भारत के सुप्रीम कोर्ट से मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित लगभग 5,000 मामलों के शीघ्र निपटारे की दिशा में कदम उठाने का आग्रह किया गया है। इन लंबित मामलों की बड़ी संख्या देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। यह अपील 2016 में अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) का हिस्सा है, जिसमें अपराधों के दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध की मांग की गई है। इस याचिका पर जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ सोमवार को सुनवाई करेगी।
सीनियर एडवोकेट विजय हंसरिया, जो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त अमिक्स क्यूरी हैं, ने एक हलफनामा दाखिल किया है। इसमें कहा गया है कि 1 जनवरी, 2025 तक विधायकों के खिलाफ 4,732 आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से 2024 में ही 892 नए मामले दर्ज किए गए हैं। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि इन मामलों की सुनवाई में विधायकों का अनुचित प्रभाव हस्तक्षेप कर रहा है, जिससे मामलों का निपटारा लंबित है।
असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए हंसरिया ने कहा कि मौजूदा लोकसभा के 543 सदस्यों में से 251 सदस्यों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से 170 मामले गंभीर अपराधों से जुड़े हैं। हंसरिया ने इस बात पर भी जोर दिया कि सांसदों और विधायकों के मामलों की सुनवाई करने वाले विशेष न्यायालय अपनी नियमित जिम्मेदारियों में भी व्यस्त रहते हैं, जिससे इन विशेष मामलों पर उनका ध्यान नहीं केंद्रित हो पाता।
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हलफनामे में कानूनी प्रक्रियाओं में कई खामियों की ओर इशारा किया गया है, जैसे कि अभियुक्तों की अनुपस्थिति, गवाहों को समय पर समन न भेजना, और अदालतों द्वारा अनावश्यक स्थगन देना, जो सुप्रीम कोर्ट के न्यूनतम स्थगन के निर्देशों के खिलाफ है। हंसरिया ने विधायकों के मामलों में पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि हाई कोर्ट की वेबसाइट पर इन मामलों की प्रगति और देरी के कारणों की जानकारी दी जानी चाहिए ताकि जनता को सही जानकारी मिल सके।
सुधार के लिए हंसरिया ने सुझाव दिया कि विशेष एमपी/एमएलए अदालतें तब तक केवल विधायकों के मामलों की सुनवाई करें जब तक वे पूरी तरह से निपट न जाएं। इसके अतिरिक्त, तीन साल से अधिक पुराने मामलों की रोजाना सुनवाई की जाए, जैसा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) की धारा 346 (सीआरपीसी की धारा 309) में प्रावधान है। हंसरिया ने यह भी सुझाव दिया कि अगर कोई अभियुक्त लगातार दो सुनवाइयों में उपस्थित नहीं होता है, तो उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया जाए।
इसके अलावा, एक साल से अधिक समय से लंबित प्रतिबंधात्मक आदेशों के उल्लंघन से जुड़े 863 मामलों को रद्द करने का निर्देश भी मांगा गया है।
पिछले साल 22 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया था कि विधायकों से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों ने 2023 में 2,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया। वहीं, 9 नवंबर 2023 को शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट को निर्देश दिया था कि विधायकों से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष बेंच बनाई जाए और विशेष अदालतों को केवल दुर्लभ और अपरिहार्य कारणों से ही स्थगन देने की अनुमति दी जाए।