। उनका दावा है कि यह मनमाना और असमान भेद पैदा करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध) का उल्लंघन करता है।