भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने छह परिजनों की निर्मम हत्या के आरोपी गंभीर सिंह की फांसी की सजा को पलटते हुए उसे दोषमुक्त करार दिया। न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष का मामला असंगतियों, अप्रमाणित आरोपों और गढ़े गए साक्ष्यों से भरा हुआ था। अदालत ने कहा कि “अभियोजन का पूरा ताना-बाना छेदों से भरा हुआ है और इन्हें भरना असंभव है।”
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि अभियोजन पक्ष महत्पूर्ण तीन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों—मंशा, अंतिम बार देखे जाने और हथियारों की बरामदगी को संदेह से परे साबित करने में असफल रहा। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल अनुमान और आधारहीन साक्ष्यों के आधार पर दोषसिद्धि नहीं की जा सकती।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला उत्तर प्रदेश के तुरकिया गाँव में 8-9 मई 2012 की रात हुए नरसंहार से जुड़ा है, जिसमें गंभीर सिंह के भाई, भाभी और उनके चार बच्चों की हत्या कर दी गई थी। शवों की स्थिति भयावह थी, और सभी की हत्या तीक्ष्ण धार वाले हथियारों से की गई थी।
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अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि जमीन विवाद के चलते गंभीर सिंह ने अपने दो सहयोगियों—अभिषेक और गायत्री—के साथ मिलकर अपने परिवार की हत्या कर दी। मृतका पुष्पा के भाई महावीर सिंह (PW-1) ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई, जिसके आधार पर अचनेरा थाना, आगरा में प्राथमिकी (FIR No. 105/2012, अपराध संख्या 329/2012) दर्ज की गई।
ट्रायल कोर्ट ने गंभीर सिंह को दोषी ठहराते हुए 20 मार्च 2017 को उसे फांसी की सजा सुनाई, जबकि सह-आरोपी गायत्री को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया। बाद में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 9 जनवरी 2019 को इस सजा की पुष्टि कर दी। इसके बाद मामला विशेष अनुमति याचिका (SLP) के तहत सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ
1. मंशा (मोटिव) साबित करने में असफलता
अभियोजन पक्ष का दावा था कि गंभीर सिंह ने जमीन विवाद के कारण हत्याएं कीं, क्योंकि उसने अपने भाई की पत्नी पुष्पा को जमीन बेची थी ताकि अपनी मां की हत्या के पुराने मामले में कानूनी खर्च निकाल सके।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस दावे को प्रमाणित करने के लिए कोई ठोस दस्तावेजी या मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए।
“अभियोजन पक्ष इस बात का एक भी प्रमाण देने में असफल रहा कि आरोपी को जमीन से वंचित किया गया था, जिससे यह साबित हो कि उसकी हत्या करने की मंशा थी,” न्यायालय ने कहा।
2. ‘अंतिम बार देखे जाने’ की थ्योरी में खामियां
कुछ गवाहों ने दावा किया कि 8 मई 2012 की शाम को गंभीर सिंह, अभिषेक और गायत्री को घटनास्थल के पास देखा गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस गवाही को अविश्वसनीय करार दिया।
“अचनेरा और तुरकिया गाँव के बीच 7-10 किलोमीटर की दूरी है। यह कल्पना करना असंभव है कि आरोपी छह लोगों की हत्या करने के बाद खून से लथपथ कपड़ों में इतनी दूरी तय कर सकता है,” अदालत ने टिप्पणी की।
3. संदिग्ध हथियार बरामदगी
पुलिस ने दावा किया कि आरोपी ने एक कुल्हाड़ी और कटारी की बरामदगी करवाई, जो हत्या में इस्तेमाल किए गए थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बरामदगी की प्रक्रिया में गंभीर खामियां पाईं:
- अन्वेषण अधिकारी (PW-12) आरोपी के कबूलनामे को अदालत में साबित करने में असफल रहा।
- पुलिस ने बरामदगी मेमो पर आरोपी के हस्ताक्षर नहीं लिए।
- फॉरेंसिक साइंस लैब (FSL) रिपोर्ट में केवल यह पाया गया कि हथियारों पर इंसानी खून था, लेकिन उसका ब्लड ग्रुप पता नहीं चल सका, जिससे साक्ष्य कमजोर हो गया।
“भले ही हथियारों की बरामदगी मान ली जाए, लेकिन FSL रिपोर्ट में रक्त का समूह नहीं बताया गया, जिससे यह साक्ष्य निरर्थक हो जाता है,” कोर्ट ने कहा।
4. पुलिस जांच और न्यायिक प्रक्रिया पर आलोचना
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जांच को “शिथिल, लापरवाह और त्रुटिपूर्ण” करार दिया।
“छह निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या के मामले की जांच अत्यंत लापरवाही और अनियमितताओं के साथ की गई। अभियोजन पक्ष द्वारा मंशा साबित करने के लिए कोई भी ठोस साक्ष्य नहीं जुटाया गया।”
अदालत ने निचली अदालतों और अभियोजन पक्ष पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि मामला गढ़े गए साक्ष्यों पर आधारित था और न्यायिक प्रक्रिया का ठीक से पालन नहीं किया गया।
“लोक अभियोजक और ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश की लापरवाही स्पष्ट है। गवाहों के बयान सही ढंग से दर्ज नहीं किए गए और साक्ष्यों का उचित मूल्यांकन नहीं किया गया।”
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: गंभीर सिंह बरी
इन गंभीर खामियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि दोषसिद्धि और मृत्युदंड की सजा को बरकरार नहीं रखा जा सकता।
“अभियोजन का पूरा ताना-बाना छेदों से भरा हुआ है और इन्हें भरना असंभव है। अतः दोषसिद्धि को रद्द किया जाता है,” कोर्ट ने कहा।
इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सिंह को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया और उसकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया:
“गंभीर सिंह को सभी आरोपों से बरी किया जाता है। यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो उसे तुरंत जेल से रिहा किया जाए।”
इस निर्णय के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि दोषसिद्धि केवल ठोस साक्ष्यों पर आधारित होनी चाहिए, न कि अनुमानों, अटकलों या प्रक्रिया में हुई त्रुटियों पर।